-मिलन सिन्हा
Will meet again with Open Mind. All the Best.
लहूलुहान सड़कें
कारों में भीड़ नहीं,
कारों की भीड़ है
पक्षी सब सहमे से
सहमे से नीड़ हैं
सूखते उजड़ते पेड़ हैं
लहूलुहान सड़कें हैं
सूख रही धरती है
फटी फटी परती है
सूखे नदी ताल हैं
घर घर अस्पताल है
गाँव नगर सोये से
जागता श्मशान है I
A sarcastic poem full of irony yet leaves a message. :)
ReplyDeleteLove this one. I have grown reading and listening to this.
प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद। आपको मेरी असीम शुभकामनाएं।
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