Friday, December 18, 2020

मोटिवेशन: जिज्ञासा का साथ न छूटे

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

"जंगल बुक" जैसी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक ब्रिटिश साहित्यकार रुडयार्ड किपलिंग, जिन्हें  साहित्य के क्षेत्र में सबसे कम उम्र  में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, का कहना है, "मैं छह ईमानदार सेवक अपने पास रखता हूँ. इन्होंने मुझे वह हर चीज़ सिखाया है जो मैं जानता हूँ.  इनके नाम हैं – क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ और कौन. सचमुच कितनी महत्वपूर्ण बात कही है इस महान लेखक ने.
 सभी विद्यार्थी  इस बात से सहमत होंगें कि देश-दुनिया में अबतक जितने भी आविष्कार और अन्वेषण हुए हैं, सबके पीछे इन छह शब्दों की अहम भूमिका रही है. इसे एक शब्द में मनुष्य के  प्राकृतिक गुण जिज्ञासा के रूप में जाना जाता है. जरा सोचिए, गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को प्रतिपादित  करनेवाले महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन के बारे में. अगर पेड़ से गिरते हुए सेव को देखकर उनको यह जिज्ञासा न हुई होती कि यह सेव नीचे धरती पर ही क्यों गिरा, तो क्या यह महान आविष्कार हो पाता? अगर महान भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर जगदीश चन्द्र बोस और इटालियन वैज्ञानिक गुल्येल्मो मार्कोनी अपनी जिज्ञासा को पंख न लगाते तो क्या रेडियो टेलीग्राफी का आविष्कार हो पाता और आज उसी सिद्धांत पर आधारित रेडियो, दूरसंचार, टेलीविज़न, मोबाइल आदि की  विराट और अदभुत  दुनिया का लाभ हम उठा पाते? 


दरअसल, जो अनदेखा, अनसुना और अनजाना है उसके प्रति स्वाभाविक जिज्ञासा मनुष्य मात्र में होती है. प्राचीन काल से ही मनुष्य जाति इसको अपना सबसे प्रिय साथी और औजार बनाकर निरंतर विकास के मार्ग पर अग्रसर होती रही है. वास्तव में, जिज्ञासा मनुष्य को हमेशा कुछ नया सोचने और करने को प्रेरित करती रहती है. यह नायाब मानवीय गुण एक ओर जहां निराशा और गम से जूझते लोगों को झकझोरती है और समाधान के नए रास्ते तलाशने को प्रेरित करती है, वहां  दूसरी ओर सुख-सुविधा से संपन्न व्यक्ति को जीवन का सही अर्थ जानने को विवश भी कर देती है. इसके बहुत सारे उदाहरण दुनिया में मौजूद हैं. एक बड़े उदाहरण के रूप में महात्मा बुद्ध और उनके अनमोल विचार दुनिया के सामने हैं. जरा सोचिए, अगर कोई विद्यार्थी अपनी जिज्ञासा को विस्तार देते हुए एक बड़ा लक्ष्य रखे कि उसे तो इस ब्रह्माण्ड को समझने की कोशिश करनी है; पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, सूरज-चाँद-सितारे, देश-विदेश आदि से जुड़ी हर बड़ी बात को जानने-समझने का प्रयास करते रहना है, तो उसे कितना ज्ञान और अनुभव हासिल होगा.  

    
विभिन्न सर्वेक्षणों में यह बात साफ़ तौर पर उभर कर आती है कि अधिकांश विद्यार्थी औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद एक अच्छी नौकरी की तलाश में रहते हैं, जब कि अपनी शिक्षा, जिज्ञासा और क्षमता के आधार पर अपना व्यवसाय या उद्द्योग शुरू करने हेतु आगे आनेवाले युवाओं की संख्या अभी भी बहुत कम है. इस स्थिति में बदलाव जरुरी है. 
अच्छी बात है कि नई शिक्षा नीति का एक बड़ा उद्देश्य विद्यार्थियों में जिज्ञासा की प्रवृति को उत्प्रेरित करना है जिससे कि छात्र-छात्राएं छात्र जीवन में और उससे आगे भी अपने सोच-विचार तथा कार्य-कलाप को उन्नत करते रहें. 


हर विद्यार्थी में जिज्ञासा का गुण विद्यमान होता है. बस हमेशा यह कोशिश करते रहने की जरुरत होती है कि किसी भी कारण जिज्ञासा की आग ठंडी न हो जाय. इसके लिए विद्यार्थियों को इन अहम बातों पर फोकस करना चाहिए.
 पहली बात यह कि कभी भी प्रश्न पूछने से संकोच न करें. हां, प्रश्न पूछने का अंदाज शालीन और मर्यादित हो तो बेहतर. यह सच है कि कई बार विद्यार्थी यह सोचकर प्रश्न नहीं पूछते कि साथी-सहपाठी या शिक्षक बाद में उसका मजाक तो नहीं उड़ायेंगे. इस मामले में किसी ने बहुत सही कहा है कि जो विद्यार्थी प्रश्न पूछता है उसका कुछ देर के लिए तो मजाक उड़ाया जा सकता है या थोड़े समय के लिए तो वह मूर्ख प्रतीत हो सकता है, लेकिन जो विद्यार्थी इस डर से प्रश्न ही नहीं  पूछते, वे तो जीवन भर मूर्ख बने रहते हैं. दूसरा, अपने प्रश्न का उत्तर ठीक से सुनें और उसे समझने का यत्न करें. पूरी तरह न समझने की स्थिति में या उस विषय में कोई और प्रश्न दिमाग में आने पर उसका भी समाधान प्राप्त करें. तीसरा, जिज्ञासा के दायरे को सीमित न करें. कहने का आशय यह कि कोर्स में आपके जो भी सब्जेक्ट्स हैं उनके केवल कुछ प्रश्नों को सॉल्व करके संतुष्ट न हो जाएं, बल्कि अन्य सभी संभावित प्रश्नों के प्रति जिज्ञासु बनकर समाधान तक पहुंचने की चेष्टा करें. इसके लिए आपको को उस विषय के साथ गहरी दोस्ती निभानी पड़ेगी. निसंदेह, आपको अपनी जिज्ञासा के मैजिकल परिणाम मिलते रहेंगे. 

 (hellomilansinha@gmail.com) 

      
                ... फिर मिलेंगे, बातें करेंगे - खुले मन से ... 
लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" में प्रकाशित
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Saturday, November 7, 2020

Wellness Point: Set Your Goal Smart

                              - Milan K. Sinha, Motivational Speaker, wellness Consultant ... ...


In this dynamic world we get to know about record breaking achievements by one or the other person in their respective field. Few months back there was wide media coverage of M.C.Marycom, the woman boxer for winning another big title. It is really heartening that good number of sportspersons have been proving their real talent in international sports events.

Swami Vivekananda rightly says, "All power is within you. You can do anything and everything. Believe in that. Don't believe that you are weak. Stand up and express the divinity within you."

Undeniably, these performers and many others in other fields of activity- science, finance, politics, administration, entertainment, arts & crafts, literature etc. have exhibited their unflinching commitment towards certain winning qualities including determination, dedication, discipline and hard work. Nonetheless, one defining and common commitment of these achievers has been towards setting a smart goal at the first place.

The pertinent question here is what is special about smart in setting a goal? Interestingly, each letter of the word SMART signifies a special character. Let us examine and enjoy it through the example of a college student. Yes, it is equally applicable in other cases.

S for specific. Goal must be specific, not confusing or hazy or unclear. It's like Mahabharat’s great teacher and trainer Dronacharya's dearest disciple Arjuna's specific goal of hitting the eye of the bird on a tree. Arjuna was so focused on his goal that he was quite unaware of even the other body parts of the bird itself.    

M for measurable. To say, it can be measured on a scale. For example, when a student says he wants to score good marks in the ensuing examination, the question will be what does this good mark actually mean? Is it 60, 70 or 90%? Once this percentage is set, only then the student can make an estimation and action plan about the extent of efforts required for achieving the goal.

A for achievable. It signifies whether the goal set is really achievable. There is no point in setting a goal which prima facie is unachievable by any means. Now, if the said student sets a target of 98% whereas he has been securing around 50% in previous examinations and the next examination is only a month away, the goal is very much unachievable and hence can't be a part of a smart goal.

R for relevant. That does mean that it is relevant in the context of larger goal of your life or from the point of view of the benefits you intend to receive vis-a-vis your total efforts, energy and time required to achieve the said goal.

T for time bound. Whatever be the goal, it must be achieved within a time limit. No goal can be set for an unlimited time. A goal is meaningless without a deadline. Taking the same example of the said student, if he says that he will achieve the goal this time or next time, the smartness of setting a goal is completely purposeless. 

Experts of all fields do opine that if we can set a smart goal and take all possible steps to move towards it firmly, success is guaranteed. Finally, let us enjoy the golden words of Brian Tracy on the subject. He says, "People with clear and written goals accomplish far more in a shorter period of time than people without them could ever imagine." In fact, by following this principle in life, anybody can ensure far better chances of being successful in all the endeavours.         (hellomilansinha@gmail.com)

As always, I'm keen to know what you think on this subject. Hence, request you to post comments to share your views and experiences.


Wednesday, October 28, 2020

वेलनेस पॉइंट: धूप का सेवन करें और सेहतमंद रहें

                                   - मिलन  सिन्हा, हेल्थ मोटिवेटर एंड  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 
सूर्य के बिना जीवन की कल्पना नामुमकिन है. हमारे देश में हजारों वर्षों से सूर्य को देवता के रूप में पूजा जाता है. सूर्य की पहली किरण हमारे लिए रोज एक नयी सुबह लेकर आती है. हरेक के जीवन में आशा, उत्साह, उर्जा और उमंग को प्रतिबिंबित करती है ये किरणें. दिलचस्प बात  है कि सूर्य हमें सिर्फ प्रकाश और ऊर्जा प्रदान नहीं करते, बल्कि हमारे लिए वायु, जल, अन्न, फल और साग-सब्जी का भी प्रबंधन करते हैं.  इतना ही नहीं, सूर्य की किरणों का हमारी सेहत से गहरा रिश्ता है. हम सभी जानते हैं कि धूप विटामिन-डी का सबसे सशक्त, प्रभावी और आसानी से उपलब्ध प्राकृतिक स्रोत है.


ज्ञातव्य है कि हमारा देश विश्व के ऐसे देशों में शामिल है, जहां लोगों को सूर्य की रोशनी पर्याप्त मात्रा में कमोबेश हर मौसम में उपलब्ध होती है. फिर भी हाल में एक रिसर्च में जो  तथ्य सामने आया है उसके मुताबिक़ देश में बड़ी संख्या में लोगों में विटामिन-डी की कमी पाई गई है, जिसके कारण उन लोगों का कई सारे रोग के चपेट में आने का खतरा स्वतः बढ़ जाता है. 


दरअसल फ़ास्ट लाइफ के वर्तमान दौर में  मुफ्त में मिलनेवाली धूप के विषय में ठीक से जानने, समझने और उसका आनन्द ही नहीं, बल्कि हेल्थ के सन्दर्भ में उसका अपेक्षित लाभ उठाने का अवसर नहीं मिल पाता है या उसके प्रति अपेक्षित जागरूकता का अभाव है. 


दिलचस्प तथ्य है कि सूर्य न केवल हमें बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करता है. सूर्य की सप्तरंगी किरणें रोगनिवारक होती हैं. धूप के सेवन से हमारा शरीर अनेक प्रकार की बीमारियों से बचा रहता है. प्रकृति विज्ञानी तो कहते हैं कि सूर्य एक प्राकृतिक चिकित्सालय है. ऐसी मान्यता बिलकुल सही है जब हम आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के तराजू पर धूप के असीमित फायदों को तौलते हैं.


1. धूप के कारण हमारे शरीर को उचित मात्रा में विटामिन-डी मिलने पर कैल्शियम शरीर में ठीक से एब्जोर्ब यानी अवशोषित होता है. इसी कारण विटामिन-डी को शरीर में हड्डियों की मजबूती के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. हड्डियां कमजोर होने से फ्रैक्चर का खतरा बढ़ता है. हम ऑस्टियोपोरोसिस के  शिकार भी हो सकते हैं. 


2. धूप का नियमित सेवन न करने यानी विटामिन-डी की कमी से दिल की बीमारी भी होती है. हार्ट स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. मांस -पेशियों में दर्द रहता है जिससे कई अन्य दिक्कतें भी पैदा होती हैं.


3. सूरज की किरणों में एंटी कैंसर तत्व होने से कैंसर का खतरा टलता है. जिन्हें कैंसर है, उन्हें धूप से बीमारी में आराम महसूस होता है. कई शोधों से यह बात सामने आई है कि जहां धूप कम समय के लिए होती है या जो लोग धूप में कम समय बिताते हैं, कैंसर की आशंका वहां ज्यादा होती है.


4. धूप के कारण शरीर गर्म होता है. नाड़ियों में रक्त प्रवाह सुचारू रहता है. इससे शरीर के सारे अंग सक्रिय रूप से काम करते हैं. धूप के सेवन से जठराग्नि ज्यादा सक्रिय रहती है. फलतः पाचनतंत्र बेहतर ढंग से काम करता है और खाना ठीक से पचता है. नतीजतन हमारे शरीर को अपेक्षित पोषण मिलता है और सेहत ठीक रहती है.


5. शरीर को अपेक्षित धूप न मिलने के कारण सेरोटोनिन तथा  एंडोर्फिन जैसे फील गुड और फील हैप्पी हार्मोन का यथोचित स्राव नहीं होता है जिससे तनाव और अवसाद से ग्रस्त लोगों को ज्यादा परेशानी होती है. ऐसे भी सुबह की धूप हमारे मन -मष्तिष्क को आनंदित करता है. 


6. धूप का संबंध हमारी नींद से भी है. नींद की क्वालिटी को प्रभावित करनेवाला  मेलाटोनिन नामक हार्मोन का स्राव धूप सेंकने से अच्छी तरह संभव हो पाता  है, क्यों कि धूप का सीधा असर  हमारे शरीर के पीनियल ग्रंथि पर होता है जिससे यह हार्मोन निकलता है. 


7. धूप का सेवन त्वचा संबंधी कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है. एक्ने, सोरायसिस और एग्जिमा इनमें से कुछ हैं. दरअसल, धूप सेंकने से हमारा खून साफ़ होता है और इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है. धूप के सेवन से कई तरह के संक्रमण अपने-आप ख़त्म हो जाते हैं. 


8. जाड़े के मौसम में धूप में बैठने से  शरीर को गर्मी मिलती है, जिससे शरीर की जकड़न दूर होती है और ठंड के कारण आई अंदरूनी परेशानियां दूर होती है. इससे हड्डियों और मांसपेशियों को बहुत लाभ मिलता है.


9. नियमित रूप से कुछ समय धूप का सेवन करने से सर्दी-जुकाम से बराबर पीड़ित रहनेवाले  लोगों को बहुत फायदा होता है. दरअसल, धूप में बैठने से हमारे शरीर में वाइट ब्लड सेल्स की संख्या तेजी से बढ़ती है जो रोग का प्रतिकार कर पीड़ित व्यक्ति को राहत पहुंचता है.


हां, एक वाजिब सवाल हैं कि किस समय और कितनी देर धूप का सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है? 


सुबह की धूप हमेशा अच्छी होती है. मौसम के हिसाब से कहें तो जाड़े में सुबह 12 बजे तक आधे घंटे तक धूप का सेवन बेहतर लाभ पहुंचाता है. गर्मी में सुबह 9-10 बजे तक का समय उपयुक्त है. जो लोग सुबह धूप का लाभ नहीं उठा सकते वे अपराह्न सूर्यास्त से पहले यानी 4-6 बजे के बीच इसका आनंद ले सकते हैं.


ध्यान रहे कि किसी भी मौसम में चिलचिलाती धूप में बैठना-लेटना सही नहीं है. जैसे कोई भी चीज बहुत अधिक ठीक नहीं होती, वैसे ही बहुत देर तक धूप में बैठे रहना भी हानिकारक है. इससे स्किन कैंसर, आंख की परेशानी, एलर्जी आदि का खतरा रहता है.


अंत में एक और विचारणीय बात. लाइफ कितना  भी फ़ास्ट हो, प्राथमिकताओं का सही प्रबंधन करते हुए हम सभी अपनी सेहत को ठीक रखने के लिए रोज थोड़ा वक्त तो निकाल ही सकते हैं. कहते हैं न कि जहां चाह, वहां राह. उदाहरण के लिए अगर हम सूर्योदय के बाद वाकिंग करते हैं  तो हमें अनायास ही थोड़ी देर धूप में भी रहने का अवसर मिल जाता है. शनिवार-रविवार या अवकाश के दिन अगर बच्चों के साथ किसी पार्क में चले गए तो बच्चों का मनोरंजन और व्यायाम हो जाएगा तथा साथ  में सबको धूप में रहने का मौका भी मिल जाएगा. उसी तरह जब भी मौका मिले, थोड़ा सन बाथ लेने का प्रयास करेंगें तो सेहत को ठीक रख पायेंगे
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(hellomilansinha@gmail.com)  
 
        
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Wednesday, September 16, 2020

मोटिवेशन: दो कल के बीच वर्तमान का उपहार

                                 - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...

विश्व विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन कहते हैं कि 'कल से सीखो, आज के लिए जीओ, कल के लिए सपने देखो और सबसे जरुरी बात यह कि कभी भी रुको मत.' 
सचमुच सभी छात्र-छात्राओं का समय सपने देखने और उनको सच करने के क्रम में कल, आज और कल के बीच से गुजरता है. अपने काउंसलिंग सेशन में वैसे हर विद्यार्थी से जो समय की कमी और बेहतर परफॉर्म न कर पाने की बात करते हैं, आग्रह करता हूँ कि सिर्फ एक हफ्ते तक रोजाना रात में सोने से पहले एक नोट पैड में ईमानदारी से यह लिखें कि उन्होंने कितने घंटे अतीत की दुखभरी बातों को याद करने में बिताए, भविष्य के सोच में आशंका व चिंताग्रस्त रहे और कितने घंटे वाकई तन्मयता से अध्ययन में बिताए. सामान्यतः  यह बात साफ़ तौर पर सामने आती है कि पास्ट और फ्यूचर की बातों में उनका ज्यादातर समय गुजर जाता है और उन्हें पता भी नहीं चलता. कदाचित वे महसूस करते हैं कि यह ठीक नहीं है, लेकिन अगले दिन उनका समय अतीत की कुछ ऐसी ही नेगेटिव बातों को याद करने में या भविष्य की दुश्चिंताओं में गुजरता है. परिणाम स्वरुप अपने लक्ष्य के अनुरूप सकारात्मक सोच के साथ आज को जीने के लिए उनके पास समय कम पड़ जाता है. 

 
हां, यह सही है कि किसी भी विद्यार्थी के लिए शायद ही संभव होगा कि वह दिनभर में कभी भी अतीत या भविष्य में विचरण न करें, लेकिन क्या यह मुनासिब नहीं है कि एक बार ठीक से अतीत और भविष्य यानी दोनों कल के विषय में अपना माइंड क्लियर कर लें? 
 चलिए, अभी कुछ सोच-विचार कर लेते हैं. मजेदार बात है कि एक दिन पहले के आज को बीता हुआ कल यानी अतीत कहते है और एक दिन बाद आनेवाले आज को भी कल ही कहते है, लेकिन मतलब भविष्य होता है. यही न. तो साफ़ है कि दोनों कल वाकई आज ही था या होगा समय के एक अंतराल के बीच. फिल्म "हम हिन्दुस्तानी" का यह गाना कि " छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नए दौर में लिखेंगे मिलकर नई कहानी..." या फिल्म "कसमे-वादे" का यह गाना "कल क्या होगा किसको पता अभी जिंदगी का ले लो मजा..." दोनों गानों में अतीत और भविष्य की बातों को छोड़कर आज में जीने का संदेश साफ़ है. फिर विद्यार्थियों को क्या करना चाहिए?


महात्मा बुद्ध का कहना है कि 'मन और शरीर दोनों के लिए स्वास्थ्य  का रहस्य यह है कि  अतीत पर शोक मत करो और ना ही भविष्य की चिंता करो, बल्कि बुद्धिमानी तथा  ईमानदारी  से वर्तमान में जीओ.' 
 तो  छात्र-छात्राएं सर्वप्रथम  यह संकल्प करें कि अभी से वे वर्तमान यानी प्रेजेंट में जीयेंगे. प्रेजेंट का एक अर्थ उपहार भी है और शायद इसी को रेखांकित करता है आज का समय यानी वर्तमान, जो वाकई  एक अमूल्य उपहार है. हां, इस संकल्प को हमेशा याद रखना है और मन ही मन दोहराना भी है. ऐसा इसलिए कि जब भी मन अतीत या भविष्य में जाए और नेगेटिविटी के जाल में फंसने लगे तो वे प्रेजेंट में तुरत लौट सकें.  यहां इस बात को नहीं भूलना चाहिए  कि अतीत का पूरा समय बीते हुए वर्तमान का कुल योग होता है और भूतकाल के इस बड़े काल खंड में सभी विद्यार्थियों ने अनेक काम किए हैं और बहुत-सा अच्छा-बुरा अनुभव प्राप्त  किया है. ये अनुभव  उनके  धरोहर हैं  और आगे बहुत काम आनेवाले हैं अगर वे  इनसे मिले सबक और सीख को वर्तमान में अर्थात आज उपयोग में ला सकें. अतीत की असफलताओं और गलतियों को सिर्फ याद कर निराश और दुखी होने का कोई फायदा नहीं. आगे वही गलती न करें तो कुछ बात बने. दूसरा, अतीत की जो सफलताएं या अच्छी यादें आपके स्मृति में हैं, उन्हें अच्छी तरह संजो कर रखें. उन्हें जीवंत बनाए रखना आपको अच्छे कार्य में संलग्न रहने को उत्प्रेरित करता रहेगा. तीसरा यह कि भविष्य के लिए जो सपने देखें हैं या जहां पहुंचना चाहते हैं यानी जो आपका बड़ा लक्ष्य है, उसके लिए एक प्रैक्टिकल और फुलप्रूफ कार्ययोजना तैयार करके चलें. यकीनन, इन्हें साधने के साथ-साथ छात्र-छात्राओं को आज पर पूरा फोकस करना होगा क्यों कि वे आज जो कुछ करते हैं, वही हकीकत है और सबसे अधिक अहम.  


महात्मा गांधी भी कहते हैं कि 'हमारा भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम आज क्या करते हैं.'  आपने यह भी सुना ही है कि 'काल करो सो आज कर, आज करो सो अभी.' तो बस इस सिद्धांत को दृढ़ता से अपनाकर हर दिन को एक महत्वपूर्ण दिन मानें और फिर आज यानी वर्तमान के अच्छे कार्य व प्रयास को खूब एन्जॉय करते हुए अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में बढ़ते चलें. निसंदेह, सफलता और ख़ुशी दोनों मिलेगी. 

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Saturday, August 15, 2020

मोटिवेशन: प्रकृति से जुड़ने के असीमित फायदे

                                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...

कोविड 19 से बचावरूपी लॉक डाउन के कारण बेशक हमें कई छोटी-बड़ी तकलीफों से गुजरना पड़ा हो, लेकिन इसी अवधि में प्रकृति ने अपना जो रूप हम सबको दिखाया है, वह बेहद उत्साहवर्धक और खूबसूरत है. दिल्ली में दशकों से प्रदूषण से जूझती यमुना नदी तक स्वच्छ दिखने लगी, तीन सौ किलोमीटर दूर से हिमालय पर्वत श्रृंखला के छोटे-बड़े पहाड़ साफ़ नजर आने लगे, तितली- चिड़िया-जानवर उन्मुक्त विचरण करते दिखे, ध्वनि-जल-वायु प्रदूषण से दुष्प्रभावित रहनेवाले अनेकानेक मरीज बिना किसी मेडिसिन के अच्छा फील करने लगे. यकीनन, इससे हमें  प्रकृति के अनेक संदेश प्राप्त हुए. 
सभी ज्ञानीजन बारबार कहते हैं कि प्रकृति हम सबका उत्तम  शिक्षक, मार्गदर्शक और सखा है, जो हमेशा हमारे कल्याण हेतु समर्पित है. जिसको भी प्रकृति को जानने, समझने और उससे सीखने की आदत लग जाती है, उसे ज्ञान और बुद्धि का अभाव नहीं रहता. 


जीने के लिए हमें क्या चाहिए सवाल के उत्तर में लगभग सभी विद्यार्थी पहले रोटी, कपड़ा और मकान की बात करते हैं. लेकिन क्या यही सबसे जरुरी चीजें हैं या और कुछ? सोचनेवाली बात है कि वे उन तीन चीजों की चर्चा नहीं करते जिसके बिना  जीवन की कल्पना तक नहीं कर सकते और रोटी, कपड़ा और मकान भी इन्हीं तीन चीजों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है. क्या है ये तीन चीजें? हवा, पानी और धूप. चूंकि ये तीनों चीज प्रकृति द्वारा सबको  मुफ्त में मिल जाती हैं, शायद इसलिए कोई इन्हें गिनती में नहीं रखता. सभी विद्यार्थियों के लिए यह चिंतन का एक अहम विषय होना चाहिए, खासकर विश्वव्यापी संकट की इस घड़ी में कि क्या हम हवा के बिना जी सकते हैं, क्या हम पानी के बिना रह सकते हैं और क्या धूप और सूरज की किरणों के बिना जीवन संभव है? मुझे विश्वास है कि इस चिंतन-विश्लेषण के बाद लगभग सभी विद्यार्थियों को प्रकृति की महिमा का बेहतर एहसास होगा और वे खुद प्रकृति के साथ जुड़ने और अपने आसपास के लोगों को जोड़ने का सार्थक प्रयास अवश्य करेंगे. सच कहें तो प्रकृति से जुड़ने और जोड़ने का काम बहुत आसान, आनंददायक और हर दृष्टि से लाभप्रद है. आइए जानते हैं, कैसे? 


सदियों से विविधता में एकता में विश्वास करनेवाले इस प्राचीन तथा प्रगतिशील देश में जैव विविधता की आवश्यकता और खूबसूरती दोनों की बहुत अहमियत है. लिहाजा जैव विविधता  को बचाए और बनाए रखने के लिए विद्यार्थियों को कुछ-न-कुछ करना चाहिए. सनातन भावना यह है कि हम साथ-साथ हैं और मिलकर प्रगति पथ पर अग्रसर होंगे. कहते हैं अच्छा काम करने के लिए हर वक्त अच्छा होता है. सो, विद्यार्थी आज से ही शुरू करें प्रकृति से सार्थक रिश्ता बनाने का सिलसिला. सुबह  सूर्योदय के समय उठें और अपने कमरे से बाहर निकल कर सूरज को उगते हुए देखें. आसपास की प्राकृतिक सक्रियता को महसूस करें. मसलन पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों और पेड़-पौधों की सक्रियता. ऐसा अनुभव होगा कि सब कुछ प्रकृति द्वारा निर्धारित एक अलिखित नियम के तहत स्वतः हो रहा है. अब एक छोटी शुरुआत करें. जहां हैं - गांव, क़स्बा, नगर, महानगर वहां एक छोटा पौधा लगाएं. तुलसी, नीम, पीपल, आम, कटहल, नींबू, आंवला या अन्य कोई  पौधा जो फलदार, फूलदार या छायादार प्रजाति का हो. उसे रोज पानी दें, उसे निहारें, उसमें होनेवाले हर परिवर्तन को गौर से ऑब्जर्व करें, रोज 5-10 मिनट ही सही. विश्वास करें, जिस दिन उस पौधे से आपका भावनात्मक रिश्ता कायम हो जाएगा, उसके नए पत्ते, फूल आदि सब आपको आकर्षित और आनंदित करेंगे. प्रकृति से जुड़ने के इन प्रयासों को दिनचर्या का हिस्सा बना लें. 


हमारे देश के शहर-महानगर में रहनेवाले लोग छुट्टियों में अपने गांव या किसी प्राकृतिक स्थान में कुछ वक्त बिताकर हैप्पी और हेल्दी फील करते हैं. स्कूल-कॉलेज के अनेक विद्यार्थियों को स्टडी टूर में प्राकृतिक परिवेश में कुछ समय बिताने और एक अभिनव आनंद का भागी बनने का मौका मिलता है. तालाब, झील, नदी और सागर की  निकटता से  क्रिएटिविटी को पंख लगते हैं. इसका सबूत है करोड़ों रचनाएं और असंख्य कलाकृतियां. इतना ही नहीं न्यूटन सहित कई वैज्ञानिकों  ने प्रकृति के मिजाज एवं रीति-नीति को जानने-समझने के क्रम में कई बड़े आविष्कार किए. सच कहें तो प्रकृति विद्यार्थियों के लिए असीमित ज्ञान और प्रेरणा का स्रोत है. प्रकृति के सानिद्ध में रहने से आंतरिक और अध्यात्मिक उर्जा में वृद्धि होती है. उनका सोच ग्लोबल, इंक्लूसिव और डेमोक्रेटिक बनता है. उन्हें प्रकृति और हर जीव के बीच के अत्यंत गहरे संबंध का बोध होता है. 
तभी तो अल्बर्ट आइंस्टीन कहते हैं, "प्रकृति में गहराई से देखिये और आप हर एक चीज बेहतर ढंग से समझ सकेंगे."  

 (hellomilansinha@gmail.com)     

     
               
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# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता"  में प्रकाशित
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Friday, July 24, 2020

मोटिवेशन: पुस्तक से बनाए रखें दोस्ती

                                             - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...

बचपन से ही पुस्तकों से हमारा रिश्ता जुड़ जाता है. वर्णमाला की रंग-बिरंगी किताब से प्रारंभ हुई यह यात्रा धीरे-धीरे विस्तृत होती जाती है. हर काल में ज्ञान के प्यासे विद्यार्थियों के लिए यह यात्रा बहुत रोचक, सुखद और लाभकारी रही है. सब जानते हैं कि ज्ञान का सागर जितना विस्तृत है, उतना ही गहरा भी और पुस्तकें ज्ञान और कालान्तर में सफलता और सम्मान हासिल करने में  अहम भूमिका निभाती है. बहरहाल इन्टरनेट, फेसबुक, इन्स्टाग्राम, ट्विटर, व्हाट्सएप आदि के मौजूदा दौर में कोर्स की किताबों  के अलावे साहित्य, इतिहास, दर्शन, अध्यात्म आदि की किताबों को पढ़ने का चलन कुछ कम हो रहा है, अलबत्ता बहुत सारे विद्यार्थी अपनी रूचि के अनुसार ऑनलाइन और ऑफलाइन  कुछ-कुछ पढ़ते रहते हैं. लेकिन क्या इतना काफी है और क्या सभी  विद्यार्थी अपने व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास में किताबों की अहमियत से पूर्णतः परिचित हैं ? सच पूछें तो  कुछ विद्यार्थियों को छोड़कर जो पुस्तकों को सिर्फ डिग्री पाने का साधन मानते हैं, बाकी सभी विद्यार्थी कमोबेश यह मानते  हैं कि आज के चुनौती भरे दौर में  पुस्तकों से दोस्ती बनाए रखना बीते सालों की तुलना में ज्यादा जरुरी है, बेशक  किताबों का स्वरुप और उसको पढ़ने का तरीका कुछ भिन्न ही क्यों न हो. 

 
दरअसल, मानव जीवन में पुस्तकों का बड़ा महत्व है. मानव सभ्यता के विकास का दस्तावेज हैं पुस्तकें, प्राचीन काल से अबतक के समय में असंख्य लोगों की रचनात्मकता, कल्पनाशीलता, वैज्ञानिकता, संघर्षशीलता आदि को बखूबी रेखांकित करती है पुस्तकें. साथ ही विनाश और आपदा के पलों का विश्लेषण भी यहां मौजूद है. जानेमाने रंगकर्मी सफदर हाशमी अपनी एक कविता में कहते हैं, "किताबें करती हैं बातें/बीते ज़मानों की/दुनिया की, इंसानों की/आज  की, कल की/एक-एक पल की/ख़ुशियों की, ग़मों की/फूलों की, बमों की/जीत की, हार की/प्यार की, मार की/क्या तुम नहीं सुनोगे/इन किताबों की बातें?/किताबें कुछ कहना चाहती हैं/तुम्हारे पास रहना चाहती हैं... ..." ज्ञातव्य है कि किताबों के माध्यम से संसार भर के देशों के साहित्य, उनका खानपान, उनकी जीवनशैली, वहां की जलवायु, उनकी शिक्षा और शासन पद्धति आदि न जाने कितनी बातें हम घर बैठे जान पाते हैं. इससे हम एक दूसरे के कॉमन लिंक्स और प्राथमिकताओं के विषय में जानकार परस्पर करीब आते हैं. एक प्रकार से पुस्तक हमारे लिए फ्रेंड, फिलोसफर और गाइड है. 
अमेरिकी शिक्षाविद् चा‌र्ल्स विलियम एलियोट तो कहते हैं, "किताबें  दोस्तों में सबसे शांत और स्थिर हैं; वे सलाहकारों में सबसे सुलभ और बुद्धिमान हैं, और शिक्षकों में सबसे धैर्यवान." तो आइए आज जानते हैं कि पुस्तकों से  दोस्ती को कैसे बनाए रखा जाय और इस दोस्ती के कौन-कौन से बड़े लाभ हैं.  
    
दिनभर के टाइम टेबल की समीक्षा करते हुए कोर्स के किताबों के अलावा अन्य किताबों के लिए रोजाना कुछ समय निर्धारित कर दें. शुरू में अपने रूचि के विषयों से संबंधित केवल दो किताबों को साथ रख लें. दिन में साहित्य या मैनेजमेंट या जनरल स्टडीज  की एक अच्छी किताब लें. रात में सोने से पहले कोई मोटिवेशनल या अध्यात्मिक किताब पढ़ें. इससे आपको प्रेरणा, प्रोत्साहन और मन की शांति मिलेगी. दोनों तरह की किताबों से ज्ञानवर्धन तो होगा ही. हां, आपको  कोर्स की किताबों को पढ़ने के बाद जब भी ब्रेक या अवकाश मिले, तब भी इन किताबों को पढ़  सकते हैं. इस सिलसिले को अगले 60 दिनों तक जारी रखने  से यह आपकी आदत में शुमार हो जाएगा और फिर तो आप किताबों की मैजिकल संसार के आजीवन सदस्य बन जायेंगे. 


अब कुछ बातें इसके असीमित फायदों की. जब और जहां इच्छा हो पुस्तक पढ़ना आसान है. खासकर तन्हाई और लॉक डाउन जैसी स्थिति की सबसे अच्छी हमसफर होती हैं किताबें. अपनी रूचि की किताबों को पढ़ने से अच्छा फील होता है. इससे आगे पढ़ने की इच्छा बलवती होती है. इस प्रक्रिया में एकाग्रता से अध्ययन करने का अभ्यास हो जाता है. यकीनन अच्छी किताबें विद्यार्थियों को अच्छी जानकारी और ज्ञान देने के अलावे उन्हें प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से मोटीवेट भी करती हैं. अच्छा वक्ता बनने में इससे बहुत मदद मिलती है. दिमाग अच्छे विचारों और पॉजिटिव बातों  में व्यस्त रहता है. नकारात्मकता में कमी से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य अच्छा बना रहता है. परिणाम स्वरुप स्ट्रेस की समस्या नहीं होती और अच्छे कार्यों  में समय बिताना अच्छा लगता है. ऐसे में मेमोरी पॉवर भी उन्नत होता है. इन सब पॉजिटिव बातों का समग्र प्रभाव रात में अच्छी नींद के रूप में सामने आता है. किताबों से रिश्ते के और भी कई छोटे-बड़े फायदे हैं. तभी तो नोबेल पुरस्कार विजेता प्रसिद्ध 
अमेरिकी उपन्यासकार अर्नेस्ट हेमिंग्वे गर्व से कहते हैं, "एक किताब जितना वफादार कोई दोस्त नहीं है."

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# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता"  में प्रकाशित
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Friday, June 26, 2020

मोटिवेशन: जिंदगी जीने का नाम

                            - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

भगवान बुद्ध कहते हैं, "ख़ुशी इसपर निर्भर नहीं करती कि आपके पास क्या है  या आप क्या हैं. ये पूरी तरह से इस पर निर्भर करती है कि आप क्या सोचते हैं." सच कहें तो यह विचार हमें दुःख की  मानसिकता से बाहर निकालने में भी बहुत मदद करता है. जीवन गतिशील है और हर विद्यार्थी को अपने सपनों को साकार करने और अपने छोटे-बड़े लक्ष्यों तक पहुंचने की स्वाभाविक इच्छा होती है. स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी में पढ़नेवाले विद्यार्थियों की संख्या बहुत बड़ी है. विद्यार्थियों में सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक विविधता भी बहुत है. लेकिन हर साल या हर सेमेस्टर के रिजल्ट के दिन रिजल्ट शीट में वही विद्यार्थी टॉप टेन या ट्वेंटी में जगह हासिल कर पाते हैं, जो हमेशा सोच के स्तर पर पॉजिटिव और यथार्थवादी बने रहते हैं. महात्मा गांधी का स्पष्ट कहना है, "व्यक्ति अपने विचारों के सिवाय कुछ नहीं है. वह जो सोचता है, वह बन जाता है." सचमुच, इन महापुरुषों के विचारों पर गौर करें तो विद्यार्थियों के लिए जीवन पथ पर दृढ़ता और ख़ुशी-ख़ुशी बढ़ते जाना आसान हो जाएगा. भगवान बुद्ध और महात्मा गांधी का जीवन इसका ज्वलंत प्रमाण है.


कभी ख़ुशी, कभी गम के मिलेजुले दौर से हर विद्यार्थी गुजरता है. यह सही है कि सभी छात्र-छात्राएं ऐसा जीवन जीना चाहते हैं जहां ज्यादा-से-ज्यादा ख़ुशी हो और कम-से-कम गम. इसके लिए सब अपने-अपने तरीके से जीवन जीने का प्रयास करते हैं. ज्ञानीजन बराबर कहते रहे हैं कि पूरी निष्ठा और विश्वास से यथासंभव प्रयास करते रहें. कभी भी किसी काम को बीच में न छोड़ें. फल क्या होगा इसकी चिंता कार्य करते वक्त कदापि ना करें. एक किसान के बारे में सोचें. अगली फसल  के लिए जमीन को जोतते या तैयार करते वक्त या जमीन में बीज डालते या पौधा लगाते समय वह फल के विषय में ज्यादा नहीं सोचता है. वह बस इस आत्मविश्वास से काम करता है कि जो कुछ हमारे अख्तियार में है, उसे सर्वश्रेष्ट तरीके से करते हैं. उसे अच्छी तरह मालूम होता है कि मौसम सहित कतिपय बाहरी फैक्टर्स अपेक्षित फल पाने में अवरोध बन सकते हैं. ऐसा कई बार होता भी है. लेकिन इस कारण किसान अपना 100 % देने से बचने की कोशिश नहीं करता. देखा गया है कि अधिकांश समय उसे अपनी कोशिशों के अनुरूप ही फल मिलता है. अनेकानेक विद्यार्थी किसान की मानसिकता से ही अध्ययन में जुटे रहते हैं. खूब मेहनत करते हैं. नकारात्मकता से भरसक दूर रहते हैं और इसी कारण खुश भी रहते हैं. कामयाबी तो मिलती ही है.
                                   
एक सच्ची घटना बताता हूँ. एक दिन दो मित्र अपने-अपने घर से एक ही ऑटो में  रेलवे स्टेशन की ओर चले. उन्हें एक प्रतियोगिता परीक्षा के लिए प्रदेश की राजधानी जाना था. घर से स्टेशन के बीच जाम के कारण वे लोग कुछ देर से स्टेशन पहुंचे. टिकट लेकर जब तक वे प्लेटफार्म पर  पहुंचते उनकी ट्रेन निकल चुकी थी. दोनों को बहुत अफ़सोस हुआ. लेकिन उनमें से एक ने तुरत उस गम को पीछे छोड़कर यह सोचना शुरू किया कि जो होना था वह तो हो गया, अब विकल्प क्या है? वह मोबाइल के जरिए यह पता करने में जुट गया कि ट्रेन या बस या टैक्सी से समय से राजधानी पहुंचना संभव है या नहीं. दूसरी ओर उसका साथी थोड़ी देर तो माथा पकड़ कर बैठा रहा, फिर ऑटोवाले और सड़क पर जाम के लिए पुलिसवाले और न जाने किसको-किसको कोसने लगा. इसके बाद  ट्रेन मिस करने के विषय में विस्तार से किसी दोस्त को बताता रहा. उसने तो गम की दरिया में न जाने इस बीच कितने गोते लगाए. और फिर जब साथ चल रहे लड़के को घर लौटने को कहने लगा तब उसे बताया गया कि चिंता की कोई खास बात नहीं है, क्यों कि एक ट्रेन जो तीन घंटे लेट चल रही है वह अगले बीस मिनट में आनेवाली है जिससे वे लोग  गंतव्य तक कमोबेश ठीक समय से पहुंच जायेंगे. इस वाकया से यह साफ़ है कि एक ही घटना को दो अलग-अलग मानसिकतावाले विद्यार्थी ने अलग-अलग रूप में लिया और तदनुसार रियेक्ट किया.
  
विचारणीय बात है कि  परेशानी या गम का वक्त सभी छात्र-छात्राओं को  हमेशा एक मौका देता है खुद को संयत और शांत रखकर उस समय उपलब्ध संभावित विकल्पों पर विचार करने का और उनमें से सबसे अच्छे विकल्प का उपयोग करके मंजिल तक पहुंचने का. परेशानी के समय परेशान होने, उत्तेजित होने, खुद को और परिस्थिति को कोसने का कोई लाभ नहीं होता. नुकसान तो अवश्य होता है. कहने का मतलब यह कि विद्यार्थीगण ख़ुशी या गम को जीवन का महज एक पड़ाव मानकर पॉजिटिव सोच के साथ बस अपना मूल काम करते रहें तथा जीवन को एन्जॉय करते चलें. जो होगा, सब बढ़िया होगा.  

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Tuesday, June 2, 2020

वेलनेस पॉइंट: लॉक डाउन में छूट से बचाव की बढ़ी चुनौती

                               - मिलन  सिन्हा, वेलनेस कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
कई आर्थिक-सामाजिक कारणों से कोविड 19 लॉक डाउन में ढील देने का सिलसिला शुरू हो चुका है, लेकिन कोरोना वायरस से संक्रमित होने का खतरा बरकरार है. लाखों की संख्या में कामगारों और मजदूरों का सामान्य-असामान्य तरीके से घर लौटना जारी है. कार, बस, ट्रेन और फ्लाइट का परिचालन प्रारंभ हो चुका है. अगले कुछ दिनों में मार्केट और अन्य सार्वजनिक स्थानों में लोगों की भीड़ बढ़ेगी जब धीरे-धीरे आर्थिक और अन्य गतिविधियां सामान्य होने लगेंगी.  दूसरी ओर कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, बेशक कोरोना पॉजिटिव लोगों के स्वस्थ होकर घर लौटने का प्रतिशत भी बढ़ रहा है. चिकित्सा एवं हेल्थ विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दिन बहुत चुनौतीपूर्ण होंगे. बड़ा सवाल है कि करोड़ों लोग जो लॉक डाउन के कारण चाहे-अनचाहे घर में सुरक्षित रहने के आदी हो चुके हैं, जब उनमें से एक बड़ी संख्या को घर से बाहर जाना पड़ेगा तो फिर उन्हें कोरोना के संक्रमण से खुद बचे रहने और अपने परिवार के लोगों को बचाए रखने के लिए क्या करना चाहिए जिससे कि सभी रोगमुक्त और हेल्दी रह सकें? 

यकीनन यह चुनौती लॉक डाउन वाली चुनौती से भिन्न है और एक प्रकार से बड़ी भी. अब कामकाजी लोगों को अपने-अपने काम के सिलसिले में हफ्ते में 5-6 दिन रोजाना 8-10 घंटे घर से बाहर रहना पड़ेगा. किसी-न-किसी कारण से घर में भी बाहरी लोगों का आना-जाना कमोबेश  शुरू हो जाएगा. घर की महिलाओं और बच्चों को भी मार्केट, कोचिंग, ट्यूशन आदि के लिए निकलना पड़ेगा. इन सारी परिस्थिति में लोगों को कुछ अहम बातों का अनुपालन स्वयं काफी जिम्मेदारी और सख्ती से करना पड़ेगा. 

स्वस्थ तन सुन्दर मन:

बेहतर होगा कि चार कहावत को हमेशा याद रखें और तदनुरूप कार्य करें. पहला यह कि "जान है तो जहान है," दूसरा "हेल्थ इज वेल्थ अर्थात स्वास्थ्य ही संपत्ति  है,"  तीसरा "सावधानी गई और दुर्घटना घटी" और चौथा यह कि "रोकथाम इलाज से बेहतर" है. इसके बाद भी अगर किसी दुर्घटनावश संक्रमित और बीमार हो गए तो तनिक भी घबराए बगैर तुरत यथोचित मेडिकल ट्रीटमेंट करवाएं. अनावश्यक रूप से घबराना आपके साथ-साथ आपके परिवार के लिए अन्य कई हेल्थ प्रॉब्लम का कारण बन सकता है. ऐसे भी हमारे देश में कोरोना पॉजिटिव से नेगेटिव होनेवालों की संख्या उत्साहवर्धक है. आनेवाले महीनों में वैक्सीन तथा सही मेडिसिन की खोज और उपलब्धता की पूरी उम्मीद भी है. 

हां, सबको समय-समय पर यह बताना जरुरी है कि अपवादों को छोड़कर लॉक डाउन का ऑफिसियल दौर ख़त्म  हो रहा है और उसी के साथ स्व-अनुशासन वाला लॉक-डाउन अर्थात  "अपना लॉक डाउन" शुरू हो गया है. इस दौर में ज्यादा सावधान, सचेत, शांत और अंदर से पूर्णतः स्वस्थ और स्ट्रांग बने रहना जरुरी है. 
    
तो आइए संकट के इस पड़ाव पर मुख्यतः सेहत की दृष्टि से इस चर्चा को आगे बढ़ाते हैं. 

पहले घर से शुरू करते हैं : रहें सदा सेहतमंद 

- लॉक डाउन से मिले सबक से अपने और अपने परिवार के हेल्थ को अपने एजेंडा में सदा पहले नंबर पर रखें. घर के लिए कुछ बुनियादी बातों को तय कर एक रूटीन बना लें जिसे मोटे तौर पर आगे फॉलो करना है. इसे बैलेंस्ड लाइफस्टाइल के सूत्र कह सकते हैं. परिवार के अन्य सदस्यों को भी इसके लिए प्रेरित करें, क्यों कि एक की गलती अन्य सबके लिए आफत बन सकती है.  
- लॉक डाउन के पिछले करीब साठ दिनों की अवधि में आपने जो भी अच्छी आदतें दिनचर्या में शामिल की हैं, उन्हें दृढ़ता से आगे जारी रखें. इसके हेल्थ बेनिफिट आगे भी आपको ही मिलेंगे.  
- इस समय रात में 7-8 घंटे की नींद का आनन्द लेने का सुनहरा मौका है. नींद एक अदभुत मेडिसिन है. इससे स्वास्थ्य को बहुत लाभ होता है. 
- सुबह नींद से उठने के बाद बैठ कर आराम से गुनगुना पानी पीएं. अच्छी सेहत के लिए हाइड्रेटेड और ऑक्सीजिनेटेड रहना लाजिमी है. 
- नित्य कर्मों से निवृत होकर कम-से-कम 20-30 मिनट फ्री हैण्ड एक्सरसाइज या पवनमुक्तासन समूह के कुछ आसन कर लें. सारे अंग सक्रिय होंगे. इससे आप हल्का और अच्छा फील करेंगे. 
- कोविड 19 संकट के मौजूदा वक्त में शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए प्राणायाम और मेडीटेशन का नियमित अभ्यास बहुत लाभकारी है. इससे हमारा रेस्पिरेटरी और नर्वस सिस्टम सहित सभी तंत्र बेहतर काम करते हैं. अभी सुबह-शाम नाश्ते से थोड़ा पहले 20-30 मिनट इनका अभ्यास करें. 
- तुलसी, काली मिर्च, लोंग, दालचीनी और अदरक से बना एक कप काढ़ा  सुबह - शाम चाय  की तरह पीएं. आंवला, नींबू सहित विटामिन सी बहुल चीजों के सेवन के साथ-साथ अन्य आसान तरीकों से अपने इम्यून सिस्टम को हमेशा स्ट्रांग बनाए रखने का प्रयास जारी रखें. सम्प्रति इसकी जरुरत अपेक्षाकृत अधिक है. 
- घर का बना सात्विक एवं पौष्टिक खाना ही खाएं, बेशक मन फ़ास्ट फ़ूड या नॉन वेजीटेरियन या चटपटा खाने के लिए मचलता हो. "हम बीमार तो घर परेशान" वाली बात को बराबर ध्यान में रखें. खाने में मौसमी फल और सब्जी को जरुर शामिल करें. रोज रात में सोने से पहले एक गिलास गर्म दूध में आधा चम्मच हल्दी पाउडर डाल कर पीएं. 
- संभव हो तो जरुरी घरेलू कार्यों को आपसी सहयोग से कर लें, जिससे कि अगले कुछ हफ़्तों तक घरेलू काम करनेवालों (डोमेस्टिक हेल्प) को घर बुलाने की जरुरत न हो.     
- लॉक डाउन के दौरान अस्थमा, डायबिटीज, हाइपरटेंशन, ह्रदय रोग, किडनी, लीवर आदि के जो मरीज, खासकर सीनियर सिटीजन अपने डॉक्टर से रेगुलर चेकअप से वंचित रह गए थे और किसी तरह पहले बताई गई दवाइयों से काम चला रहे थे, अब वे एक बार डॉक्टर से बात करके जांच करवा लें. इससे शारीरिक लाभ के साथ-साथ मानसिक संतोष व शांति भी मिलेगी.

अब बाहर की बात: घर से बाहर जाने पर बरतें ये सावधानियां 

- स्थानीय प्रशासन द्वारा समय-समय जारी निर्देशों का पूर्णतः पालन करें. मसलन जब भी घर से बाहर निकलें मास्क जरुर पहनें, दो गज दूरी बनाकर रखें, भीड़वाले जगह में जाने से बचें, हाथ मिलाने या गले मिलने से तौबा करें. संभव हो तो दस्ताने और चश्मा का उपयोग भी करें. 
- टहलने का मन करे तो अभी कुछ और दिनों तक छत पर या अपने कंपाउंड में ही टहल लें. विकल्प के रूप में कहीं भी स्पॉट जम्पिंग या रनिंग कर सकते हैं. 
- बिलकुल जरुरी हो तभी मार्केट जाएं और वह भी उस समय जब भीड़ की संभावना कम जान पड़े.  एक छाता लेकर बाजार जाएं. इससे धूप व बारिश से बचाव होगा और एक-दूसरे से दूरी भी बनी रहेगी. पेमेंट डिजिटल तरीके से करने का प्रयास करें. मार्केट का काम जल्द पूरा कर घर लौटें. दोस्त आदि मिल भी जाएं तो वहां रुककर लंबी बात करने के बजाय घर लौट कर फोन पर पूरी बात कर लें.  
- घर में आकर पहले खुद को अच्छी तरह स्वच्छ एवं सेनिटाइज करें. जूते-चप्पल बाहर निकाल दें. ये बातें लॉक डाउन के वक्त बारबार बताई गई हैं. बस उसे याद रखकर काम करना है. 
- संभव हो तो कम भीड़वाले रास्ते से अपने वर्क प्लेस पहुंचे, बेशक दूरी थोड़ी ज्यादा तय करनी पड़े. बस, लोकल ट्रेन, कैब आदि में सरकारी गाइड लाइन फॉलो करें और अतिरिक्त एहतियात बरतें. ऑफिस पहुंचकर साबुन से हाथ व चेहरा धो लें. साथ में एक हैण्ड सेनिटाइजर तो रखें ही. 
- वर्क प्लेस में ऐसे आरामदेह और वाशेवल कपड़े पहनकर जाएं जिससे शरीर कमोबेश ढका रहे. मसलन पूरे बांह की कमीज और फुल पेंट. इसे घर लौटकर तुरत वाश कर लें. मतलब एक ड्रेस को बिना साबुन या डिटर्जेंट से धोए दुबारा न पहनें.    
- अपने कार्य स्थल पर खाना और पानी फिलहाल घर से ही ले जाएं. जो ले गए हैं उसे ही खाएं. दूसरों को न अपना खाना शेयर करें और न ही उनके प्लेट या टिफ़िन से कुछ लें. फिलहाल भावनात्मक भाईचारा निभाएं. इस दौरान बाहर की चीजें बिलकुल न खाएं. हां, गुनगुना पानी  पीने की आदत डालें. इससे स्वास्थ्य संबंधी अनेक लाभ होंगे. ठंडा पानी या सॉफ्ट ड्रिंक्स पीने से अभी जितना बच सकें, उतना अच्छा. 
- ऑफिस या कार्य स्थल में अपना सब काम यथासंभव ऑफिस टाइम के भीतर ख़त्म करने का प्रयास करें. और फिर वहां से सीधे घर के लिए निकलें. अगर आप बॉस भी हैं तो यह भी सुनिश्चित करें कि ऑफिस टाइम के बाद ऑफिस बंद हो जाए, जिससे सब लोग समय से घर पहुँच सकें. इससे सारे स्टाफ का स्ट्रेस कम होगा और वे अपना व अपने परिवार का बेहतर ख्याल रख पायेंगे.
- ऑफिस के नाम पर अनावश्यक रूप से बाहर समय बिताना और मद्दपान, धुम्रपान आदि के चंगुल में फिर से फंसना आपके स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक है. घरवालों को भी इस पर नजर रखनी चाहिए.    
- घर लौट कर हेलमेट, चाभी, लैपटॉप, फाइल आदि को सेनिटाइज कर बच्चों की पहुँच से दूर एक सुरक्षित स्थान पर रखें. बहुत जरुरत हो तभी घर में उनका इस्तेमाल करें वह भी दुबारा सेनिटाइज करके. हेल्दी लाइफ हेतु पर्सनल हाइजीन की अहमियत को तो आप अच्छी तरह जानते ही हैं.
- फ्रेश होकर टीवी में नेगेटिव न्यूज़ में व्यस्त हो जाने के बजाय परिवार के लोगों के साथ बातें करें, लूडो, कैरम आदि खेल खेलें या कॉमेडी सीरियल-फिल्म देखें या एनिमल प्लानेट चैनल देखें या कोई साहित्यिक-अध्यात्मिक-मोटिवेशनल किताब पढ़ें या संगीत का आनंद लें. कहने की  जरुरत नहीं कि एकाधिक मामलों में संगीत बेहद प्रभावी औषधि का काम करता है.
- स्थिति सामान्य होने तक पार्टी या सोशल गेदरिंग से दूर रहें, पर इमोशनल क्लोजनेस बनाए रखें. जिसकी जितनी मदद कर सकते हैं, जरुर करें. इस क्रम में खुद को भी महफूज रखें.  
- सबसे अहम बात यह कि अपने सोच को सदा पॉजिटिव रखें. इसका हमारी सेहत पर गहरा असर होता है. देखा गया है कि कोविड 19 से पीड़ित हों या अन्य किसी रोग से, पॉजिटिव सोचवालों की रिकवरी अधिक फ़ास्ट होती है.   (hellomilansinha@gmail.com)

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# दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में 27 मई, 2020 को प्रकाशित
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Friday, May 22, 2020

वेलनेस पॉइंट: लॉकडाउन की लक्ष्मण रेखा में नशामुक्ति का मौका

                                 - मिलन  सिन्हा,  वेलनेस कंसलटेंट एवं मोटिवेशनल स्पीकर
सम्प्रति भारत सहित पूरा विश्व गंभीर दौर से गुजर रहा है. आर्थिक और  सामाजिक सहित अनेक क्षेत्रों में कई परिवर्तनों से हम सभी रूबरू हैं. आनेवाले दिनों में होनेवाले अनेक छोटे-बड़े बदलावों के स्पष्ट संकेत भी मिलने लगे हैं. अपने देश में लॉक डाउन के मौजूदा समय में कई तरह की  समस्या और संकट के बीच हमें अनेक नए व सुखद अनुभवों से गुजरने का मौका भी मिल रहा है, जो कदाचित मुमकिन नहीं था. पर्यावरण की बात करें तो वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण में अकल्पनीय कमी आई है. इससे पर्यावरण की सेहत अदभुत रूप से अच्छी हुई है. इस समय  तीन सौ किलोमीटर दूर से भी हिमालय पर्वत श्रृंखला का साफ़ दिखाई देना या गंगा, यमुना और अन्य नदियों में जल की गुणवत्ता में अप्रत्याशित सुधार होना या पक्षियों-तितलियों की बहुत बड़ी संख्या में उन्मुक्त विचरण करना इसके गवाह हैं. इन सबका समेकित सकारात्मक प्रभाव हमारे स्वास्थ्य पर गहरे रूप से पड़ना स्वाभाविक है. बेशक मज़बूरीवश लॉक डाउन के इस दौर में  आम लोगों, खासकर नियमित नशा करनेवाले लोगों के जीवनशैली में आए अच्छे बदलाव पर  गौर करना भी जरुरी है.
    
बताते चलें कि देश में नशा करनेवालों की संख्या में पिछले कई वर्षों से निरंतर वृद्धि होती रही है. नशीली चीजों की किस्में और प्रभावक्षेत्र दोनों में विस्तार हो  रहा है. अच्छी संख्या में महानगर से लेकर ग्रामीण  इलाके में रहनेवाले गरीब-अमीर लोग नशे की चपेट में आ रहे हैं. आंकड़े बताते हैं कि आम तौर पर सिगरेट, गुटखा, तम्बाकू, भांग, गांजा, ताड़ी, शराब, चरस, अफीम, कोकीन और  हेरोइन जैसे नशीली चीजों के लत में पड़े लाखों लोगों में से नियमित रूप से बड़ी संख्या में लोग फेफड़ा, ह्रदय, लीवर, किडनी, ब्रेन, त्वचा के रोगों के शिकार होते हैं. कैंसर पीड़ित लोगों में इनकी संख्या सबसे ज्यादा है. हां, घर में पौष्टिक आहार उपलब्ध होने पर भी बाहर का जंक, बासी और अस्वच्छ खाना खाने की आदत भी एक नशे के समान ही है. इस लत के कारण अपने बॉडी सिस्टम को प्रदूषित करते रहने और फिर बीमार पड़नेवाले लोगों की संख्या भी तेजी से बढ़ रही है.
  
दरअसल, नशा करनेवालों के परिवारवाले  अपने स्वजनों से परेशान रहते हैं और उनको इससे दूर रहने को कहते भी हैं, अपने तरीके से प्रयास भी करते हैं. कई परिवारों में लड़ाई-झगड़े, अशांति और तनाव का यह एक बड़ा कारण भी रहा है. हां, यह भी सही है कि नशा के शिकार कई लोग खुद इसे छोड़ना चाहते हैं. तभी तो देशभर के नशामुक्ति केन्द्रों और डॉक्टरों के पास ऐसे लोगों की भीड़ लगी रहती है. लेकिन आंकड़े बताते हैं कि नशा छोड़नेवाले लोगों की संख्या नशे के कारण विभिन्न रोगों से मरनेवालों की संख्या से अभी भी कम है. यह दुखद स्थिति है.

लॉक डाउन के कारण बाध्यतावश ही सही, नशा करनेवाले अधिकांश लोगों को इसकी आपूर्ति लगभग बंद हो गई. जिन्हें दिनभर में कम-से-कम चार-पांच सिगरेट या हर घंटे-दो घंटे में गुटखा का छोटा पैकेट, भांग का एक-दो गिलास या गांजा का दस-बीस कश या शराब का दो-चार पैग  का सेवन किए बगैर दिन काटना और रात में सोना मुश्किल होता था, अब चाहे-अनचाहे उनमें से ज्यादातर लोगों को इसके बिना जीने की आदत होने लगी है. गौर करनेवाली बात यह है कि  बिना किसी नशा मुक्ति केंद्र या डॉक्टर के पास गए या घरवालों के अतिशय दबाव के यह सब संभव हो गया. यह सकारात्मक एवं सुखद बदलाव है. यकीनन,  इसका बहुआयामी सकारात्मक असर उनके आर्थिक स्थिति के साथ-साथ शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है.

अब एक बहुत अहम बात. जो लोग नशे की लत को इस बीच छोड़ चुके हैं, वे यकीनन संकल्प शक्ति के तो धनी हैं ही. तथापि इसे और मजबूत करने की जरुरत है, जिससे किसी भी कारण से वे पुनः इसके चपेट में न आ जाएं. बस मन को बराबर यह समझाते रहना है कि जो गलत था उसे जब इस लॉक डाउन के प्रभाव से ही सही एक बार छोड़ दिया तो बस छोड़ दिया. अब उससे कोई वास्ता नहीं रखना है, चाहे एकाध बार भी मन उसकी तरफ भागने की चेष्टा करे, चाहे दोस्त-मित्र इसके लिए कितना भी प्रलोभित या प्रेरित करें या चाहे लॉक डाउन में कुछ छूट के बाद नशे की ये वस्तुएं पूर्ववत आसानी से उपलब्ध हो. मन में हो विश्वास तो आप जरुर होंगे कामयाब. निसंदेह, ऐसे  समय घर के लोगों और अच्छे दोस्तों की भूमिका बहुत अहम साबित होती है. 
  
आइए जानते हैं स्वास्थ्य संबंधी इन पांच बड़े फायदों के बारे में.

1.आम तौर पर नशा छोड़ने पर खाने में सही स्वाद मिलता है और भोजन में शामिल पौष्टिक तत्वों के सही पाचन और अवशोषण का अपेक्षित लाभ भी. इससे शरीर के सारे सेल्स सक्रिय होते है और रक्त संचार में सुधार होता है. फलतः इम्यून सिस्टम और मेटाबोलिज्म में सुधार होने से दूसरे किसी बीमारी की चपेट में आने से बचे रहना भी आसान हो जाता है. व्यक्तिगत और घरेलू स्ट्रेस में आशातीत कमी आती है. 

2. सिगरेट या बीड़ी या गांजा के सेवन से मुक्त होनेवाले लोगों को टीबी, हाई बीपी, न्यूरो प्रॉब्लम,   और ह्रदय रोग के अलावे बड़े स्तर पर कैंसर से बचे रहने में मदद मिलती है. अगर इन रोगों में से किसी एक या ज्यादा रोग से पीड़ित हो चुके हैं तो उचित चिकित्सा द्वारा जल्दी ठीक होने की संभावना भी बढ़ जाती है. इससे श्वसन तंत्र में बहुत सुधार होता है. 

3. गुटखा, खैनी, जर्दा आदि के सेवन से छुटकारा पाने पर खासकर मुंह और गले के कैंसर से बचे रहना आसान हो जाता है. पाचन तंत्र ठीक से काम करने लगता है. रक्त प्रवाह में सुधार होता है इससे कई लाभ होते हैं.

4. शराब का सेवन करनेवाले लोग इससे मुक्त होने पर लीवर, किडनी और ह्रदय की बीमारी के अलावे मधुमेह में गुणात्मक सुधार के भागी बनते हैं. उनकी संकल्प शक्ति में बहुत सुधार होता है, जिसका सीधा लाभ उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है. अन्य कई छोटे-बड़े हेल्थ प्रोब्लम्स से भी बचे रहना संभव होता है. 
   
5. चरस, अफीम, कोकीन और हेरोइन के लत से मुक्त होने के बहुत लाभ हैं. आगे हर तरह के गंभीर बीमारियों से ग्रसित होने की प्रबल संभावना से बचे रहने और अब तक हो चुके नुकसान को ठीक करने का मौका मिल जाता है. इससे शरीर के श्वसन तंत्र से लेकर पाचन तंत्र तक सब को राहत मिलती है. इन नशीली वस्तुओं के उपयोग से गंभीर अवसाद और पागलपन की अवस्था में पहुंचे लोगों के लिए भी आगे एक हेल्दी लाइफ जीने के रास्ते खुल जाते हैं, बेशक समय थोड़ा ज्यादा लगता है. 
  
अंत में एक जरुरी बात और.

नशे की आदत से बाहर निकलने के दौर में ही अपनी जीवनशैली में सकारात्मक सक्रियताओं को शामिल करने की प्रक्रिया शुरू करना जरुरी होता है, जिससे बुरी आदत से एग्जिट सुगम होता  और यह महसूस भी होता है. कुछ दिनों तक नशे का हैंगओवर रहेगा जो दृढ़ निश्चय,  हेल्दी रूटीन और परिवारजनों के इमोशनल सपोर्ट से  शीघ्र समाप्त हो जाएगा. हां, इसके बावजूद भी अगर कभी मन घबराए तो घरवालों को बताने में संकोच न करे और साथ ही तुरत यह सोचें कि आखिर देश के 95 प्रतिशत से ज्यादा लोग अगर बिना नशे के हेल्दी और हैप्पी लाइफ लीड कर सकते हैं तो फिर मैं क्यों नहीं. जरुरत हो तो करके देखिएगा, अच्छा रिजल्ट मिलेगा. बहरहाल, पहले अपने शरीर की आंतरिक सफाई पर विशेष ध्यान दें, जिससे कि शरीर जल्द-से-जल्द डीटोक्सीफाई अर्थात विषैले तत्वों से मुक्त हो सके. यह महत्वपूर्ण काम सुबह की बेहतर शुरुआत से बहुत आसान हो जाएगा. ऐसे भी रात में जल्दी सोना, सुबह जल्दी उठना हमेशा से ही स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभकारी माना गया है. अच्छी नींद से स्वास्थ्य संबंधी बहुत सारी समस्याओं का समाधान स्वतः हो जाता  है. सुबह जल्दी उठने से हमें अपने शरीर को अच्छी तरह जलयुक्त और ऑक्सीजन युक्त करने का अच्छा वक्त मिल जाता है. गुनगुना नींबू पानी या  तुलसी-नीम-गिलोय के जूस आदि के सेवन से बहुत लाभ महसूस होगा.  नाश्ते से पहले सुबह खुले परिवेश में निष्ठापूर्वक व्यायाम, योग और ध्यान में आधे घंटे बिताना तन-मन दोनों को  रिचार्ज और रिफ्रेश कर देता है. इसके बाद आराम से पूरा स्वाद लेकर पौष्टिक ब्रेकफास्ट करें. इस समय नियमित रूप से घर का ताजा और शुद्ध खाना खाने से अनायास ही बहुत लाभ मिल जाता है. हां, कोशिश करें कि खाली समय में अपने किसी हॉबी जैसे पेंटिंग, कुकिंग, रीडिंग, ब्लॉग या डायरी राइटिंग आदि में व्यस्त रह सकें. बहुत अच्छा लगेगा. कहने की जरुरत नहीं कि लॉक डाउन के इस पॉजिटिव रिजल्ट को आप ताउम्र याद रखेंगे और इससे लाभान्वित भी होते रहेंगे.  (hellomilansinha@gmail.com)


             ...फिर मिलेंगे, बातें करेंगे - खुले मन से ... ...  
# दैनिक जागरण के सभी संस्करणों में 6 मई, 2020 को प्रकाशित
#For Motivational Articles in English, pl. visit my site : www.milanksinha.com

Friday, May 8, 2020

वेलनेस पॉइंट: शरीर को अंदर से सैनीटाइज करते हैं ये प्राणायाम व आसन

                                  - मिलन  सिन्हा, वेलनेस कंसलटेंट एवं योग विशेषज्ञ  
नोवेल कोरोना वायरस यानी कोविड-19 वैश्विक महामारी से भारत सहित दुनियाभर के 200 से ज्यादा देश दुष्प्रभावित हैं. लाखों लोग संक्रमित हो चुके हैं. यह संख्या निरंतर बढ़ रही है और इससे पीड़ित लोगों की मरने की संख्या भी. विश्व के दूसरे सबसे आबादीवाले देश होने और कोविड-19 के जन्मदाता देश चीन का पड़ोसी होने के बावजूद भारत की स्थिति अबतक अपेक्षाकृत बेहतर है. केंद्र और राज्य सरकारों के साथ-साथ देशभर की सामाजिक और स्वयंसेवी संस्थाएं लोगों को कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाए रखने और जो संक्रमित हो चुके हैं उनके उपयुक्त इलाज के लिए मिलकर काम कर रही हैं. केंद्र सरकार का आयुष मंत्रालय भी समय-समय पर लोगों को इसके संबंध में जरुरी जानकारी मुहैया करवा रही है. तथापि एकाधिक कारणों से बड़ी संख्या में आम लोग सशंकित, चिंतित और तनावग्रस्त हैं. इसका बुरा असर शरीर के रोग प्रतिरोधक क्षमता और मेटाबोलिज्म पर पड़ना स्वाभाविक है. इसके दुष्परिणाम बहुआयामी हो सकते हैं. समाज और सरकार के सामने यह एक बड़ी चुनौती है. 

ज्ञातव्य है कि नोवेल कोरोना वायरस यानी कोविड-19 के संक्रमण से हमारी श्वसन प्रणाली बुरी तरह प्रभावित होती है. वायरस का  पहला हमला हमारे गले के आसपास की कोशिकाओं पर होता है  जो जल्दी ही हमारे सांस की नली और फेफड़ों को संक्रमित कर स्थिति को जानलेवा तक बना देती है. नियमित योगाभ्यास, खासकर निम्नलिखित पांच प्राणायाम के अभ्यास से खुद को अन्दर से सेनिटाइज करना और बराबर वायरस से लड़ने में खुद को सक्षम बनाए रखना आसान  हो जाता है, क्यों कि इससे श्वसन नली एवं फेफड़े के प्रोब्लम्स से बचाव के अलावे उच्च रक्तचाप, न्यूरो प्रॉब्लम, ह्रदय रोग, मधुमेह, मानसिक तनाव आदि में भी काफी लाभ मिलता है. 

विश्व प्रसिद्ध योगाचार्य स्वामी सत्यानन्द सरस्वती के अनुसार प्राणायाम प्रक्रियाओं की वह श्रृंखला है जिसका लक्ष्य शरीर की प्राणशक्ति को उत्प्रेरणा देना, बढ़ाना तथा उसे विशेष अभिप्राय से विशेष क्षेत्रों में संचारित करना है. प्राणायाम का अंतिम उद्देश्य सम्पूर्ण शरीर में प्रवाहित 'प्राण' को नियंत्रित करना भी है.

कोशिश करें कि प्राणायाम का अभ्यास अपेक्षाकृत खुले स्थान पर किए जाएं अर्थात ऑक्सीजन और प्रकाश युक्त माहौल में. आइए प्राणायाम के उन पांच अभ्यासों के बारे में  जानते हैं. 

1. योग क्रिया: अनुलोम-विलोम प्राणायाम 
विधि: सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन में से ध्यान के किसी आसन में सीधा बैठ जाएं. शरीर को ढीला छोड़ दें. हाथों को घुटने पर किसी ध्यान मुद्रा में रख लें. आँख बंद कर लें. अब दाहिने हाथ के प्रथम और द्वितीय अँगुलियों को ललाट के मध्य बिंदु पर रखें और तीसरी अंगुली (अनामिका) को नाक के बायीं छिद्र के पास और अंगूठे को दाहिने  छिद्र के पास रखें. अब अंगूठे से दाहिने छिद्र को बंद कर बाएं छिद्र से दीर्घ श्वास लें और फिर अनामिका से बाएं छिद्र को बंद करते हुए दाहिने छिद्र से श्वास को छोड़ें. इसी भांति अब दाहिने  छिद्र से श्वास लेकर बाएं से छोड़ें. यह एक आवृत्ति है. 
अवधि:  कम-से-कम 5 मिनट रोजाना
सावधानी: मन को श्वास क्रिया पर केन्द्रित करें. जल्दबाजी या बलपूर्वक न करें.  
लाभ: सर्दी, जुकाम, सायनस, अस्थमा, खांसी, टोन्सिल आदि समस्त कफ रोग दूर होते हैं. सिरदर्द, माइग्रेन, उच्च रक्तचाप, न्यूरो प्रॉब्लम, ह्रदय रोग आदि के लिए भी लाभप्रद. 
  
2. योग क्रिया: कपालभाति प्राणायाम  
विधि: सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन में सीधा बैठ जाएं. पेट सहित पूरे शरीर को ढीला छोड़ दें. हाथों को घुटने पर किसी ध्यान मुद्रा में रख लें. आँख बंद कर लें और श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब रेचक यानी श्वास छोड़ने की प्रमुखता रखते हुए श्वसन अभ्यास करें. चूंकि इस प्राणायाम में  रेचक क्रिया में थोड़ा जोर लगाया जाता है, अतः हमारा पेट स्वतः थोड़ा भीतर की ओर जाएगा. आप पूरा ध्यान केवल सांस को बाहर निकालने पर केन्द्रित करें. 
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना
सावधानी: जो लोग नेत्र रोग से पीडि़त हैं या जिन्हें हाई ब्लड प्रेशर की समस्या है, वे इस प्राणायाम को किसी योग प्रशिक्षक से सलाह लेकर ही करें.
लाभ: इससे फेफड़ा स्वच्छ होता है. दमा, एलर्जी, सायनस, कब्ज, जुकाम आदि रोग के साथ-साथ  ह्रदय एवं मस्तिष्क के रोगों में भी लाभ मिलता है. मधुमेह से पीड़ित लोगों के लिए भी लाभप्रद.

3. योग क्रिया: भस्त्रिका प्राणायाम
विधि: ध्यान के किसी आसन यानी सुखासन, अर्धपद्मासन या पद्मासन में बैठ जाएं. अपने सिर और मेरुदंड यानी रीढ़ की हड्डी सीधी रखें और दोनों हाथ घुटने पर किसी ध्यान मुद्रा में रखें. आँख बंद कर लें और श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब थोड़ी तेज गति से बीस बार पूरक और रेचक यानी श्वास लें और छोड़ें. यह एक आवृति है. तीन आवृति से शुरू करें और अगले कुछ दिनों में सुविधानुसार बीस आवृति तक ले जाएं. इस क्रिया के अभ्यास से फेफड़ों का उपयोग लोहार की धौंकनी के तरह होता है. इससे फेफड़े से ऑक्सीजन से भर जाता है.  
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना
सावधानी: अगर हाई ब्लड प्रेशर या चक्कर आने संबंधी कोई बीमारी हो तो अपने डॉक्टर के एडवाइस से ही इस क्रिया को करें और वह भी किसी योग्य योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में. 
लाभ: फेफड़े को स्वच्छ, स्वस्थ और सबल रखने में बहुत लाभकारी. इस क्रिया से बहुत ताजगी और स्फूर्ति का अनुभव होता है. गले के रोग, सर्दी-जुकाम, एलर्जी, दमा आदि में भी लाभप्रद. 

4. योग क्रिया: उज्जायी प्राणायाम 
विधि: आराम के किसी भी आसन में सीधा बैठ जाएं. अपने सिर और मेरुदंड यानी रीढ़ की हड्डी सीधी रखें और दोनों हाथ घुटने पर किसी ध्यान मुद्रा में रखें. शरीर को ढीला छोड़ दें. अब अपने जीभ को मुंह में पीछे की ओर इस भांति मोड़ें कि उसके अगले भाग का स्पर्श ऊपरी तालू से हो. इसके बाद  गले में स्थित स्वरयंत्र को संकुचित करते हुए मुंह से श्वसन करें और और अनुभव करें कि श्वास क्रिया नाक से नहीं, बल्कि गले से संपन्न हो रहा है. ध्यान रहे कि श्वास क्रिया गहरी, पर धीमी हो. इसे 10-20 बार करें.  
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना 
सावधानी: जल्दबाजी न करें. मन को श्वास क्रिया पर केन्द्रित करें 
लाभ: गले को ठीक और नीरोग रखने के लिए काफी फायदेमंद. सर्दी-खांसी, ह्रदय रोग, अस्थमा, कंठ विकार, टोन्सिल, अनिद्रा, मानसिक तनाव से पीड़ित लोगों के लिए लाभप्रद है.

5. योग क्रिया: भ्रामरी प्राणायाम  
विधि: ध्यान के किसी भी आसन जैसे सुखासन, अर्धपद्मासन आदि में बैठ जाएं. मेरुदंड सीधा रखें. शरीर को ढीला छोड़ दें. आंख बंद कर लें. श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब प्रथम अँगुलियों से दोनों कान बंद कर लें. दीर्घ श्वास ले और भौंरे की तरह ध्वनि करते हुए अविरल रेचक करें तथा मस्तिष्क में ध्वनि तरंगों का अनुभव करें. यह एक आवृत्ति है . इसे 5 आवृत्तियों से शुरू कर यथासाध्य रोज बढ़ाते रहें. रोजाना 10 मिनट तक करें तो बेहतर परिणाम मिलेंगे.
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना 
सावधानी: जल्दबाजी न करें. श्वास क्रिया तथा ध्वनि लयबद्ध हो, इसका ध्यान रखें.  
लाभ: गले का रोग, मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप, ह्रदय रोग आदि में लाभप्रद. उत्तेजना और  मन की चंचलता दूर होती है. स्मरण शक्ति और सकारात्मक सोच बढ़ाने में सहायक.

तन-मन के रिलैक्सेशन के लिए शिथिलीकरण योग क्रिया :

स्वामी सत्यानन्द सरस्वती कहते हैं कि "आधुनिक वैज्ञानिक युग में लोग अनेक तनावों एवं दुश्चिंताओं के अधीन हैं. उन्हें नींद में भी आराम नहीं मिलता. ऐसे लोगों को जिस प्रकार के विश्राम की आवश्यकता है, उसे वे शिथिलीकरण के आसनों द्वारा निश्चित ही प्राप्त कर सकते हैं." आइए ऐसे दो आसान आसनों के विषय में जानते हैं.

1. योग क्रिया: शवासन 
विधि: दोनों हाथों को शरीर के बगल में रखते हुए पीठ के बल सीधा लेट जाएं. हथेलियों को ऊपर की ओर खुला रखें. पैरों को थोड़ा अलग कर लें. आखें बंद कर शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें. शरीर को शव की तरह पड़ा रहने दें. श्वास को सामान्य करते हुए आते-जाते महसूस करें. अब श्वास-प्रश्वास पर मन को केन्द्रित करते हुए उनकी गिनती शुरू कर दें. यानी श्वास को आते-जाते सजगता से अनुभव करें और गिनें भी. मन भटके तो उसे पुनः इस काम में लगाएं. कुछ मिनटों तक ऐसा करने पर तन-मन शिथिल हो जाएगा और आप बहुत रिलैक्स्ड फील करेंगे. 
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना. ऐसे आपको जब जरुरत महसूस हो इस क्रिया को करें.   
सावधानी: लेटने का स्थान समतल हो और आप श्वास-प्रश्वास के प्रति सचेत रहें.
लाभ: समस्त शारीरिक तथा मानसिक प्रणालियों को शिथिल करके विश्राम देता है. थकान, चिंता, तनाव और अवसाद में बहुत लाभकारी. सोने से पूर्व और योगाभ्यास के पश्चात इसका अभ्यास आदर्श माना जाता है.

2. योग क्रिया: मकरासन  
विधि: पेट के बल सीधा लेट जाएं. अब कुहनियों के सहारे सिर और कंधे को उठाएं तथा हथेलियों पर ठुड्डी को टिका दें. आखें बंद कर शरीर को बिल्कुल ढीला छोड़ दें. अब श्वास-प्रश्वास पर मन को केन्द्रित करते हुए उनकी गिनती शुरू कर दें. कुछ समय तक लगातार इस अवस्था में रहें. 
अवधि: कम-से-कम 5 मिनट रोजाना. ऐसे आपको जब जरुरत महसूस हो इसे आप करें.   
सावधानी: लेटने का स्थान समतल हो और आप श्वास-प्रश्वास के प्रति सचेत रहें.
लाभ: रिलैक्सेशन के अलावे इस आसन से दमा एवं फेफड़े के अन्य रोगों से ग्रसित लोगों को बहुत लाभ मिलता है. मेरुदंड की समस्या से पीड़ित लोगों के लिए भी काफी लाभप्रद. (hellomilansinha@gmail.com)


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