Friday, December 20, 2019

मोटिवेशन: प्राथमिकता प्रबंधन से पाएं सफलता

                                                                      - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ....
चाहे-अनचाहे आजकल सभी विद्यार्थीयों को कई बार एक साथ कई काम करने होते हैं. इन कार्यों या प्रोजेक्ट्स को  नियत समय सीमा के अन्दर अंजाम तक पहुंचाने की सामान्य अपेक्षा भी होती  है.  ऐसे भी अवसर आते हैं जब वे सारे कार्य इतने महत्वपूर्ण होते हैं और लगते भी हैं कि किसे पहले एवं किसे थोड़ी देर बाद में करें, फैसला करना मुश्किल हो जाता है. सच कहें तो मल्टी-टास्किंग के मौजूदा दौर में कई काम एक साथ करने का प्रेशर तो रहता है, लेकिन कई बार  एक साथ सब काम करना संभव नहीं होता. और -तो -और, ऐसी परिस्थिति में अगर सारे काम एक साथ करने की ठान भी लें, तथापि  सभी काम को सही तरीके से अंजाम तक पहुंचाना कई बार काफी जोखिमभरा भी साबित होता है. 

बहरहाल, सुबह उठने से लेकर रात में सोने से पहले तक सभी विद्यार्थी किसी-न-किसी काम में व्यस्त रहते हैं. पढ़ाई, परीक्षा, प्रतियोगिता और परिणाम के प्रेशर  के बीच  कई  विद्यार्थी सुबह पहले जो भी सरल एवं आसान काम सामने होता है उसे निबटाने में लग जाते हैं. लिहाजा, आवश्यक या महत्वपूर्ण या कठिन और मुश्किल काम या तो बिल्कुल नहीं हो पाता है या शुरू तो होता है, लेकिन एकाधिक कारणों से पूरा  नहीं हो पाता है. इस वजह से अहम काम या तो छूट जाते हैं या अधूरे रह जाते हैं. वे काम अगले दिन के एजेंडा में आ तो जाते हैं, लेकिन आदतन अगले दिन भी ऐसा ही कुछ होता है. इस तरह पढ़ाई हो या अन्य कार्य, छोटे, सरल और गैर-जरुरी काम तो किसी तरह होते रहते हैं, किन्तु महत्वपूर्ण और आवश्यक  कार्यों का अम्बार खड़ा होता रहता है. और तब उन्हें उतने सारे अहम कार्यों को तय सीमा में पूरा करना मुश्किल ही नहीं, असंभव लगने लगता है. इसका बहुआयामी दुष्प्रभाव उनके परफॉरमेंस पर पड़ना लाजिमी है. ऐसी स्थिति में आत्मविश्वास डोलने लगता है; बहानेबाजी और शार्ट-कट का सिलसिला चल पड़ता है. ऐसे में धीरे-धीरे उन्हें अपने  ज्ञान, कौशल एवं क़ाबलियत  पर अविश्वास-सा होने लगता है. उन्हें कठिन कार्यों  से डर और घबराहट होने लगती है. नतीजतन, ऐसे विद्यार्थी खुद को औसत या उससे भी कम क्षमतावान मानने लगते हैं और लोगों की नजर में भी वैसा ही दिखने लगते हैं.

इसके विपरीत कुछ विद्यार्थी सुबह पहले आवश्यक, महत्वपूर्ण और कठिन काम को यथाशक्ति   अंजाम तक पहुँचाने में लग जाते हैं. वे सभी काम पूरा हो जाने पर उन्हें  संतोष और खुशी दोनों मिलती है. अंदर से एक फील-गुड फीलिंग उत्पन्न होती है जिससे वे  अतिरिक्त उत्साह और उमंग से भर जाते हैं. आत्मविश्वास में इजाफा तो होता ही है. अब वे  बहुत आसानी और तीव्रता से आसान कार्यों को कर लेते हैं. शायद ही उनका कोई जरुरी काम छूटता है. अगले दिन काम करने की उनकी यही शैली होती है. वे चुनौतियों से घबराते  नहीं, बल्कि उनके स्वागत के लिए पूरी तरह तैयार रहते हैं. उनके लिए हर दिन एक नया दिन होता है और हर बड़ी-छोटी चुनौती से सफलतापूर्वक निबटना उनका मकसद.

कहना न होगा, आज के तेज रफ़्तार कार्य संस्कृति में जब कई बार सबकुछ फटाफट एवं अच्छी तरह करना होता है, तब प्राथमिकता तय करके कार्य करना अनिवार्य होता है. यहां  एलन लेकीन की इस बात पर गौर करना फायदेमंद होगा कि अपनी प्राथमिकताओं की समीक्षा करें और यह सवाल पूछें – हमारे समय का इस वक्त सबसे अच्छा उपयोग क्या है. 

दरअसल, लगातार अच्छी सफलता अर्जित करनेवाले सभी विद्यार्थी प्राथमिकता तय  करके काम करने को कामयाबी तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण सूत्र मानते हैं. लिहाजा, अगर अगले कुछेक घंटे में कई विषयों को पढ़ने  की चुनौती सामने होती है, तो उसमें से पहले कौन-सा पढ़ें और बाद में कौन-सा, अपनी समझदारी से 'प्राथमिकता के सिद्धांत' को लागू करते हुए वे विषयों को अति महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण और कम महत्वपूर्ण  की श्रेणी में रखकर न केवल सभी विषयों को यथासमय निबटाते हैं, बल्कि आगे उसके  परिणाम में बेहतरी भी सुनिश्चित कर पाते हैं. ऐसे विद्यार्थी आवश्यकता के अनुसार प्राथमिकता में थोड़ा -बहुत परिवर्तन के लिए मानसिक रूप  से पूरी तरह तैयार भी रहते हैं. 

बताने की जरुरत नहीं कि स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी के अत्यंत सफल, सफल और कम सफल विद्यार्थियों के बीच एक बड़ा फर्क इस बात का भी होता है. 
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Friday, November 22, 2019

वेलनेस पॉइंट: बेहतर स्वास्थ्य के लिए पानी पीने की कला में पारंगत होना बेहतर

                                - मिलन  सिन्हा,  हेल्थ मोटिवेटर  एवं  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 
हमारी पृथ्वी पर करीब 70% जल है, फिर भी विश्वभर में जल समस्या पर चर्चा आम है, चाहे वह प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता की बात हो, जल जनित बीमारियों से हर साल देश में मरनेवालों की बात या जल को लेकर राज्यों के बीच विवाद. हमारे स्वास्थ्य को सन्दर्भ में रख कर बात करें तब  भी हम सबने सुना है, सोचा है और कभी-न-कभी कहा भी है  कि जल ही जीवन है, जल नहीं तो कल नहीं और बिन पानी सब सून. यह बिलकुल सही है.

रोचक तथ्य है कि एक व्यस्क व्यक्ति के शरीर में करीब 60% जल है, बच्चों में यह प्रतिशत कुछ ज्यादा तो बुजुर्गों में थोड़ा कम होता है. यूँ कहें तो हम सभी चलते फिरते पानी के बोतल है. शरीर में पानी की कमी हो जाए तो हमारा शारीरिक संतुलन बिगड़ने लगता है, कई तरह की स्वास्थ्य समस्या पैदा होने लगती है और कई बार तो पानी चढ़ाने तक की नौबत आ जाती है . तो चलिए, मानव स्वास्थ्य से जल के अदभुत रिश्ते की थोड़ी विवेचना करते हैं. 

विभिन्न अवसरों पर अपने हेल्थ मोटिवेशन सेशन में अलग–अलग तबके एवं उम्र के लोगों से मुलाक़ात तथा चर्चा के क्रम में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई कि अधिकांश लोग पानी पीने की कला  में पारंगत नहीं हैं.  कहने का अभिप्राय यह कि ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम कि  पानी कैसे पीना चाहिए, कितना पीना चाहिए, कब पीना या कब नहीं पीना चाहिए. 

दरअसल अधिकांश लोग पानी पीते नहीं, गटकते हैं जैसे कि उन्हें पानी पीने तक की फुर्सत नहीं है. यह भी बताते चलें कि खड़े-खड़े बोतल से मुंह में पानी उड़ेलना और उसे फटाफट गटकना स्वास्थ्य की दृष्टि से सही नहीं है.  पीने का अर्थ है धीरे -धीरे जल ग्रहण करना और वह भी बैठ कर आराम से. सच पूछें तो स्वास्थ्य की दृष्टि से गिलास में मुंह लगाकर आराम से चाय या कॉफ़ी के तरह सिप करते हुए पानी पीना और यह महसूस करना कि इससे हमारा शरीर जलयुक्त हो रहा है या हमारा शरीर रूपी अदभुत पेड़ अच्छी तरह सींचित हो रहा है,  सबसे अच्छा माना गया है. कहते हैं इस तरह पानी पीनेवाले अम्लता और मोटापे से भी बचे रह सकते हैं. 

रोज सुबह नींद से उठने के तुरत बाद कम से कम आधा लीटर गुनगुना पानी पीना हमारे सेहत के लिए बहुत लाभकारी होता है. अगर इसे और प्रभावी बनाना है तो गुनगुने पानी में आधा नींबू निचोड़ लें. अगर आप ह्रदय रोग के मरीज नहीं हैं तो आप उस नींबूयुक्त पानी में थोड़ा सेंधा नमक मिला लें, लाभ ज्यादा मिलेगा. कुछ लोग जो मधुमेह से पीड़ित नहीं हैं, वे नींबू के साथ एक चम्मच शहद मिलाकर पीते हैं. इस तरह से अगर हम सुबह पानी का सेवन करते हैं तो इसका इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने एवं शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने  के अलावे  एकाधिक फायदे हैं. बताते चलें कि सामान्य तापमान से बहुत ज्यादा ठंडा या गर्म पानी हमारे शरीर के लिए अच्छा नहीं होता है. 

विशेषज्ञ यह भी कहते हैं  कि खाने के तुरत पहले, खाना खाने के बीच में और खाने के तुरत बाद पानी नहीं पीना चाहिए, क्यों कि इससे पाचन क्रिया दुष्प्रभावित होती  है. ऐसे, कभी किसी विषम परिस्थिति में दो-चार घूंट पानी पीना असामान्य बात नहीं है. हां, स्वास्थ्य विशेषज्ञ खाना खाने के कम-से-कम 40  मिनट पहले और खाना खाने के 40 मिनट बाद पानी पीने की सलाह देते हैं.  

सभी विशेषज्ञ बताते हैं कि शरीर जितना हाइड्रेटेड रहेगा, हम उतना ही स्वस्थ रहेंगे.  ज्ञातव्य है कि दिनभर में हमारे शरीर से कई तरीके से पानी निकलता रहता है. लिहाजा शरीर में पानी का अपेक्षित स्तर बनाए रखना अनिवार्य है. खासकर रात में सोने से पूर्व पानी अवश्य पीना चाहिए, इससे हार्ट व ब्रेन स्ट्रोक की संभावना कम हो जाती है. तनाव प्रबंधन में पानी की अच्छी भूमिका होती है. कभी मानसिक तनाव हो तो एक गिलास पानी घूंट-दर-घूंट पीकर इसका सुखद अनुभव कर सकते हैं. 

कहने का सीधा अर्थ यह कि सही मात्रा, सही समय और सही तरीके से पानी पीने से हम कब्ज, पिम्पल्स, मोटापा, मधुमेह, किडनी स्टोन, चर्म रोग, आर्थराइटिस, कोलाइटिस, हाई ब्लड प्रेशर, गैस की समस्या, नाक और गले की समस्या, माइग्रेन आदि शारीरिक समस्याओं से बचे रह सकते हैं. सार-संक्षेप यह कि दूसरों को 'पानी पिलाने' के मुहावरे को चरितार्थ करने के बजाय  खुद पानी पीने की कला में पारंगत होना हर दृष्टि से बेहतर स्वास्थ्य की बड़ी गारंटी है.

अंत में एक अहम बात. अगर कोई व्यक्ति किसी रोग विशेष से पीड़ित हैं  और डाक्टरी इलाज में हैं तो डॉक्टर की सलाह के मुताबिक़ ही पानी पीएं.    
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Sunday, October 20, 2019

मोटिवेशन: निराशा व अवसाद को कहें बाय-बाय

                                             - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर...
हाल ही में एक रिपोर्ट में यह बताया गया कि हमारे स्कूल-कॉलेज के अनेक  विद्यार्थियों में पढ़ाई  के प्रेशर, घरवालों की उनसे परीक्षा में अच्छे परिणाम की अपेक्षा और खुद उनका अपने रिजल्ट के प्रति आशंकित रहना निराशा और अवसाद का कारण बनता है.  कई मामलों में यह भी पाया गया है कि कुछ  विद्यार्थी  येन-केन-प्रकारेण अच्छा ग्रेड या अंक पाने और दूसरे से ज्यादा कामयाब होने के दौड़ और होड़ में जाने-अनजाने शामिल हो जाते हैं. ऐसे में, अपेक्षित परिणाम न आने पर उनका कन्फयूजन बढ़ना और परेशान हो जाना स्वाभाविक है. गौर करनेवाली  बात है कि वे इस विषय पर जितना सोचते हैं, उतना ही उलझते चले जाते हैं. वे अपनी स्थिति को अभिभावकों से साझा करने से भी कतराते हैं. परिणाम स्वरुप कई बार स्थिति चिंताजनक हो जाती है. 

यह सच है कि फ़ास्ट लाइफ और टफ कम्पटीशन के मौजूदा दौर में आम तौर पर निराशा का भाव देश के अनेक छात्र-छात्राओं  के मन–मानस को उलझाए रखता है.  कई विद्यार्थी तो अनिश्चितता और आशंका से ज्यादा कुशंका से जूझते रहते हैं. इससे उनकी सेहत तो खराब होती ही है, वे घर-बाहर कहीं भी चैन व सुकून से कार्य निष्पादित नहीं कर पाते, जिसका स्पष्ट असर उनकी उत्पादकता पर पड़ता है. आरोप लगना शुरू हो जाता है, तंज कसे जाते हैं, कभी-कभार डांट भी पड़ती है. मन और बैचैन हो जाता है. निराशा का भाव और गहराता है. कठिनाई समस्या बनने लगती है. अवसाद के आगोश में जाने की यह प्रारंभिक अवस्था होती है. लिहाजा इससे बचना निहायत जरुरी है. और इसके लिए उम्मीद का दामन थामना श्रेयष्कर साबित होता है. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने क्या खूब कहा है कि हमें सीमित निराशा को स्वीकार तो करना चाहिए, परन्तु अनंत उम्मीदों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए. 

मेरे एक मित्र हैं. निराशा के पल में वे बचपन में पढ़ी प्रख्यात कवि मैथिलीशरण गुप्त की यह कविता एक बार गुनगुना लेते हैं. कहते हैं, इससे उन्हें प्रेरणा मिलती है, उनमें आशा का संचार होता है. कविता की पंक्ति है : नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो, जग में रहकर कुछ नाम करो ... ....

मनोवैज्ञानिक मानते और कहते हैं कि स्वस्थ एवं प्रसन्न रहने के लिए जीवन में उम्मीद का साथ होना आवश्यक है. हमारे देश के अनेकानेक ऋषि –मुनि तो इस विषय पर अपने अमूल्य विचारों एवं व्याख्यानों के माध्यम से असंख्य लोगों को विंदास जीने को प्रेरित करते रहे हैं. 

विचारणीय प्रश्न यह भी है कि तमाम कोशिशों के बावजूद अगर आप किसी कारण असफल हो भी जाते हैं तो आपके सिर पर आसमान टूट कर तो गिरनेवाला नहीं. अलबत्ता कुछ नुकसान होगा. हां, विश्लेषण करने पर कई बार आप पाते हैं कि आपके प्रयास में कमियां रह गई थी. ऐसे समय सबसे बेहतर होता है, जल्दी-से-जल्दी उसे मन से स्वीकार करना और अपनी कोशिशों में अपेक्षित सुधार लाना. एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जाब्स इस बात पर अमल करने में विश्वास करते थे. 

एक बात और. जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं. फिर जीवन में आगे और भी मंजिलें तय करनी बाकी है. जरा सोचिए अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के जीवन यात्रा के विषय में. एक-के-बाद-एक विफलताओं के बाद भी उम्मीद और सत्प्रयासों के बलबूते वे अमेरिका के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए और अमेरिका के गृह युद्ध (अमेरिकन सिविल वार) के कठिनतम  समय में देश का सफल नेतृत्व किया, देश में शान्ति स्थापित की. अमेरिका की पहली बधिर एवं नेत्रहीन कला स्नातक एवं प्रख्यात लेखिका हेलेन केलर हो या विश्वप्रसिद्ध ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी स्टीफन विलियम हाकिंग या उनके जैसे अन्य अनेक दिव्यांग विभूति, सबने आशा को हमेशा अपना अभिन्न मित्र बना कर रखा और जीवन में अभूतपूर्व सफलता पाई. यहां यह जानना दिलचस्प तथा प्रेरणादायी है कि एक बार जब किसी ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा कि 'सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा क्या है' तो स्वामीजी ने उत्तर दिया कि 'उस समय उस उम्मीद को खो देना, जिसके भरोसे पर हम सब कुछ वापस पा सकते हैं.'  सच कहें तो  अपने आसपास देखने पर भी आपको कई लोग मिल जायेंगे जो इस जीवन दर्शन पर अमल करके अपने-अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति के नये-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं.       (hellomilansinha@gmail.com)


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Thursday, September 19, 2019

मोटिवेशन: दिमाग को साफ़-सुथरा रखना जरुरी

                                                             - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ...
हमारा देश युवाओं का देश है. यहां संभावनाओं और क्षमताओं की कोई कमी नहीं है. यह देश के लिए ख़ुशी की बात है. सूचना और संचार क्रांति के इस युग में हमारे युवाओं को चारों दिशाओं से प्रति क्षण असंख्य सूचना-समाचार मिलते रहते हैं. मोबाइल और इंटरनेट की सुलभता से यह काम और भी आसान हो गया है. सोशल मीडिया पर पुष्ट-अपुष्ट, सही-गलत, वांछित-अवांछित, शील-अश्लील सब तरह की सामग्री की बाढ़ से बेशक सभी हैरान हैं, बहुत से युवा परेशान भी.

मनुष्य मूल रूप से एक संवेदनशील प्राणी है. उसके दिमाग की कार्यक्षमता असीमित है, ऐसा मेडिकल साइंस भी मानता है. हमारे वेद-पुराण में इस तथ्य को साबित करने के अनेकानेक उद्धरण मौजूद हैं. आधुनिक युग में भी संसारभर में जिन लाखों विलक्षण लोगों ने अपने-अपने कार्यक्षेत्र में सर्वथा असाधारण कार्य किये हैं और कर रहे हैं वह स्वामी विवेकानन्द के इस उक्ति को संपुष्ट करते हैं कि सभी शक्तियां आपके अन्दर मौजूद हैं. आप कुछ भी कर सकते हैं. 

कंप्यूटर परिचालन में शुरू में ही बताया जाता है कि गार्बेज इन, गार्बेज आउट. अर्थात कचड़ा अन्दर डालेंगे तो कचड़ा ही बाहर आएगा. कहने का मतलब जैसा अन्दर डालेंगे, वैसा ही बाहर आएगा. कमोबेश यही सिद्धांत मनुष्य के दिमागी कंप्यूटर के साथ भी होता है, ऐसा सामान्यतः स्पष्ट दिखाई पड़ता है. इसी कारण हर समाज में शिक्षा और संस्कार के महत्व पर सभी एकमत रहे हैं. अच्छी शिक्षा और संस्कार से  सोच और बुद्धि का सीधा संबंध होता है. 

बहरहाल, चिंता की बात है कि इतना सब जानते-समझते-मानते हुए भी जाने-अनजाने बहुत सारे युवा नकारात्मक एवं अवांछित बातों-विचारों को अपने दिमाग में घुसने और अपने दिमाग को कचड़ा घर बनने दे रहे हैं. उनके दैनंदिन आचार-व्यवहार में इसकी झलक मिलती रहती है. लेकिन ऐसा नहीं है कि बच्चों, किशोरों और युवाओं के सरल एवं स्वच्छ मन-मानस को इस महामारी से बचाना बहुत मुश्किल है. इसके लिए समेकित प्रयास की जरुरत होगी. निःसंदेह, अभिभावकों एवं गुरुजनों का इस मामले में बहुत बड़ी भूमिका होगी, लेकिन पहल तो युवाओं को ही करना होगा.   

सबसे पहले स्वयं युवाओं के लिए  यह विचार करना जरुरी है कि उनके दिमाग में जो चीजें जा रही हैं वे बातें उनके लिए हितकारी हैं या नहीं, क्यों कि उसमें से अनेक बातें दिमाग में ठहर जाती है और उन्हें  कारण-अकारण व्यस्त रखती हैं. कई बार इसमें उनका  बहुत-सा समय यूँ ही खर्च होता है और वे समझ भी नहीं पाते. 

सोचनेवाली बात यह भी है कि जो अहितकारी बातें रोजाना उनके  पास आती हैं, आखिर वह किस स्रोत से ज्यादा आती हैं - किसी दोस्त, परिजन, सोशल मीडिया या अन्य किसी माध्यम से. युवाओं के लिए इसका गहराई से विश्लेषण करना निहायत जरुरी है. बेहतर तो यह होगा कि विश्लेषण एवं नियमित समीक्षा की प्रक्रिया उनके  रुटीन का हिस्सा बन जाए जिससे कि  दिमाग को प्रदूषित करने वाले स्रोत को पहचान कर तुरत उसे गुडबाय कर सकें. बुद्धिमान लोग तो  ऐसे कचड़े को आने से रोकने के लिए दिमाग के दरवाजे पर एक सशक्त स्कैनर लगा कर रखते हैं. उसे वहीँ  से बिदा कर दिया जाता है. 

एक अहम बात और. यह देखना भी जरुरी है कि वैसे कौन-कौन से विचार हैं जो उनके  दिमाग को अनावश्यक रूप से उलझाते हैं और परेशान करते हैं. उनकी पहचान कर लेने के बाद उनसे मुक्ति के लिए जरुरी है कि वे रोजाना अपने दिन की शुरुआत सकारात्मक सोच के साथ करें. सुबह जल्दी उठने का प्रयत्न करें. जो भी उनके आदर्श हों - माता-पिता, गुरुजन या कोई महान व्यक्ति, उन्हें याद कर उनका नमन करें. फिर सूरज की ओर देखें और महसूस करें कि आपके शरीर के  अन्दर दिव्य प्रकाश का प्रवेश हो रहा है और अँधेरा मिट रहा है. अब एक बार अपने शरीर के सारे अंगों- पैर की उंगलियों से सिर तक, को ठीक से देखें और सोचें कि आप कितने भाग्यशाली हैं कि आपके सारे अंग क्रियाशील हैं. इस शुरुआती पांच मिनट में ही आप आशा और विश्वास से भरने लगेंगे.  कहते हैं न ‘वेल बिगन इज हाफ डन’ यानी अच्छी शुरुआत आधा काम पूरा कर देता है. फिर दिनभर अच्छे कार्यों में व्यस्त रहें. बीच में अगर कोई नेगेटिव विचार या व्यक्ति आ जाए, उससे जल्द छुटकारा पा कर पॉजिटिव जोन में लौटें. नियमित अभ्यास से यह सब करना आसान होता जाएगा. रात में भी सोने से पूर्व फिर सकारात्मक सोच-विचार में थोड़ा वक्त गुजारें, उसका चिंतन-मनन करें. 

स्वभाविक है कि जो स्रोत उनके  लिए अच्छे हैं, ऐसे स्रोतों की संख्या बढ़ती रहे तो स्कूल-कॉलेज की परीक्षा हो या कोई कम्पटीशन, हर जगह प्रदर्शन बेहतर होना सुनिश्चित है. फिर तो लम्बी जीवन यात्रा में सफलता और खुशी उनके साथ-साथ चलती रहेगी और सर्वे भवन्तु सुखिनः जैसे विचारों को फलने-फूलने का सुअवसर भी मिलता रहेगा. 
                                                                                   (hellomilansinha@gmail.com)


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Sunday, August 11, 2019

Wellness Point: Stronger The Immune System, Better The Health

                                                     - Milan K Sinha, Motivational Speaker / Writer…
The people of all ages in the country are falling sick more frequently than before. Ironically, the incidences of non-communicable diseases are very much on the rise and so is the cost of medical expenses. The perennial shortage of doctors and nurses is still a cause of concern, notwithstanding opening of more medical colleges in the country. Overall health and wellness of citizens are the real challenges, equally before the government and society. How to address this crucial issue within the existing constraints and also without incurring extra public expenditure is a big predicament?  Let us discuss here at least one sure shot way in this regard through time tested motivation and awareness route. 

The famous American physician, author and professional speaker Michael Greger says, “Tobacco smoke contains chemicals that weaken the body’s immune system, making it more susceptible to disease and handicapping its ability to destroy cancer cells.”

Another expert Kris Carr says, “If you don’t think your anxiety, depression, sadness and stress impact your physical health, think again. All of these emotions trigger chemical reactions in your body which can lead to inflammation and a weakened immune system… …” 

Although health and medical experts are still busy in finding out the direct link between our lifestyle, dietary habits, genetic and psychological factors etc. and immune system yet everyone agrees on a point that all these factors have reasonable impact on our overall health and medical condition.

But what this immune system is all about?

In plain and simple words, our immune system denotes the status of body’s defence mechanism for fighting against micro-organisms that cause variety of diseases. The stronger the immune system, the lesser is the chance of falling sick. It being so, it is desirable to know the ways and means to improve our immune system to stay healthy and medically fit.
As discussed, it is a system of body’s defence and hence depends on a number of factors as indicated by many health experts. 

The list of ‘Dos’ and ‘Don’ts’ for maintaining a strong immune system is pretty long. Nevertheless, the following five simple and doable prescriptions, if practised sincerely can go a long way in strengthening the immune system to a reasonable extent:

1. Remain Oxygenated and Hydrated: Oxygen is our life line which we breathe every second. Nature gives us oxygen free of cost. We can have this life sustaining gas in adequate quantity despite several challenges of modern living, if we can save our forest and also plant trees in good numbers all around. Moreover, if we inculcate the habit of breathing deep to inhale more of oxygen and exhale more of carbon dioxide, we can keep our body amply functional and healthy.  

It is rightly said that water is equally needed as our body contains more than 60% water. Remaining always hydrated is therefore very desirable for multiple reasons. 

To say in fewer words, our health and so our immune system is very much dependent on the quantity and quality of oxygen we breathe and water we drink daily.

2. Practice Healthy Eating: Healthy eating means taking a balanced diet on daily basis. In other words, a balanced diet or a good diet means consuming eatables from different food groups in right quantities, because one single food group cannot provide everything an average healthy person needs. Interestingly, even factors like how you eat your food can influence how many calories get into your system, which is very important in any case. Health experts are also of the opinion that the better we chew our food, the more calories our body retains.

Saying a big no to junk and processed food items is also very necessary. In nutshell, healthy eating should be our way of life in order to keep our immune system strong.

3. Physical Exercise: Health experts recommend physical exercise of 20-30 minutes a day for minimum 4-5 days in a week for better blood circulation, activation of cells, flexibility of muscles, and secretion of feel good and feel happy hormones. All these cumulatively contribute towards improving immune system well. 

4. Sleep Well: Health and medical professionals assert the fact that adults who can sleep well for 7-8 hours every night have better mental as well as physical health which indicates their stronger immune system as much of our body's regeneration processes take place during these hours of sleep. 

5. Be Positive: As you sow, so will you reap- goes the old saying. Thinking and acting positive in any situation will finally bring you positive results. It has definite positive impact on your thought process as well as overall metabolic condition. To say, it is always better to shun negativity, increase positivity and in the process strengthen your mental wellness and also the immune system. Amy Morin says, ‘Positive thinking is a valuable tool that can help you overcome obstacles, deal with pain, and reach new goals.’
(hellomilansinha@gmail.com)

       Will meet again with Open Mind. All The Best.

Tuesday, July 9, 2019

मोटिवेशन: बेहतर क्षमता प्रबंधन से सफलता

                                                                           - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर ... ....
हमारे विद्यालय-महाविद्यालय-विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों से मुलाक़ात के क्रम में मैंने यह  पाया   है कि उनमें अपेक्षित संभावना एवं क्षमता की कमी नहीं है. मेधा और मेहनत में भी वे पीछे नहीं हैं. सभी जानते हैं कि उत्साह, उमंग और उर्जा भी व्यक्ति के  सोच और शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है. आम विद्यार्थियों की संभावना को परफॉरमेंस  में तब्दील करने की स्वभाविक चाहत से भी हम वाकिफ हैं. इसके बावजूद सभी विद्यार्थी अपने मुकाम को हासिल नहीं कर पाते हैं. इसके कई कारण हो सकते हैं. क्षमता प्रबंधन इनमें से एक बड़ा कारण है. इसे एकाधिक ज्वलंत उदाहरण के मार्फत सरलता से समझने की कोशिश करते हैं. 

हाल ही में संपन्न विवो आईपीएल क्रिकेट टूर्नामेंट के दौरान  आंद्रे रसेल, महेन्द्र सिंह धोनी, क्रिस गेल, हार्दिक पंड्या  जैसे कई खिलाड़ियों ने अपने-अपने क्षमता प्रबंधन का शानदार प्रदर्शन करते हुए अपनी टीम को अप्रत्याशित जीत दिलाई. आरसीबी (रॉयल चैलेंजर बंगलोर) टीम के खिलाफ केकेआर (कोलकता नाईटराइडर्स) की ओर से खेलते हुए एक मैच में रसेल ने मात्र तेरह बॉल पर सात छक्का और एक चौके के साथ नाबाद 48 रनों की बदौलत अत्यंत आश्चर्यजनक तरीके से अपनी टीम को विजय दिलाई. सीएसके (चेन्नई सुपर किंग्स) कप्तान धोनी ने राजस्थान रॉयल्स के खिलाफ एक मैच में कुछ ऐसा ही प्रदर्शन कर अपनी टीम को विजयी बनाया. बल्लेबाज के रूप में कब किस बॉल को किस तरह खेलना है जिससे कि अपने विकेट को बचाते हुए मात्र 20 ओवर के मैच में कम से कम गेंदों पर ज्यादा से ज्यादा रन बटोरते हुए विपक्षी टीम के खिलाफ जीत हासिल करें, यही उस खिलाड़ी की उच्च क्षमता प्रबंधन को रेखांकित करता है. उसी प्रकार एक बॉलर अपनी गेंदबाजी के दौरान बल्लेबाज विशेष के बैटिंग स्टाइल, फील्ड सेटिंग, पिच की स्थिति आदि को घ्यान में रखकर जब इंटेलीजेंटली गेंदबाजी करता है तो बल्लेबाज या तो जल्दी आउट हो जाता है या बहुत कम रन बना पाता है. ऐसे सभी खिलाड़ी विपरीत परिस्थिति में भी अपनी  क्षमता का समुचित उपयोग करना जानते हैं और कदाचित ही अपनी क्षमता को जाया होने देते हैं. 

एक बेमिसाल उदाहरण और. हाल ही में जिस एक शख्स की देश के कोने-कोने में खूब चर्चा हुई उसे आप सब अच्छी तरह जानते हैं. हां, मैं वायुवीर  विंग कमांडर अभिनन्दन वर्धमान की बात  कर रहा हूँ. आज अभिनन्दन सभी भारतीयों, खासकर विद्यार्थियों और युवाओं के सुपर हीरो हैं. हो भी क्यों नहीं. उन्होंने देश के सामने जिस धैर्य, संकल्प, संतुलन, वीरता और पराक्रम की मिसाल पेश की है उसका गुणगान स्वाभाविक रूप से सब ओर हो रहा है.  35 वर्षीय इस जाबांज वायुसेना अधिकारी, जो मिग-21 बाइसन जेट उड़ा रहे थे, ने पाकिस्तानी वायुसेना में शामिल अमेरिका में निर्मित आधुनिक एफ-16 में सवार पाक एयर पायलटों के नापाक इरादों को ध्वस्त कर दिया. उनके इस बेमिसाल कार्य से दुश्मन के हौसले पस्त हो गए. 

पूरे प्रकरण में काबिले गौर बात यह रही कि बेहद चुनौतीपूर्ण एवं बाद में बहुत विपरीत परिस्थिति में भी अभिनंदन ने यथोचित निर्णय  लिए और उसे बड़ी कुशलता से कार्यान्वित भी किया. दुर्घटनाग्रस्त मिग -21 से सफलतापूर्वक पैराशूट द्वारा दुर्भाग्यवश सीमा पार पाक इलाके  में उतरने के बाद स्थानीय उग्र भीड़ से खुद को बचाते हुए देश की  सुरक्षा से जुड़े गोपनीय दस्तावेजों को नियोजित ढंग से नष्ट करने में उन्होंने शारीरिक एवं मानसिक दोनों स्तर पर अपनी क्षमता प्रबंधन की उच्चतम मिसाल पेश की.  दुश्मन सेना द्वारा कब्जे में  लिए  जाने के बाद भी उनका आचरण बेहद संतुलित, संयमित और मर्यादित रहा और वे शूरवीर की तरह स्वदेश भी लौटे. 

उपर्युक्त कुछ उदाहरणों से यह बात साफ़ तौर पर उभर कर आती है कि जीवन में अपनी क्षमता पर विश्वास करना और उसे उत्तरोत्तर विकसित करना जितना जरुरी है, उतना ही जरुरी है उसका प्रबंधन. कहते हैं न कि लोहा जब गरम हो तभी चोट करना फायदेमंद होता है. उसी तरह प्रतियोगिता परीक्षा हो या हो खेल का मैदान, अगर "हम कौन-सा बॉल खेलें, कौन-सा बॉल छोड़ें" के तर्ज पर जीवन की छोटी-बड़ी परीक्षाओं में अपनी क्षमता का प्रबंधन करते हुए तदनुरूप प्रदर्शन कर सकें तो कोई भी जीत हमसे दूर नहीं जा सकती है. सार-संक्षेप यह कि हरेक विद्यार्थी के जीवन में उतार-चढ़ाव आता है -कम या ज्यादा. सफलता-असफलता  से भी वे सब रूबरू होते रहते हैं. लेकिन अगर वे बीच-बीच में अपनी क्षमता प्रबंधन की खुद ही गहरी समीक्षा करते हैं और अपनी कमियों में सुधार लाकर आगे बेहतर क्षमता प्रबंधन करते हैं, तो वे भी बेहतर उपलब्धि के हकदार बनते रहेंगे.  (hellomilansinha@gmail.com)


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Friday, June 21, 2019

WELLNESS POINT: IMPACT OF YOGA ON HEALTH AND HAPPINESS

                                                         - MILAN K SINHA, Motivational Speaker... ....
More than 1.25 billion people who live in India have variety of social, cultural, ecological, political and economic problems. As a consequence of these problems, a large population suffers from different physical, mental and spiritual problems in their day-to-day life. To say, increasing number of people is falling prey to many preventable and terminal diseases and consequently thousands of people are dying too. There is also no denying the fact that the cost of modern medical treatment of even minor ailments is increasing day by day, making it unaffordable for people belonging to lower income group. Undoubtedly, this is equally true for all the people living in this world, may be in varying degree.

It is heartening, as far as India is concerned, to find that the new NHP (National Health Policy) aims at providing health security to all citizens of the country with a distinctive shift in focus from SICK-CARE to WELLNESS, and now the thrust is on PREVENTION and HEALTH PROMOTION. Undeniably, it’s an excellent initiative of the Central Government, which must be implemented by all the state governments in letter and spirit to make India healthier and stronger in true sense. Sustained initiative at the level of individual, society and community also needs to be taken at right earnest. As such, the starting point would be to make every Indian aware and empowered as far as basic requirements of life are concerned.

The next step would be to act pro-actively for keeping our people truly healthy. And for that to materialize before long, it is necessary to make them adequately aware about the immense benefits of practicing Yoga - a cost-less activity, regularly and faithfully. Motivating the people consistently for this purpose is also very important. Undertaking “Health Motivation and Awareness” drive regularly in educational institutions, industrial units, offices etc. in this respect is highly desirable.

To say the least, Yoga is an age-old system – a perfect science to keep our body and mind both strong and agile. Yes, besides protecting us largely from many normal as well as minor ailments, the stress related major diseases can very well be prevented through practice of Yoga as well.  This becomes possible due to sustained improvement in our 1) Blood circulation 2) Digestion 3) Immune system 4) Physical flexibility 5) Detoxification process 6) Memory power 7) Level of concentration 8) Awareness & Consciousness 9) Intuitive ability 10) Self- confidence 11) Energy level and 12) Peace of mind. The list is only indicative.

To put it plain and simple, practice of Yoga is bound to have perceptible positive impact on our day-to-day activity from home to work place to finally ensure quantum improvement in our overall state of health and happiness. 

And finally, let us enjoy the golden words of B.K.S. Iyengar: “Yoga has a threefold impact on health. It keeps healthy people healthy, it inhibits the development of diseases, and it aids recovery from ill health.”
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Thursday, June 20, 2019

वेलनेस पॉइंट: योग का साथ हो तो सब मुमकिन है

                                                                          - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ....
“अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” के अवसर पर 21 जून को देश के हर हिस्से में स्कूल-कॉलेज- यूनिवर्सिटी के करोड़ों विद्यार्थी भी योग पर्व में भाग लेंगे. विश्व विख्यात योग गुरु स्वामी सत्यानन्द  सरस्वती लिखते हैं, "शिक्षा का तात्पर्य है मनुष्य का सर्वंगीण विकास. ऐसा नहीं होना चाहिए  कि विद्यार्थी में केवल किताबी ज्ञान भर दिया जाय, जो उसकी बुद्धि के ऊपर तैरता रहे -जैसे तेल पानी के ऊपर तैरता है. लोगों को अपने अंदर के विचारों, मान्यताओं और भावनाओं के प्रति जागरूक रहना चाहिए. इस प्रकार की शिक्षा किसी प्रकार के दबाव में प्राप्त नहीं हो सकती. यदि ऐसा होता है तो वह उधार  ली हुई शिक्षा होगी, न कि अनुभव द्वारा प्राप्त.  सच्चा ज्ञान अपने अंदर से ही शुरू हो सकता है और अपने अंदर के ज्ञान की परतों को खोलने के लिए योग ही माध्यम है.... .... योग स्वयं में एक परिपूर्ण शिक्षा है, जिसे सभी बच्चों को सामान रूप से प्रदान किया जा सकता है. क्यों कि नियमित योगाभ्यास से बच्चों में शारीरिक क्षमता का विकास होता है, भावनात्मक स्थिरता आती है तथा बौद्धिक और रचनात्मक प्रतिभा विकसित होती है. योग एक ऐसा एकीकृत कार्यक्रम है, जो बच्चों के समग्र व्यक्तित्व का संतुलित तथा बहुमुखी विकास करता है.... ..."

दरअसल, योग की महिमा का जितना बखान करें, उतना कम है. योग हमें अधूरेपन से पूर्णता की ओर तथा अन्धकार से प्रकाश की ओर सतत ले जानेवाली क्रिया है. योग आज के विद्यार्थियों के लिए जीवन को समग्रता में जीने का रोडमैप देता है जिससे वे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से एक सार्थक जीवन जी सकें. तथापि शिक्षा व संचार क्रांति के इस युग में अब भी योग को लेकर कहीं न कहीं यह भ्रान्ति है कि इसके अभ्यासी को संत या सन्यासी जीवन व्यतीत करना पड़ेगा और वह एक पारिवारिक व्यक्ति का सामान्य जीवन नहीं जी पायेगा, जब कि सच्चाई इसके उलट है. योग तो एक ऐसी जीवनशैली है जो जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण को व्यापक एवं  समग्र बनाता है जिसके कारण हम अपने अलावा दूसरों की समस्याओं को अधिक आसानी से समझने तथा उसका समाधान ढूंढने लायक बन पाते हैं. ऐसा करके हम अपने  परिवार एवं समाज के लिए भी एक बेहतर इंसान साबित होते हैं. यही कारण है कि बड़े से बड़ा नेता, अभिनेता, ड़ॉक्टर, अधिकारी, उद्योगपति, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, लेखक-पत्रकार  सभी ने योग के महत्व को स्वीकारते हुए अपनी दिनचर्या में योगाभ्यास - आसान, प्राणायाम और ध्यान, को  निष्ठापूर्वक शामिल किया है. लिहाजा, उनका सुबह का समय योगाभ्यास में बीतता  है जिससे वे दिनभर पूरी जीवंतता के साथ अपनी जिम्मेदारियों का अबाध निर्वहन कर पाते हैं. देश-विदेश में योग के प्रति लोगों का बढ़ता विश्वास इसका  प्रमाण है. आधुनिक चिकित्सा पद्धति  ने भी अनेक रोगों के उपचार में योग की अहम भूमिका को स्वीकार किया है.  फिर सभी छात्र-छात्राएं ऐसा क्यों नहीं करते हैं या योग दिवस आदि कतिपय आयोजनों में ही योग करते दिखते हैं ? 

दरअसल, न्यूटन का जड़ता का सिद्धान्त यहां भी लागू होता है. जिस कार्य को हम करते रहते हैं, वह हमें आसान लगता है. इसके विपरीत किसी नए काम को करने से पहले तमाम तरह की भ्रांतियां तथा शंकायें हमारे सामने अवरोध बन कर खड़ी हो जाती हैं.  ऐसा कमोवेश सबके साथ होता है.  लेकिन खुले दिमाग से सोचने वाले विद्यार्थी अच्छे -बुरे का आकलन करते हुए एक नए जोश व संकल्प के साथ जड़ता को तोड़ कर सही दिशा में कदम बढ़ाते हैं.  जीवन में यही तो योग है, और क्या? वास्तव में नियमित योगाभ्यास से छात्र -छात्राएं  न केवल जीवन में नूतनता एवं  ताजगी का अनुभव करेंगे बल्कि वे शारीरिक एवं मानसिक रूप से पहले की अपेक्षा अधिक शक्ति का भी अनुभव करेंगे. विद्यार्थियों में एकाग्रता प्रखर होगी, उनकी स्मरण शक्ति में इजाफा होगा, उनके व्यवहार में संतुलन स्पष्ट दिखाई देगा और इन सबके समेकित प्रभाव से परीक्षा में उनका  परफॉरमेंस  उतरोत्तर अच्छा होता जाएगा.

तो फिर क्यों न हमारे देश का हर  विद्यार्थी योग को अपनी रूटीन का हिस्सा बनाकर जीवन को स्वस्थ, सरस, सफल और सानंद बनाने का सार्थक प्रयास करे?   (hellomilansinha@gmail.com)

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Wednesday, May 22, 2019

मोटिवेशन: संघर्ष और सफलता

                                                           - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर ... ...
समय-समय पर अखबारों व अन्य समाचार माध्यमों से यह खबर मिलती रहती  है कि कैसे किसी छात्र या छात्रा ने तमाम आर्थिक, सामाजिक और शारीरिक कठिनाइयों के बावजूद पढ़ाई या खेलकूद या किसी अन्य क्षेत्र में असाधारण उपलब्धि हासिल की है. रिपोर्ट में उनके अनथक संघर्ष का विवरण भी रहता है. हाल ही सीए (चार्टर्ड एकाउंटेंसी) फाइनल परीक्षा में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले एक लड़के की चर्चा अखबारों में थी कि कैसे कोटा निवासी उस दर्जी के बेटे ने संघर्ष के रास्ते यह मुकाम अर्जित किया. इसके विपरीत आपके आसपास भी ऐसे कई विद्यार्थी मिल जायेंगे जो अध्ययन एवं मेहनत से भागते हैं. इससे बचने के लिए कोई-न-कोई बहाना बनाते हैं. उन्हें आराम की जिंदगी जीने की तलब तो होती है, पर उसके लिए कुछ करना नहीं चाहते. क्या ऐसे विद्यार्थी जीवन में सफलता, सुख और शांति हासिल कर सकते हैं ? क्या उनका जीवन सार्थक कहा या माना जाएगा ? क्या उनकी यह आदत उनके आत्मविश्वास और आंतरिक क्षमता को कमजोर  नहीं करेगी ?   

प्रसिद्ध कवि जगदीश गुप्त की यह पक्तियां कि 'सच हम नहीं सच तुम नहीं सच है सतत संघर्ष ही / संघर्ष से हट कर जिए तो क्या जिए हम या कि तुम....'  या अमेरिकी राष्ट्रपति थियोडोर रूजवेल्ट के ये शब्द कि  'इतिहास आसान जीवन जीने वाले को याद नहीं रखता, इसलिए आरामतलबी को छोड़ते हुए हमें संघर्ष कर उससे प्राप्त सुख का भोग करना चाहिए' इस बात को बखूबी रेखांकित करते हैं कि जीवन में संघर्ष न हो तो जीवन में सच्चे आनंद का सुख हम नहीं भोग सकते. ज्ञानीजन यह भी कहते हैं कि जीवन में संघर्ष और सफलता लगातार आगे-पीछे चलते रहते हैं. 

आप भी मानेंगे, अगर कोई भी संघर्ष के रास्ते जीवन में सकारात्मक लक्ष्य की ओर खुशी-खुशी और मजबूती से चल पड़ें तो कोई कारण नहीं कि उन्हें अपेक्षित कामयाबी, खुशी, सुख और सकून न मिले. जरा सोचिये, 29 मई 1953 को माउंट एवेरेस्ट पर पहली बार विजयी पताका लहराने वाले न्यूज़ीलैंड के महान पर्वतारोही एडमंड हिलेरी एवं उनके नेपाली साथी शेरपा तेनजिंग नोरगे ने कितने मजबूत इरादों एवं कठिन परिश्रम से वह सुखद कीर्तिमान बनाया होगा. किस कठिनतम परिस्थिति में उन्होंने किस दिलेरी से अनजाने दुर्गम पहाड़ों से होते हुए अंततः विश्व की सर्वोच्य चोटी को फतह किया होगा. उस वक्त हिलेरी की उम्र मात्र 34 वर्ष और शेरपा तेनजिंग की 39 साल थी. दिलचस्प बात यह थी की शेरपा तेनजिंग को संघर्ष के उस महानतम मंजिल पर विजय हासिल करने पर इतनी खुशी मिली  कि उन्होंने 29 मई को ही अपना जन्मदिन मानने, बताने और मनाने भी लगे. दरअसल शेरपा तेनजिंग को अपना वास्तविक जन्म साल  तो ज्ञात था, लेकिन जन्मदिन नहीं. 

हमारी आजादी के संग्राम में जिन लोगों ने असाधारण भूमिका निभाई उनमें से यहां एक विभूति की चर्चा करें तो संघर्ष की महत्ता को समझना आसान होगा. वे हैं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक.     

'स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और इसे मैं लेकर रहूँगा' के दृढ़ संकल्प से युक्त तिलक ने सुखमय जिंदगी का परित्याग कर देश की आजादी के लिए कठिन संघर्ष का मार्ग अपनाया. तिलक गणित, इतिहास, संस्कृत, कानून और खगोल विज्ञान के ज्ञाता थे. वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे जिनसे ब्रिटिश सरकार खौफ खाती थी. संघर्ष के उन्हीं दिनों में उन्होंने लोगों को जागृत करने के लिए दो अखबारों का प्रकाशन शुरू किया, जो आगे चलकर लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हुआ. स्वतंत्रता संग्राम के पक्ष में लिखे गए उनके लेखों के कारण उन्हें कई बार जेल भी जाना पड़ा. 52 वर्ष की उम्र में (वर्ष 1908) ब्रिटिश सरकार ने उन्हें प्रसिद्द क्रांतिकारी खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी के समर्थन में आगे आने के लिए बर्मा (आज के म्यंमार) के कुख्यात मांडले जेल में छह साल  के कारावास में भेज दिया. लेकिन जैसे सोना आग में तपकर और निखरता है, उसी प्रकार बाल  गंगाधर तिलक ने उस कठिन परिस्थिति को चुनौती मानकर उस दौरान 'गीता रहस्य' नामक प्रसिद्ध किताब लिख डाली, जिसका बाद में अनेक भाषाओँ  में अनुवाद भी हुआ. संघर्ष के उस काल खंड में ऐसा भी वक्त आया जब तिलक की पत्नी का देहांत हो गया जिसकी सूचना उन्हें बाद में  दी गई. परिणामस्वरुप  वे पत्नी के अंतिम संस्कार में शामिल तक नहीं हो पाए. लोकमान्य तिलक ने लोगों को सामाजिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक रूप से जोड़ने और जागृत करने के लिए 'गणपति उत्सव' तथा  'छत्रपति शिवाजी उत्सव' की शानदार शुरुआत की और स्वामी विवेकानंद के इस उक्ति को बखूबी साबित किया  कि 'जितना बड़ा संघर्ष होगा, जीत उतनी ही शानदार होगी.'     
                                                                                   (hellomilansinha@gmail.com)
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Tuesday, April 16, 2019

MOTIVATION : LIFE IS SIMPLE, DON'T MAKE IT COMPLEX

                                                               - MILAN K SINHA, Motivational Speaker...


It is said that simple is really beautiful and very encompassing. Living a simple life gives you peace, prosperity and happiness. Leo Tolstoy says, “There can’t be any greatness and excellence where there is no simplicity, goodness and honesty.” Just think, who knows you better who you are?  Then what is the fun in showing off what you are not and in the process make your own life unnecessarily complex and miserable.  Confucius also says, “Life is really simple, but we tend to make it complex.”

Since our childhood, we have been listening about a famous saying: “Simple Living and High Thinking.” Across the world we find many great persons in each field of activity who lived a very simple life, yet created history by their amazing deeds. The life of Mahatma Gandhi to Albert Einstein amply vindicates this fact. Then why a large number of people opt for a complex life leaving the simple one, knowingly or unknowingly, and in the process waste lots of time, money and energy despite knowing it pretty well that there is a  direct link between uneasy living and growing stress? Any way, it is never too late to mend. Just think over this issue and review your day’s engagements to lessen the negative ones and increase the positive engagements on a continuous basis.

Mahatma Gandhi says, “A man is but the product of his thoughts. What he thinks, he becomes.” It being so, it is always better to think positive, act straight and simple to have lesser anxiety and greater happiness.

In this age of liberalisation when everything is market driven, when information gets precedence over ideas most of the time, when machine is more important than man, it is all the more necessary to keep your life as less complicated and dependent on external factors as possible to ensure better inclusive growth for the society of which you are also an important component.


It is equally worth considering why people of India respect and treat people like Mahatma Gandhi, Jay Prakash Narayan, Baba Amte and Netaji Subhas Chandra Bose as most popular and inspirational leaders despite the fact that they were not the President, Prime Minister, Vice-President, Governor, Chief Minister or Minister? It was primarily because these great men were not only extraordinary in their ideas but also in practice what they preached. Moreover, they lived a very simple, fair and transparent life all through. They always worked with positive thoughts for the good of the common man and disadvantaged section of the society. 

So, live simply to enjoy the life greatly.              (hellomilansinha@gmail.com)

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Friday, March 15, 2019

मोटिवेशन: समय प्रबंधन से मिलेंगे अच्छे अंक

                                                                        - मिलन  सिन्हामोटिवेशनल स्पीकर... ...
स्कूल-कॉलेज के छात्र-छात्राओं को मोटिवेट करने के क्रम में मैं "3 आर" को ठीक से साधने की बात करता रहा हूँ. यहाँ "3 आर" का मतलब रीडिंग, रिटेंशन और रिप्रोडक्शन से है. आम तौर पर यह पाया गया है कि पढ़ने, दिमाग में रख पाने तथा इम्तिहान में उसका उपयोग करने का अनुपात यानी  "3 आर"  का अनुपात 10 : 6 : 3 रहता है. इसका मतलब यह हुआ कि आपने 10 पेज पढ़ा, 6 पेज दिमाग में अंकित हुआ और मात्र 3 पेज के बराबर परीक्षा में लिख पाए. इसमें भी तारतम्य की गड़बड़ी रहती है सो अलग. यह कहने की जरुरत नहीं कि अच्छे विद्यार्थी का यह अनुपात यकीनन बेहतर होता है और तारतम्य भी. तो अब सवाल उठता है कि "3 आर" अनुपात को अच्छे ढंग से साधने के लिए वास्तव में क्या करना चाहिए?

पहले तो तन्मयता से पढ़ने की आदत डालनी चाहिए. तन्मयता से पढ़ने का मतलब यह है कि आप जब पढ़ने बैठते हैं, उस समय पूरे मनोयोग से आप उस चैप्टर को पढ़ें. पढ़ते वक्त आपका ध्यान आप जो पढ़ रहे हैं, मुख्यतः उसपर रहे. कोई भी दूसरा काम आपके ध्यान को बाधित नहीं कर पाए. कहने का अभिप्राय यह कि महाभारत में वर्णित श्रेष्ठ धनुर्धर पांडव पुत्र अर्जुन की तरह एकाग्रचित्त हो कर कार्य करें. अगर दो घंटे लगातार पढ़ने का मन बनाकर बैठते हैं तो उन दो घंटों में मोबाइल को साइलेंट मोड में कर लें और उसे पढ़ाई के टेबल से दूर रखें. ऐसे ही दूसरे अवरोधों से बचें. पढ़ने के लिए सुबह का समय कई कारणों से बेहतर माना जाता है. देखा गया है कि शाम तक जो विद्यार्थी दिनभर के लिए निर्धारित पढ़ाई कर लेते हैं, उन्हें रात में नींद भी अच्छी आती है. कारण सोने से पहले वे तनावमुक्त रहते हैं. इसके विपरीत दिनभर दूसरे क्रियाकलाप में व्यस्त रहनेवाले विद्यार्थी के लिए देर रात तक पढ़ने का प्रेशर रहता है, जब कि दिनभर के कार्य से शरीर थका रहता है और आराम खोजता है. ऐसे विद्यार्थियों के अस्वस्थ होने की संभावना भी ज्यादा रहती है. इसके अलावे एक और बात का ध्यान रखना लाभदायक होता है. शोरगुलवाले स्थान से अलग शांत माहौल में पढ़ने से एकाग्रता में खलल नहीं पड़ता है, फलतः चीजों को समझना और याद रखना आसान होता है. इस तरह एक बार विषय पर फोकस करके पढ़ने की आदत हो जाती है तो फिर आगे उसे जारी रखना आसान भी होता जाता है. 

पढ़ी हुई बातों को दिमाग में संजो कर रखने का अर्थ है कि वे बातें आपके दिमागी हार्ड डिस्क में ठीक से अंकित हो जाय. इसके लिए अपने दिमाग को उन बातों के स्वागत के लिए तैयार करने की जरुरत होती है. पढ़ी हुई बातों को दिमाग में अच्छी तरह सहेज कर रखना बहुत फलदायी साबित होता है. इससे जब भी जरुरत हो वह हमारे दिमागी स्क्रीन पर तुरत दिखने लगता है. कहते हैं "प्रैक्टिस मेकस ए मैन परफेक्ट" अर्थात अभ्यास आदमी को पूर्णता प्रदान करता है. जिन चीजों को तन्मयता से एक बार समझ पढ़ा-समझा, उसे छोटे-छोटे अंतराल में अगर फिर पढ़ और समझ लिया जाय, बिना देखे फिर उसको लिखने का अभ्यास कर लें, किसी दूसरे को वही बातें बता दें, पढ़ा दें, सिखा दें, तो यकीन मानिए आपके दिमाग में वह दृढ़ता से अंकित हो जाता है. कविवर वृंद ने सही कहा  है कि "करत-करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान, रसरी आवत जात ते सिल पर परत निसान." लिखने के सतत अभ्यास से आपको यह भी पता चल जाता है कि एक प्रश्न का उत्तर लिखने में कितना समय लगता है, जिससे कि परीक्षा के समय सब कुछ बेहतर ढंग से संपन्न हो सके. 

अब बात करते हैं किसी भी परीक्षा में अपेक्षानुसार या तैयारी के अनुरूप परफॉर्म करने की यानी पढ़ी और समझी हुई बातों की बुनियाद पर प्रश्नों का उत्तर लिखने की. इसके लिए पहले तो आपको शारीरिक एवं मानसिक रूप से संयत, संतुलित और शांत रहने की आवश्यकता होगी. अंतिम समय में पढ़कर या रटकर कुछ बेहतर हासिल करने की कवायद इच्छित फल नहीं देता है. इसके उलट ज्यादातर मामलों में आपका कनफूजन बढ़ जाता और साथ में उत्तेजना भी. परिणामस्वरूप, पहले जो कुछ अच्छे से पढ़ा है, उसे भी याद रखना मुश्किल लगने लगता है. फिर तो परीक्षा हॉल में नियत समय में सारे प्रश्नों का उत्तर देना नामुमकिन हो जाता है, जब कि प्रश्नों का उत्तर आपको मालूम होता है. इसलिए हर विषय की परीक्षा से पहली रात को जल्दी सो जाएं, 10 बजे से 11 बजे के बीच. सबेरे उठकर कर सामान्य दिनचर्या पर अमल करें. परीक्षा सेंटर पर समय से थोड़ा पहले पहुंचें. प्रश्नपत्र मिलने पर सभी प्रश्नों को पहले अच्छी तरह पढ़ें और हर प्रश्न के उत्तर पर कितने अंक मिलेंगे उस पर ध्यान देकर समय प्रबंधन की रुपरेखा बना लें. इसमें सभी प्रश्नों का जवाब लिखने के बाद अंत में 10-15 मिनट का समय रिवीजन के लिए रखें. अब उन सवालों को हल करते चलें जिन्हें कम समय में कर सकते हैं. जैसे-जैसे आप सवाल हल करते जायेंगे, आपका आत्मविश्वास बेहतर होता जाएगा और साथ में आपका दिमागी कंप्यूटर ज्यादा प्रभावी ढंग से काम भी करने लगेगा. रिप्रोडक्शन प्रक्रिया बेहतर होगी और अंतिम परिणाम भी. 
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