Thursday, June 20, 2019

वेलनेस पॉइंट: योग का साथ हो तो सब मुमकिन है

                                                                          - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ....
“अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस” के अवसर पर 21 जून को देश के हर हिस्से में स्कूल-कॉलेज- यूनिवर्सिटी के करोड़ों विद्यार्थी भी योग पर्व में भाग लेंगे. विश्व विख्यात योग गुरु स्वामी सत्यानन्द  सरस्वती लिखते हैं, "शिक्षा का तात्पर्य है मनुष्य का सर्वंगीण विकास. ऐसा नहीं होना चाहिए  कि विद्यार्थी में केवल किताबी ज्ञान भर दिया जाय, जो उसकी बुद्धि के ऊपर तैरता रहे -जैसे तेल पानी के ऊपर तैरता है. लोगों को अपने अंदर के विचारों, मान्यताओं और भावनाओं के प्रति जागरूक रहना चाहिए. इस प्रकार की शिक्षा किसी प्रकार के दबाव में प्राप्त नहीं हो सकती. यदि ऐसा होता है तो वह उधार  ली हुई शिक्षा होगी, न कि अनुभव द्वारा प्राप्त.  सच्चा ज्ञान अपने अंदर से ही शुरू हो सकता है और अपने अंदर के ज्ञान की परतों को खोलने के लिए योग ही माध्यम है.... .... योग स्वयं में एक परिपूर्ण शिक्षा है, जिसे सभी बच्चों को सामान रूप से प्रदान किया जा सकता है. क्यों कि नियमित योगाभ्यास से बच्चों में शारीरिक क्षमता का विकास होता है, भावनात्मक स्थिरता आती है तथा बौद्धिक और रचनात्मक प्रतिभा विकसित होती है. योग एक ऐसा एकीकृत कार्यक्रम है, जो बच्चों के समग्र व्यक्तित्व का संतुलित तथा बहुमुखी विकास करता है.... ..."

दरअसल, योग की महिमा का जितना बखान करें, उतना कम है. योग हमें अधूरेपन से पूर्णता की ओर तथा अन्धकार से प्रकाश की ओर सतत ले जानेवाली क्रिया है. योग आज के विद्यार्थियों के लिए जीवन को समग्रता में जीने का रोडमैप देता है जिससे वे शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक रूप से एक सार्थक जीवन जी सकें. तथापि शिक्षा व संचार क्रांति के इस युग में अब भी योग को लेकर कहीं न कहीं यह भ्रान्ति है कि इसके अभ्यासी को संत या सन्यासी जीवन व्यतीत करना पड़ेगा और वह एक पारिवारिक व्यक्ति का सामान्य जीवन नहीं जी पायेगा, जब कि सच्चाई इसके उलट है. योग तो एक ऐसी जीवनशैली है जो जीवन के प्रति हमारे दृष्टिकोण को व्यापक एवं  समग्र बनाता है जिसके कारण हम अपने अलावा दूसरों की समस्याओं को अधिक आसानी से समझने तथा उसका समाधान ढूंढने लायक बन पाते हैं. ऐसा करके हम अपने  परिवार एवं समाज के लिए भी एक बेहतर इंसान साबित होते हैं. यही कारण है कि बड़े से बड़ा नेता, अभिनेता, ड़ॉक्टर, अधिकारी, उद्योगपति, शिक्षाविद, वैज्ञानिक, लेखक-पत्रकार  सभी ने योग के महत्व को स्वीकारते हुए अपनी दिनचर्या में योगाभ्यास - आसान, प्राणायाम और ध्यान, को  निष्ठापूर्वक शामिल किया है. लिहाजा, उनका सुबह का समय योगाभ्यास में बीतता  है जिससे वे दिनभर पूरी जीवंतता के साथ अपनी जिम्मेदारियों का अबाध निर्वहन कर पाते हैं. देश-विदेश में योग के प्रति लोगों का बढ़ता विश्वास इसका  प्रमाण है. आधुनिक चिकित्सा पद्धति  ने भी अनेक रोगों के उपचार में योग की अहम भूमिका को स्वीकार किया है.  फिर सभी छात्र-छात्राएं ऐसा क्यों नहीं करते हैं या योग दिवस आदि कतिपय आयोजनों में ही योग करते दिखते हैं ? 

दरअसल, न्यूटन का जड़ता का सिद्धान्त यहां भी लागू होता है. जिस कार्य को हम करते रहते हैं, वह हमें आसान लगता है. इसके विपरीत किसी नए काम को करने से पहले तमाम तरह की भ्रांतियां तथा शंकायें हमारे सामने अवरोध बन कर खड़ी हो जाती हैं.  ऐसा कमोवेश सबके साथ होता है.  लेकिन खुले दिमाग से सोचने वाले विद्यार्थी अच्छे -बुरे का आकलन करते हुए एक नए जोश व संकल्प के साथ जड़ता को तोड़ कर सही दिशा में कदम बढ़ाते हैं.  जीवन में यही तो योग है, और क्या? वास्तव में नियमित योगाभ्यास से छात्र -छात्राएं  न केवल जीवन में नूतनता एवं  ताजगी का अनुभव करेंगे बल्कि वे शारीरिक एवं मानसिक रूप से पहले की अपेक्षा अधिक शक्ति का भी अनुभव करेंगे. विद्यार्थियों में एकाग्रता प्रखर होगी, उनकी स्मरण शक्ति में इजाफा होगा, उनके व्यवहार में संतुलन स्पष्ट दिखाई देगा और इन सबके समेकित प्रभाव से परीक्षा में उनका  परफॉरमेंस  उतरोत्तर अच्छा होता जाएगा.

तो फिर क्यों न हमारे देश का हर  विद्यार्थी योग को अपनी रूटीन का हिस्सा बनाकर जीवन को स्वस्थ, सरस, सफल और सानंद बनाने का सार्थक प्रयास करे?   (hellomilansinha@gmail.com)

          ...फिर मिलेंगे, बातें करेंगे - खुले मन से ... ... 
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