Tuesday, October 2, 2012

कविता : जवान और किसान*

                                                                                                               -मिलन  सिन्हा
हरा भरा खेत खलिहान 
फिर भी 
निर्धन क्यों हमारे किसान .
देश में नहीं 
पानी की कमी 
फिर भी 
क्यों रहती है  सूखी 
यहाँ - वहाँ की जमीं .
जिसे देखना है वो देखें 
किसान जो उपजाता है 
उसका वह क्या पता है ?
देश को खिलानेवाला 
खुद क्यों भूखा रह जाता है ?
कर्ज के बोझ तले 
क्यों खुदकुशी कर लेता है ? 

देश में लाखों नौजवान 
साहसी,शिक्षित और उर्जावान 
छोड़कर अपना घर-वार 
बनते हैं सीमा के पहरेदार 
गर्मी हो या सर्दी 
आंधी हो या हो तूफान 
करते हैं देश की सेवा 
देकर आपनी जान .
युद्ध हो या हो कोई आपदा 
रहते हैं तैयार 
हमारे जवान सदा सर्वदा 
पर क्या इन जवानों का भविष्य 
सुरक्षित रह पाता है?
देश इनको 
पूरा सम्मान दे पाता  है?
कहाँ हैं वे देश के लाल 
जो लाल बहादुर कहलाएं,
जय जवान, जय किसान का 
वह गौरव फिर से लौटाएं .

*(शास्त्रीजी के जन्म दिन के अवसर पर)   


                        will meet again with Open Mind. All the Best.

8 comments:

  1. very inspirational and heart touching poem...:)

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    1. Thanks for reading & sharing your opinion. All the Best.

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  2. Yeh poem haquikat bayan karta hai aur saath hi yeh sikhata hai ki apne ko appreciate karne ka koi matlab nahi hai. Doosro ke baare mai koi soch ke dikhao to koi jaane.

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    1. Thanks for reading the post & sharing your point of view nicely. All the Best.

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  3. What is the position of a farmer in the society-worst.farmer is the class which grows grains for all.Even the greatest engineer can not produce even a single grain of food by any machine.tagore in a poem in Geetanjali rightly says -your God is in the field where the farmer works in the field.G.P.Tripathi.

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    1. Thanks a lot for reading the post and sharing your views so nicely with lines from Geetanjali. All the Best.

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  4. thanks for giving your valuable seconds for farmers.all the best.

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  5. Thanks a lot for reading & reacting. I shall continue to write on farmers' issues regularly. Pl. keep reading, sharing & commenting. All the Best.

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