Tuesday, September 18, 2012

कविता : जरूरी तो नहीं                                    
                                                                                                * मिलन  सिन्हा 

तुम जो चाहो सब मिल जाये, जरूरी तो नहीं 
तुम जो कहो सब ठीक हो, जरूरी तो नहीं .

दूसरों से भी मिलो, उनकी भी बातें सुनो 
वो जो कहें सब गलत हो, जरूरी तो नहीं .

सुनता हूँ यह होगा, वह  होगा,पर होता नहीं कुछ 
जो जैसा कहे, वैसा ही करे, जरूरी तो नहीं .

जिन्दगी के हर मुकाम पे  इम्तहान  दे रहा है आदमी 
इम्तहान  के बाद ही परिणाम मालूम हो, जरूरी तो नहीं .

संघर्ष से मत डरो, प्रयास हमेशा तुम करो  
हर बार तुम्हें हार ही मिले, जरूरी तो नहीं .

कहते हैं बेवफ़ाई एक फैशन हो गया है आजकल 
पर हर कोई यहाँ बेवफ़ा हो, जरूरी तो नहीं .

जनता यहाँ शोषित है, शासक भी है यहाँ शोषक 
हर शासक अशोक या अकबर हो, जरूरी तो नहीं .

जानता हूँ 'मिलन' का अंजाम जुदाई होता है 
पर हर जुदाई गमनाक हो,जरूरी तो नहीं .

Did you like the poem? Do comment. Will meet again with Open Mind.All the Best.

10 comments:

  1. Sir, bahut acha laga apki kabita-JARURI TAU NEHIN

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    1. Thanks a lot. Pl. keep reading & reacting(with your name etc.) All the Best.

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  2. Ye sahi hai.Ye haquiqat bayan karta hai.

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  3. Aap bahut gahraee se sochte hain.isliye etna achha leekhte hain.Bahut achha laga.SG

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    1. Thanks a lot for reading & appreciating/encouraging. All the Best.

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  4. very nice.good thought.

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