-मिलन सिन्हा
सुबह से हो जाती थी शाम
पर,
हर दिन रहता था वह परेशान.
मामला ओफिशिएल था
कुछ -कुछ ,
कांफिडेंसिएल था.
इसीलिए
किसी से कुछ न कहता था
खुद ही चुपचाप ,
सबकुछ सहता था.
देखी जब मैंने उसकी दशा
सुनी गौर से
उसकी समस्या,
सब कुछ समझ में आ गया .
असल बीमारी का
पता भी चल गया.
रोग साइकोलोजिकल था
पर, समाधान
बिल्कुल प्रक्टिकल था.
मैंने उसे सिर्फ़ एक मंत्र सिखाया
जिसे उसने
बड़े मन से अपनाया.
आफ़िस में अब उसे
नहीं है कोई टेंशन,
सेलेरी को अब वह
समझने लगा है पेंशन.
"झाड़ने " को वह अब
"कला " मानता है .
अपने मातहतों को
खूब झाड़ता है.
और अपने बॉस के फाइरिंग को
चैम्बर से निकलते ही
ठीक से "झाड़ता " है .
"झाड़ने " को वह अब
"कला " मानता है I
Sir, In your poem you make it so easy, to how to tackle corporate world without taking tension only take pension.
ReplyDeleteRegards
Pushkar kr Sinha
Thanks.It is but true that if one remains under tension, he/she will not be able to enjoy even pension.So, humour at the work place is necessary to a certain extent. Keep reading & reacting. All the Best.
Deleteperfect comment on employees mental situation for all corporates. must read by all persons belonging to marketing such as Insurance, mutual fund, banking and more
ReplyDeleteThanks a lot. Unfortunately, hiring & then firing is becoming the so-called corporate culture which has been a major cause of lots of avoidable stress even among the younger employees.
DeleteHence, my small endeavour is to mitigate their stress to certain extent. Keep reading, sharing & smiling.All the Best.