Friday, January 31, 2020

मोटिवेशन: संयम को अपना दोस्त बनाएं

                                                            - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ....
संयम का मीठा फल हर क्षेत्र में मिलता है. विलियम शेक्सपियर कहते हैं, "वे कितने निर्धन हैं जिनके पास संयम नहीं है." सही बात है. घर-बाहर हर जगह हमें इसका प्रमाण मिलता है. 

क्या आपने वर्ल्ड कप क्रिकेट में लीग स्टेज के नौवें मैच में  श्रीलंका के खिलाफ खेलते हुए भारत के रोहित शर्मा की शानदार शतकीय पारी देखी? जरुर देखी होगी. रोहित ने जिस संयम से इस पारी में दर्शनीय शॉट लगाए, उसकी विश्वभर में चर्चा हो रही है और प्रशंसा भी. इसी मैच में के.एल. राहुल ने भी सलामी बल्लेबाज के रूप में पूरे संयम के साथ खेलते हुए 111 रन बनाए और  रोहित के साथ मिलकर वर्ल्ड कप के इतिहास में सलामी जोड़ी द्वारा शतक लगाने का अभूतपूर्व  रिकॉर्ड बनाया. ऐसे इस टूर्नामेंट में कई अन्य टीमों के कुछ और खिलाड़ियों ने संयमशीलता का प्रमाण प्रस्तुत करते हुए अपने-अपने टीम के लिए बहुत उल्लेखनीय योगदान किया. जरा सोचिए, अगर इन खिलाड़ियों ने उन मैचों में उतावलापन दिखाया होता, जल्दबाजी की होती तो ऐसी यादगार पारी वे खेल पाते? 

'हड़बड़ से गड़बड़', 'जल्दी काम शैतान का' जैसी कहावतें सभी विद्यार्थी सुनते रहते हैं. बड़े-बुजुर्ग हमेशा कहते हैं कि संयम का फल मीठा होता है. पेड़ पर लगे फल को समय पूर्व अर्थात पकने से पहले तोड़ कर खाने पर वह खट्टा व कसैला लगता है. जो लोग संयम रखते हैं और फल को पकने देते हैं, उन्हें ही मीठा फल खाने को मिलता है. विद्यार्थियों के मामले में भी हमें ऐसा ही  देखने को मिलता है. 

विद्यार्थी जीवन में अमूमन हर कोई  उत्साह, उमंग और उर्जा से भरा रहता है. वह कई तरह के सपने देखता है. उसकी विविध इच्छाएं-आकांक्षाएं होती हैं. वह एक साथ बहुत कुछ हासिल करना चाहता है और वह भी फटाफट. इसके लिए वह कुछ भी करने को तैयार रहता है. वाकई करने की कोशिश भी करता है. हां, यह बात और है कि कई बार चाहकर भी कर नहीं पाता है. इसके एकाधिक कारण हो सकते हैं. लेकिन इस सबमें एक बात तो साफ़ है कि चाहने, करने, होने और फल पाने के बीच संकल्प और मेहनत के साथ-साथ संयम की बहुत अहम भूमिका होती है. सोच कर देखिए, अगर कोई किसान यह सोचे कि आज बीज रोपा और कल फसल काट लेंगे, तो क्या यह संभव होगा? उसी तरह अगर कोई विद्यार्थी यह सोचे कि उसकी आज की पढ़ाई या अध्ययन  का फल  कल ही या उनके इच्छानुसार तुरत मिल जाएगा तो यह क्या सही होगा? इस संबंध में प्रकृति के व्यवहार और चरित्र को समझना दिलचस्प तथा ज्ञानवर्धक होगा.

दरअसल, जीवन में संयम का पालन करना कामयाबी की कुंजी है. असंख्य गुणीजनों ने जीवन  में संयम की अनिवार्यता एवं अहमियत को अपने कर्मों से साबित किया है और रेखांकित भी. लिहाजा, विद्यार्थियों के लिए संयम के महत्व को ठीक से समझना और उसे अपने जीवन में अंगीकार करना बहुत ही जरुरी है. सभी  इस बात को मानेंगे कि जोश के साथ होश में रहकर हर कार्य को ठीक से सम्पन्न करने में संयम की अहम भूमिका होती है. संयम से विद्यार्थियों में धीरता, गंभीरता, समझदारी एवं परिपक्वता आती है. इससे  सही निर्णय लेने में वे ज्यादा सक्षम होते जाते है. इसका बहुआयामी फायदा उनके साथ-साथ समाज और देश को भी मिलता है. ऐसे विद्यार्थी पढ़ाई में बेहतर तो होते ही हैं, अन्य कार्यों में भी बेहतर प्रदर्शन करते हैं. इसके विपरीत जो विद्यार्थी जीवन में संयम का महत्व जानते-समझते हुए भी उसे उपयोग में नहीं लाते हैं, उनके जीवन में अनायास ही अनुशासनहीनता, संवेदनहीनता, उदंडता जैसी बुराइयां घर कर लेती हैं, जिसका दुष्परिणाम उनको और देश-समाज को बराबर भुगतना पड़ता है. 

शोध कार्य में लगे विद्वानों-वैज्ञानिकों को जरा गौर से काम करते हुए देखिए तो आपको पाता चलेगा कि संयम का दामन थामकर वे साल-दर-साल तन्मयता से परिश्रम करते रहते हैं, तब कहीं जाकर वे अपने शोध कार्य को पूरा कर पाते हैं. दुनिया में हुए तमाम आविष्कारों का इतिहास अगर हम पढ़ें तो संयम  की महत्ता का प्रमाण स्वतः मिल जाएगा. इलेक्ट्रिक बल्ब के आविष्कारक थॉमस अल्वा एडिसन इसके ज्वलंत उदाहरण हैं. सार्वजनिक जीवन में असाधारण सफलता हासिल करनेवालों के जीवन पर भी नजर डालें, चाहे वे महात्मा गांधी, सुभाष चन्द्र बोस, लालबहादुर शास्त्री, सरदार पटेल, राजेंद्र प्रसाद, जयप्रकाश नारायण, लोहिया, दीनदयाल उपाध्याय या अब्दुल कलाम हों, तो आपको वाणी से लेकर उनके व्यवहार एवं कार्यशैली में यह  गुण अनायास ही दिख जायेंगे. सच है, उन लोगों ने संयम को हमेशा अपना दोस्त बनाए रखा. 
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Friday, December 20, 2019

मोटिवेशन: प्राथमिकता प्रबंधन से पाएं सफलता

                                                                      - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ....
चाहे-अनचाहे आजकल सभी विद्यार्थीयों को कई बार एक साथ कई काम करने होते हैं. इन कार्यों या प्रोजेक्ट्स को  नियत समय सीमा के अन्दर अंजाम तक पहुंचाने की सामान्य अपेक्षा भी होती  है.  ऐसे भी अवसर आते हैं जब वे सारे कार्य इतने महत्वपूर्ण होते हैं और लगते भी हैं कि किसे पहले एवं किसे थोड़ी देर बाद में करें, फैसला करना मुश्किल हो जाता है. सच कहें तो मल्टी-टास्किंग के मौजूदा दौर में कई काम एक साथ करने का प्रेशर तो रहता है, लेकिन कई बार  एक साथ सब काम करना संभव नहीं होता. और -तो -और, ऐसी परिस्थिति में अगर सारे काम एक साथ करने की ठान भी लें, तथापि  सभी काम को सही तरीके से अंजाम तक पहुंचाना कई बार काफी जोखिमभरा भी साबित होता है. 

बहरहाल, सुबह उठने से लेकर रात में सोने से पहले तक सभी विद्यार्थी किसी-न-किसी काम में व्यस्त रहते हैं. पढ़ाई, परीक्षा, प्रतियोगिता और परिणाम के प्रेशर  के बीच  कई  विद्यार्थी सुबह पहले जो भी सरल एवं आसान काम सामने होता है उसे निबटाने में लग जाते हैं. लिहाजा, आवश्यक या महत्वपूर्ण या कठिन और मुश्किल काम या तो बिल्कुल नहीं हो पाता है या शुरू तो होता है, लेकिन एकाधिक कारणों से पूरा  नहीं हो पाता है. इस वजह से अहम काम या तो छूट जाते हैं या अधूरे रह जाते हैं. वे काम अगले दिन के एजेंडा में आ तो जाते हैं, लेकिन आदतन अगले दिन भी ऐसा ही कुछ होता है. इस तरह पढ़ाई हो या अन्य कार्य, छोटे, सरल और गैर-जरुरी काम तो किसी तरह होते रहते हैं, किन्तु महत्वपूर्ण और आवश्यक  कार्यों का अम्बार खड़ा होता रहता है. और तब उन्हें उतने सारे अहम कार्यों को तय सीमा में पूरा करना मुश्किल ही नहीं, असंभव लगने लगता है. इसका बहुआयामी दुष्प्रभाव उनके परफॉरमेंस पर पड़ना लाजिमी है. ऐसी स्थिति में आत्मविश्वास डोलने लगता है; बहानेबाजी और शार्ट-कट का सिलसिला चल पड़ता है. ऐसे में धीरे-धीरे उन्हें अपने  ज्ञान, कौशल एवं क़ाबलियत  पर अविश्वास-सा होने लगता है. उन्हें कठिन कार्यों  से डर और घबराहट होने लगती है. नतीजतन, ऐसे विद्यार्थी खुद को औसत या उससे भी कम क्षमतावान मानने लगते हैं और लोगों की नजर में भी वैसा ही दिखने लगते हैं.

इसके विपरीत कुछ विद्यार्थी सुबह पहले आवश्यक, महत्वपूर्ण और कठिन काम को यथाशक्ति   अंजाम तक पहुँचाने में लग जाते हैं. वे सभी काम पूरा हो जाने पर उन्हें  संतोष और खुशी दोनों मिलती है. अंदर से एक फील-गुड फीलिंग उत्पन्न होती है जिससे वे  अतिरिक्त उत्साह और उमंग से भर जाते हैं. आत्मविश्वास में इजाफा तो होता ही है. अब वे  बहुत आसानी और तीव्रता से आसान कार्यों को कर लेते हैं. शायद ही उनका कोई जरुरी काम छूटता है. अगले दिन काम करने की उनकी यही शैली होती है. वे चुनौतियों से घबराते  नहीं, बल्कि उनके स्वागत के लिए पूरी तरह तैयार रहते हैं. उनके लिए हर दिन एक नया दिन होता है और हर बड़ी-छोटी चुनौती से सफलतापूर्वक निबटना उनका मकसद.

कहना न होगा, आज के तेज रफ़्तार कार्य संस्कृति में जब कई बार सबकुछ फटाफट एवं अच्छी तरह करना होता है, तब प्राथमिकता तय करके कार्य करना अनिवार्य होता है. यहां  एलन लेकीन की इस बात पर गौर करना फायदेमंद होगा कि अपनी प्राथमिकताओं की समीक्षा करें और यह सवाल पूछें – हमारे समय का इस वक्त सबसे अच्छा उपयोग क्या है. 

दरअसल, लगातार अच्छी सफलता अर्जित करनेवाले सभी विद्यार्थी प्राथमिकता तय  करके काम करने को कामयाबी तक पहुंचने का एक महत्वपूर्ण सूत्र मानते हैं. लिहाजा, अगर अगले कुछेक घंटे में कई विषयों को पढ़ने  की चुनौती सामने होती है, तो उसमें से पहले कौन-सा पढ़ें और बाद में कौन-सा, अपनी समझदारी से 'प्राथमिकता के सिद्धांत' को लागू करते हुए वे विषयों को अति महत्वपूर्ण, महत्वपूर्ण और कम महत्वपूर्ण  की श्रेणी में रखकर न केवल सभी विषयों को यथासमय निबटाते हैं, बल्कि आगे उसके  परिणाम में बेहतरी भी सुनिश्चित कर पाते हैं. ऐसे विद्यार्थी आवश्यकता के अनुसार प्राथमिकता में थोड़ा -बहुत परिवर्तन के लिए मानसिक रूप  से पूरी तरह तैयार भी रहते हैं. 

बताने की जरुरत नहीं कि स्कूल, कॉलेज या यूनिवर्सिटी के अत्यंत सफल, सफल और कम सफल विद्यार्थियों के बीच एक बड़ा फर्क इस बात का भी होता है. 
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Friday, November 22, 2019

वेलनेस पॉइंट: बेहतर स्वास्थ्य के लिए पानी पीने की कला में पारंगत होना बेहतर

                                - मिलन  सिन्हा,  हेल्थ मोटिवेटर  एवं  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 
हमारी पृथ्वी पर करीब 70% जल है, फिर भी विश्वभर में जल समस्या पर चर्चा आम है, चाहे वह प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता की बात हो, जल जनित बीमारियों से हर साल देश में मरनेवालों की बात या जल को लेकर राज्यों के बीच विवाद. हमारे स्वास्थ्य को सन्दर्भ में रख कर बात करें तब  भी हम सबने सुना है, सोचा है और कभी-न-कभी कहा भी है  कि जल ही जीवन है, जल नहीं तो कल नहीं और बिन पानी सब सून. यह बिलकुल सही है.

रोचक तथ्य है कि एक व्यस्क व्यक्ति के शरीर में करीब 60% जल है, बच्चों में यह प्रतिशत कुछ ज्यादा तो बुजुर्गों में थोड़ा कम होता है. यूँ कहें तो हम सभी चलते फिरते पानी के बोतल है. शरीर में पानी की कमी हो जाए तो हमारा शारीरिक संतुलन बिगड़ने लगता है, कई तरह की स्वास्थ्य समस्या पैदा होने लगती है और कई बार तो पानी चढ़ाने तक की नौबत आ जाती है . तो चलिए, मानव स्वास्थ्य से जल के अदभुत रिश्ते की थोड़ी विवेचना करते हैं. 

विभिन्न अवसरों पर अपने हेल्थ मोटिवेशन सेशन में अलग–अलग तबके एवं उम्र के लोगों से मुलाक़ात तथा चर्चा के क्रम में यह बात स्पष्ट रूप से सामने आई कि अधिकांश लोग पानी पीने की कला  में पारंगत नहीं हैं.  कहने का अभिप्राय यह कि ज्यादातर लोगों को नहीं मालूम कि  पानी कैसे पीना चाहिए, कितना पीना चाहिए, कब पीना या कब नहीं पीना चाहिए. 

दरअसल अधिकांश लोग पानी पीते नहीं, गटकते हैं जैसे कि उन्हें पानी पीने तक की फुर्सत नहीं है. यह भी बताते चलें कि खड़े-खड़े बोतल से मुंह में पानी उड़ेलना और उसे फटाफट गटकना स्वास्थ्य की दृष्टि से सही नहीं है.  पीने का अर्थ है धीरे -धीरे जल ग्रहण करना और वह भी बैठ कर आराम से. सच पूछें तो स्वास्थ्य की दृष्टि से गिलास में मुंह लगाकर आराम से चाय या कॉफ़ी के तरह सिप करते हुए पानी पीना और यह महसूस करना कि इससे हमारा शरीर जलयुक्त हो रहा है या हमारा शरीर रूपी अदभुत पेड़ अच्छी तरह सींचित हो रहा है,  सबसे अच्छा माना गया है. कहते हैं इस तरह पानी पीनेवाले अम्लता और मोटापे से भी बचे रह सकते हैं. 

रोज सुबह नींद से उठने के तुरत बाद कम से कम आधा लीटर गुनगुना पानी पीना हमारे सेहत के लिए बहुत लाभकारी होता है. अगर इसे और प्रभावी बनाना है तो गुनगुने पानी में आधा नींबू निचोड़ लें. अगर आप ह्रदय रोग के मरीज नहीं हैं तो आप उस नींबूयुक्त पानी में थोड़ा सेंधा नमक मिला लें, लाभ ज्यादा मिलेगा. कुछ लोग जो मधुमेह से पीड़ित नहीं हैं, वे नींबू के साथ एक चम्मच शहद मिलाकर पीते हैं. इस तरह से अगर हम सुबह पानी का सेवन करते हैं तो इसका इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने एवं शरीर से विषैले तत्वों को बाहर निकालने  के अलावे  एकाधिक फायदे हैं. बताते चलें कि सामान्य तापमान से बहुत ज्यादा ठंडा या गर्म पानी हमारे शरीर के लिए अच्छा नहीं होता है. 

विशेषज्ञ यह भी कहते हैं  कि खाने के तुरत पहले, खाना खाने के बीच में और खाने के तुरत बाद पानी नहीं पीना चाहिए, क्यों कि इससे पाचन क्रिया दुष्प्रभावित होती  है. ऐसे, कभी किसी विषम परिस्थिति में दो-चार घूंट पानी पीना असामान्य बात नहीं है. हां, स्वास्थ्य विशेषज्ञ खाना खाने के कम-से-कम 40  मिनट पहले और खाना खाने के 40 मिनट बाद पानी पीने की सलाह देते हैं.  

सभी विशेषज्ञ बताते हैं कि शरीर जितना हाइड्रेटेड रहेगा, हम उतना ही स्वस्थ रहेंगे.  ज्ञातव्य है कि दिनभर में हमारे शरीर से कई तरीके से पानी निकलता रहता है. लिहाजा शरीर में पानी का अपेक्षित स्तर बनाए रखना अनिवार्य है. खासकर रात में सोने से पूर्व पानी अवश्य पीना चाहिए, इससे हार्ट व ब्रेन स्ट्रोक की संभावना कम हो जाती है. तनाव प्रबंधन में पानी की अच्छी भूमिका होती है. कभी मानसिक तनाव हो तो एक गिलास पानी घूंट-दर-घूंट पीकर इसका सुखद अनुभव कर सकते हैं. 

कहने का सीधा अर्थ यह कि सही मात्रा, सही समय और सही तरीके से पानी पीने से हम कब्ज, पिम्पल्स, मोटापा, मधुमेह, किडनी स्टोन, चर्म रोग, आर्थराइटिस, कोलाइटिस, हाई ब्लड प्रेशर, गैस की समस्या, नाक और गले की समस्या, माइग्रेन आदि शारीरिक समस्याओं से बचे रह सकते हैं. सार-संक्षेप यह कि दूसरों को 'पानी पिलाने' के मुहावरे को चरितार्थ करने के बजाय  खुद पानी पीने की कला में पारंगत होना हर दृष्टि से बेहतर स्वास्थ्य की बड़ी गारंटी है.

अंत में एक अहम बात. अगर कोई व्यक्ति किसी रोग विशेष से पीड़ित हैं  और डाक्टरी इलाज में हैं तो डॉक्टर की सलाह के मुताबिक़ ही पानी पीएं.    
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Sunday, October 20, 2019

मोटिवेशन: निराशा व अवसाद को कहें बाय-बाय

                                             - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर...
हाल ही में एक रिपोर्ट में यह बताया गया कि हमारे स्कूल-कॉलेज के अनेक  विद्यार्थियों में पढ़ाई  के प्रेशर, घरवालों की उनसे परीक्षा में अच्छे परिणाम की अपेक्षा और खुद उनका अपने रिजल्ट के प्रति आशंकित रहना निराशा और अवसाद का कारण बनता है.  कई मामलों में यह भी पाया गया है कि कुछ  विद्यार्थी  येन-केन-प्रकारेण अच्छा ग्रेड या अंक पाने और दूसरे से ज्यादा कामयाब होने के दौड़ और होड़ में जाने-अनजाने शामिल हो जाते हैं. ऐसे में, अपेक्षित परिणाम न आने पर उनका कन्फयूजन बढ़ना और परेशान हो जाना स्वाभाविक है. गौर करनेवाली  बात है कि वे इस विषय पर जितना सोचते हैं, उतना ही उलझते चले जाते हैं. वे अपनी स्थिति को अभिभावकों से साझा करने से भी कतराते हैं. परिणाम स्वरुप कई बार स्थिति चिंताजनक हो जाती है. 

यह सच है कि फ़ास्ट लाइफ और टफ कम्पटीशन के मौजूदा दौर में आम तौर पर निराशा का भाव देश के अनेक छात्र-छात्राओं  के मन–मानस को उलझाए रखता है.  कई विद्यार्थी तो अनिश्चितता और आशंका से ज्यादा कुशंका से जूझते रहते हैं. इससे उनकी सेहत तो खराब होती ही है, वे घर-बाहर कहीं भी चैन व सुकून से कार्य निष्पादित नहीं कर पाते, जिसका स्पष्ट असर उनकी उत्पादकता पर पड़ता है. आरोप लगना शुरू हो जाता है, तंज कसे जाते हैं, कभी-कभार डांट भी पड़ती है. मन और बैचैन हो जाता है. निराशा का भाव और गहराता है. कठिनाई समस्या बनने लगती है. अवसाद के आगोश में जाने की यह प्रारंभिक अवस्था होती है. लिहाजा इससे बचना निहायत जरुरी है. और इसके लिए उम्मीद का दामन थामना श्रेयष्कर साबित होता है. मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने क्या खूब कहा है कि हमें सीमित निराशा को स्वीकार तो करना चाहिए, परन्तु अनंत उम्मीदों का साथ नहीं छोड़ना चाहिए. 

मेरे एक मित्र हैं. निराशा के पल में वे बचपन में पढ़ी प्रख्यात कवि मैथिलीशरण गुप्त की यह कविता एक बार गुनगुना लेते हैं. कहते हैं, इससे उन्हें प्रेरणा मिलती है, उनमें आशा का संचार होता है. कविता की पंक्ति है : नर हो न निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो, जग में रहकर कुछ नाम करो ... ....

मनोवैज्ञानिक मानते और कहते हैं कि स्वस्थ एवं प्रसन्न रहने के लिए जीवन में उम्मीद का साथ होना आवश्यक है. हमारे देश के अनेकानेक ऋषि –मुनि तो इस विषय पर अपने अमूल्य विचारों एवं व्याख्यानों के माध्यम से असंख्य लोगों को विंदास जीने को प्रेरित करते रहे हैं. 

विचारणीय प्रश्न यह भी है कि तमाम कोशिशों के बावजूद अगर आप किसी कारण असफल हो भी जाते हैं तो आपके सिर पर आसमान टूट कर तो गिरनेवाला नहीं. अलबत्ता कुछ नुकसान होगा. हां, विश्लेषण करने पर कई बार आप पाते हैं कि आपके प्रयास में कमियां रह गई थी. ऐसे समय सबसे बेहतर होता है, जल्दी-से-जल्दी उसे मन से स्वीकार करना और अपनी कोशिशों में अपेक्षित सुधार लाना. एप्पल कंपनी के संस्थापक स्टीव जाब्स इस बात पर अमल करने में विश्वास करते थे. 

एक बात और. जीवन से बड़ा कुछ भी नहीं. फिर जीवन में आगे और भी मंजिलें तय करनी बाकी है. जरा सोचिए अमेरिका के सोलहवें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन के जीवन यात्रा के विषय में. एक-के-बाद-एक विफलताओं के बाद भी उम्मीद और सत्प्रयासों के बलबूते वे अमेरिका के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए और अमेरिका के गृह युद्ध (अमेरिकन सिविल वार) के कठिनतम  समय में देश का सफल नेतृत्व किया, देश में शान्ति स्थापित की. अमेरिका की पहली बधिर एवं नेत्रहीन कला स्नातक एवं प्रख्यात लेखिका हेलेन केलर हो या विश्वप्रसिद्ध ब्रिटिश भौतिक विज्ञानी स्टीफन विलियम हाकिंग या उनके जैसे अन्य अनेक दिव्यांग विभूति, सबने आशा को हमेशा अपना अभिन्न मित्र बना कर रखा और जीवन में अभूतपूर्व सफलता पाई. यहां यह जानना दिलचस्प तथा प्रेरणादायी है कि एक बार जब किसी ने स्वामी विवेकानन्द से पूछा कि 'सब कुछ खोने से ज्यादा बुरा क्या है' तो स्वामीजी ने उत्तर दिया कि 'उस समय उस उम्मीद को खो देना, जिसके भरोसे पर हम सब कुछ वापस पा सकते हैं.'  सच कहें तो  अपने आसपास देखने पर भी आपको कई लोग मिल जायेंगे जो इस जीवन दर्शन पर अमल करके अपने-अपने कार्यक्षेत्र में उन्नति के नये-नए कीर्तिमान स्थापित कर रहे हैं.       (hellomilansinha@gmail.com)


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Thursday, September 19, 2019

मोटिवेशन: दिमाग को साफ़-सुथरा रखना जरुरी

                                                             - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर... ...
हमारा देश युवाओं का देश है. यहां संभावनाओं और क्षमताओं की कोई कमी नहीं है. यह देश के लिए ख़ुशी की बात है. सूचना और संचार क्रांति के इस युग में हमारे युवाओं को चारों दिशाओं से प्रति क्षण असंख्य सूचना-समाचार मिलते रहते हैं. मोबाइल और इंटरनेट की सुलभता से यह काम और भी आसान हो गया है. सोशल मीडिया पर पुष्ट-अपुष्ट, सही-गलत, वांछित-अवांछित, शील-अश्लील सब तरह की सामग्री की बाढ़ से बेशक सभी हैरान हैं, बहुत से युवा परेशान भी.

मनुष्य मूल रूप से एक संवेदनशील प्राणी है. उसके दिमाग की कार्यक्षमता असीमित है, ऐसा मेडिकल साइंस भी मानता है. हमारे वेद-पुराण में इस तथ्य को साबित करने के अनेकानेक उद्धरण मौजूद हैं. आधुनिक युग में भी संसारभर में जिन लाखों विलक्षण लोगों ने अपने-अपने कार्यक्षेत्र में सर्वथा असाधारण कार्य किये हैं और कर रहे हैं वह स्वामी विवेकानन्द के इस उक्ति को संपुष्ट करते हैं कि सभी शक्तियां आपके अन्दर मौजूद हैं. आप कुछ भी कर सकते हैं. 

कंप्यूटर परिचालन में शुरू में ही बताया जाता है कि गार्बेज इन, गार्बेज आउट. अर्थात कचड़ा अन्दर डालेंगे तो कचड़ा ही बाहर आएगा. कहने का मतलब जैसा अन्दर डालेंगे, वैसा ही बाहर आएगा. कमोबेश यही सिद्धांत मनुष्य के दिमागी कंप्यूटर के साथ भी होता है, ऐसा सामान्यतः स्पष्ट दिखाई पड़ता है. इसी कारण हर समाज में शिक्षा और संस्कार के महत्व पर सभी एकमत रहे हैं. अच्छी शिक्षा और संस्कार से  सोच और बुद्धि का सीधा संबंध होता है. 

बहरहाल, चिंता की बात है कि इतना सब जानते-समझते-मानते हुए भी जाने-अनजाने बहुत सारे युवा नकारात्मक एवं अवांछित बातों-विचारों को अपने दिमाग में घुसने और अपने दिमाग को कचड़ा घर बनने दे रहे हैं. उनके दैनंदिन आचार-व्यवहार में इसकी झलक मिलती रहती है. लेकिन ऐसा नहीं है कि बच्चों, किशोरों और युवाओं के सरल एवं स्वच्छ मन-मानस को इस महामारी से बचाना बहुत मुश्किल है. इसके लिए समेकित प्रयास की जरुरत होगी. निःसंदेह, अभिभावकों एवं गुरुजनों का इस मामले में बहुत बड़ी भूमिका होगी, लेकिन पहल तो युवाओं को ही करना होगा.   

सबसे पहले स्वयं युवाओं के लिए  यह विचार करना जरुरी है कि उनके दिमाग में जो चीजें जा रही हैं वे बातें उनके लिए हितकारी हैं या नहीं, क्यों कि उसमें से अनेक बातें दिमाग में ठहर जाती है और उन्हें  कारण-अकारण व्यस्त रखती हैं. कई बार इसमें उनका  बहुत-सा समय यूँ ही खर्च होता है और वे समझ भी नहीं पाते. 

सोचनेवाली बात यह भी है कि जो अहितकारी बातें रोजाना उनके  पास आती हैं, आखिर वह किस स्रोत से ज्यादा आती हैं - किसी दोस्त, परिजन, सोशल मीडिया या अन्य किसी माध्यम से. युवाओं के लिए इसका गहराई से विश्लेषण करना निहायत जरुरी है. बेहतर तो यह होगा कि विश्लेषण एवं नियमित समीक्षा की प्रक्रिया उनके  रुटीन का हिस्सा बन जाए जिससे कि  दिमाग को प्रदूषित करने वाले स्रोत को पहचान कर तुरत उसे गुडबाय कर सकें. बुद्धिमान लोग तो  ऐसे कचड़े को आने से रोकने के लिए दिमाग के दरवाजे पर एक सशक्त स्कैनर लगा कर रखते हैं. उसे वहीँ  से बिदा कर दिया जाता है. 

एक अहम बात और. यह देखना भी जरुरी है कि वैसे कौन-कौन से विचार हैं जो उनके  दिमाग को अनावश्यक रूप से उलझाते हैं और परेशान करते हैं. उनकी पहचान कर लेने के बाद उनसे मुक्ति के लिए जरुरी है कि वे रोजाना अपने दिन की शुरुआत सकारात्मक सोच के साथ करें. सुबह जल्दी उठने का प्रयत्न करें. जो भी उनके आदर्श हों - माता-पिता, गुरुजन या कोई महान व्यक्ति, उन्हें याद कर उनका नमन करें. फिर सूरज की ओर देखें और महसूस करें कि आपके शरीर के  अन्दर दिव्य प्रकाश का प्रवेश हो रहा है और अँधेरा मिट रहा है. अब एक बार अपने शरीर के सारे अंगों- पैर की उंगलियों से सिर तक, को ठीक से देखें और सोचें कि आप कितने भाग्यशाली हैं कि आपके सारे अंग क्रियाशील हैं. इस शुरुआती पांच मिनट में ही आप आशा और विश्वास से भरने लगेंगे.  कहते हैं न ‘वेल बिगन इज हाफ डन’ यानी अच्छी शुरुआत आधा काम पूरा कर देता है. फिर दिनभर अच्छे कार्यों में व्यस्त रहें. बीच में अगर कोई नेगेटिव विचार या व्यक्ति आ जाए, उससे जल्द छुटकारा पा कर पॉजिटिव जोन में लौटें. नियमित अभ्यास से यह सब करना आसान होता जाएगा. रात में भी सोने से पूर्व फिर सकारात्मक सोच-विचार में थोड़ा वक्त गुजारें, उसका चिंतन-मनन करें. 

स्वभाविक है कि जो स्रोत उनके  लिए अच्छे हैं, ऐसे स्रोतों की संख्या बढ़ती रहे तो स्कूल-कॉलेज की परीक्षा हो या कोई कम्पटीशन, हर जगह प्रदर्शन बेहतर होना सुनिश्चित है. फिर तो लम्बी जीवन यात्रा में सफलता और खुशी उनके साथ-साथ चलती रहेगी और सर्वे भवन्तु सुखिनः जैसे विचारों को फलने-फूलने का सुअवसर भी मिलता रहेगा. 
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Sunday, August 11, 2019

Wellness Point: Stronger The Immune System, Better The Health

                                                     - Milan K Sinha, Motivational Speaker / Writer…
The people of all ages in the country are falling sick more frequently than before. Ironically, the incidences of non-communicable diseases are very much on the rise and so is the cost of medical expenses. The perennial shortage of doctors and nurses is still a cause of concern, notwithstanding opening of more medical colleges in the country. Overall health and wellness of citizens are the real challenges, equally before the government and society. How to address this crucial issue within the existing constraints and also without incurring extra public expenditure is a big predicament?  Let us discuss here at least one sure shot way in this regard through time tested motivation and awareness route. 

The famous American physician, author and professional speaker Michael Greger says, “Tobacco smoke contains chemicals that weaken the body’s immune system, making it more susceptible to disease and handicapping its ability to destroy cancer cells.”

Another expert Kris Carr says, “If you don’t think your anxiety, depression, sadness and stress impact your physical health, think again. All of these emotions trigger chemical reactions in your body which can lead to inflammation and a weakened immune system… …” 

Although health and medical experts are still busy in finding out the direct link between our lifestyle, dietary habits, genetic and psychological factors etc. and immune system yet everyone agrees on a point that all these factors have reasonable impact on our overall health and medical condition.

But what this immune system is all about?

In plain and simple words, our immune system denotes the status of body’s defence mechanism for fighting against micro-organisms that cause variety of diseases. The stronger the immune system, the lesser is the chance of falling sick. It being so, it is desirable to know the ways and means to improve our immune system to stay healthy and medically fit.
As discussed, it is a system of body’s defence and hence depends on a number of factors as indicated by many health experts. 

The list of ‘Dos’ and ‘Don’ts’ for maintaining a strong immune system is pretty long. Nevertheless, the following five simple and doable prescriptions, if practised sincerely can go a long way in strengthening the immune system to a reasonable extent:

1. Remain Oxygenated and Hydrated: Oxygen is our life line which we breathe every second. Nature gives us oxygen free of cost. We can have this life sustaining gas in adequate quantity despite several challenges of modern living, if we can save our forest and also plant trees in good numbers all around. Moreover, if we inculcate the habit of breathing deep to inhale more of oxygen and exhale more of carbon dioxide, we can keep our body amply functional and healthy.  

It is rightly said that water is equally needed as our body contains more than 60% water. Remaining always hydrated is therefore very desirable for multiple reasons. 

To say in fewer words, our health and so our immune system is very much dependent on the quantity and quality of oxygen we breathe and water we drink daily.

2. Practice Healthy Eating: Healthy eating means taking a balanced diet on daily basis. In other words, a balanced diet or a good diet means consuming eatables from different food groups in right quantities, because one single food group cannot provide everything an average healthy person needs. Interestingly, even factors like how you eat your food can influence how many calories get into your system, which is very important in any case. Health experts are also of the opinion that the better we chew our food, the more calories our body retains.

Saying a big no to junk and processed food items is also very necessary. In nutshell, healthy eating should be our way of life in order to keep our immune system strong.

3. Physical Exercise: Health experts recommend physical exercise of 20-30 minutes a day for minimum 4-5 days in a week for better blood circulation, activation of cells, flexibility of muscles, and secretion of feel good and feel happy hormones. All these cumulatively contribute towards improving immune system well. 

4. Sleep Well: Health and medical professionals assert the fact that adults who can sleep well for 7-8 hours every night have better mental as well as physical health which indicates their stronger immune system as much of our body's regeneration processes take place during these hours of sleep. 

5. Be Positive: As you sow, so will you reap- goes the old saying. Thinking and acting positive in any situation will finally bring you positive results. It has definite positive impact on your thought process as well as overall metabolic condition. To say, it is always better to shun negativity, increase positivity and in the process strengthen your mental wellness and also the immune system. Amy Morin says, ‘Positive thinking is a valuable tool that can help you overcome obstacles, deal with pain, and reach new goals.’
(hellomilansinha@gmail.com)

       Will meet again with Open Mind. All The Best.

Tuesday, July 9, 2019

मोटिवेशन: बेहतर क्षमता प्रबंधन से सफलता

                                                                           - मिलन सिन्हा, मोटिवेशनल स्पीकर ... ....
हमारे विद्यालय-महाविद्यालय-विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों से मुलाक़ात के क्रम में मैंने यह  पाया   है कि उनमें अपेक्षित संभावना एवं क्षमता की कमी नहीं है. मेधा और मेहनत में भी वे पीछे नहीं हैं. सभी जानते हैं कि उत्साह, उमंग और उर्जा भी व्यक्ति के  सोच और शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य पर निर्भर करता है. आम विद्यार्थियों की संभावना को परफॉरमेंस  में तब्दील करने की स्वभाविक चाहत से भी हम वाकिफ हैं. इसके बावजूद सभी विद्यार्थी अपने मुकाम को हासिल नहीं कर पाते हैं. इसके कई कारण हो सकते हैं. क्षमता प्रबंधन इनमें से एक बड़ा कारण है. इसे एकाधिक ज्वलंत उदाहरण के मार्फत सरलता से समझने की कोशिश करते हैं. 

हाल ही में संपन्न विवो आईपीएल क्रिकेट टूर्नामेंट के दौरान  आंद्रे रसेल, महेन्द्र सिंह धोनी, क्रिस गेल, हार्दिक पंड्या  जैसे कई खिलाड़ियों ने अपने-अपने क्षमता प्रबंधन का शानदार प्रदर्शन करते हुए अपनी टीम को अप्रत्याशित जीत दिलाई. आरसीबी (रॉयल चैलेंजर बंगलोर) टीम के खिलाफ केकेआर (कोलकता नाईटराइडर्स) की ओर से खेलते हुए एक मैच में रसेल ने मात्र तेरह बॉल पर सात छक्का और एक चौके के साथ नाबाद 48 रनों की बदौलत अत्यंत आश्चर्यजनक तरीके से अपनी टीम को विजय दिलाई. सीएसके (चेन्नई सुपर किंग्स) कप्तान धोनी ने राजस्थान रॉयल्स के खिलाफ एक मैच में कुछ ऐसा ही प्रदर्शन कर अपनी टीम को विजयी बनाया. बल्लेबाज के रूप में कब किस बॉल को किस तरह खेलना है जिससे कि अपने विकेट को बचाते हुए मात्र 20 ओवर के मैच में कम से कम गेंदों पर ज्यादा से ज्यादा रन बटोरते हुए विपक्षी टीम के खिलाफ जीत हासिल करें, यही उस खिलाड़ी की उच्च क्षमता प्रबंधन को रेखांकित करता है. उसी प्रकार एक बॉलर अपनी गेंदबाजी के दौरान बल्लेबाज विशेष के बैटिंग स्टाइल, फील्ड सेटिंग, पिच की स्थिति आदि को घ्यान में रखकर जब इंटेलीजेंटली गेंदबाजी करता है तो बल्लेबाज या तो जल्दी आउट हो जाता है या बहुत कम रन बना पाता है. ऐसे सभी खिलाड़ी विपरीत परिस्थिति में भी अपनी  क्षमता का समुचित उपयोग करना जानते हैं और कदाचित ही अपनी क्षमता को जाया होने देते हैं. 

एक बेमिसाल उदाहरण और. हाल ही में जिस एक शख्स की देश के कोने-कोने में खूब चर्चा हुई उसे आप सब अच्छी तरह जानते हैं. हां, मैं वायुवीर  विंग कमांडर अभिनन्दन वर्धमान की बात  कर रहा हूँ. आज अभिनन्दन सभी भारतीयों, खासकर विद्यार्थियों और युवाओं के सुपर हीरो हैं. हो भी क्यों नहीं. उन्होंने देश के सामने जिस धैर्य, संकल्प, संतुलन, वीरता और पराक्रम की मिसाल पेश की है उसका गुणगान स्वाभाविक रूप से सब ओर हो रहा है.  35 वर्षीय इस जाबांज वायुसेना अधिकारी, जो मिग-21 बाइसन जेट उड़ा रहे थे, ने पाकिस्तानी वायुसेना में शामिल अमेरिका में निर्मित आधुनिक एफ-16 में सवार पाक एयर पायलटों के नापाक इरादों को ध्वस्त कर दिया. उनके इस बेमिसाल कार्य से दुश्मन के हौसले पस्त हो गए. 

पूरे प्रकरण में काबिले गौर बात यह रही कि बेहद चुनौतीपूर्ण एवं बाद में बहुत विपरीत परिस्थिति में भी अभिनंदन ने यथोचित निर्णय  लिए और उसे बड़ी कुशलता से कार्यान्वित भी किया. दुर्घटनाग्रस्त मिग -21 से सफलतापूर्वक पैराशूट द्वारा दुर्भाग्यवश सीमा पार पाक इलाके  में उतरने के बाद स्थानीय उग्र भीड़ से खुद को बचाते हुए देश की  सुरक्षा से जुड़े गोपनीय दस्तावेजों को नियोजित ढंग से नष्ट करने में उन्होंने शारीरिक एवं मानसिक दोनों स्तर पर अपनी क्षमता प्रबंधन की उच्चतम मिसाल पेश की.  दुश्मन सेना द्वारा कब्जे में  लिए  जाने के बाद भी उनका आचरण बेहद संतुलित, संयमित और मर्यादित रहा और वे शूरवीर की तरह स्वदेश भी लौटे. 

उपर्युक्त कुछ उदाहरणों से यह बात साफ़ तौर पर उभर कर आती है कि जीवन में अपनी क्षमता पर विश्वास करना और उसे उत्तरोत्तर विकसित करना जितना जरुरी है, उतना ही जरुरी है उसका प्रबंधन. कहते हैं न कि लोहा जब गरम हो तभी चोट करना फायदेमंद होता है. उसी तरह प्रतियोगिता परीक्षा हो या हो खेल का मैदान, अगर "हम कौन-सा बॉल खेलें, कौन-सा बॉल छोड़ें" के तर्ज पर जीवन की छोटी-बड़ी परीक्षाओं में अपनी क्षमता का प्रबंधन करते हुए तदनुरूप प्रदर्शन कर सकें तो कोई भी जीत हमसे दूर नहीं जा सकती है. सार-संक्षेप यह कि हरेक विद्यार्थी के जीवन में उतार-चढ़ाव आता है -कम या ज्यादा. सफलता-असफलता  से भी वे सब रूबरू होते रहते हैं. लेकिन अगर वे बीच-बीच में अपनी क्षमता प्रबंधन की खुद ही गहरी समीक्षा करते हैं और अपनी कमियों में सुधार लाकर आगे बेहतर क्षमता प्रबंधन करते हैं, तो वे भी बेहतर उपलब्धि के हकदार बनते रहेंगे.  (hellomilansinha@gmail.com)


          ...फिर मिलेंगे, बातें करेंगे - खुले मन से ... ...  

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