Friday, February 26, 2021

Wellness Point: Simple Secret of Success


                      -MILAN K. SINHA,  Motivational Speaker & Wellness Consultant

During my motivation and wellness sessions, school-college-university students often ask me the question as to how one can achieve success in this critical phase of life - student life. The answer is simple but worth noting. In order to achieve success on regular basis one has to include all the good traits or qualities in one’s habit and working style so that it can be naturally and properly used in any situation. However, keeping in view an examination or a test or for that matter any event in life, the students can get success by adopting ‘4-P’ formula. What is this ‘4-P’ formula all about? Here the 4-P stands for Passion, Planning, Preparation and Performance. Let us dwell on this subject a bit elaborately to understand its huge significance.


Passion: American writer and speaker Eric Thomas says “I need no alarm clock, my passion wakes me up.”  Great spiritual thinker Swami Vivekananda says it with more clarity and conviction, “Take up one idea. Make that one idea your life or passion – think of it, dream of it, and live on that idea. Let the brain, muscles, nerves, every part of your body, be full of that idea, and just leave every other idea alone. This is the way to success.
” It’s absolutely correct. When any student takes the study passionately, there is no question of not getting better results in any examination or competition. All students must be aware of the amount of passion the founder of famous Apple Company, Mr Steve Jobs had towards his work or profession.

Planning: Hopefully, the significance of planning is known to all. Everybody knows its value, but how much? This is the moot question. Many management experts in their own way accepted the fact that if you want to move forward in life without any planning, you are moving with a definite plan to fail. Famous management expert and trainer Dale Carnegie says, “An hour of planning can save you ten hours of doing.” You too must have noticed few people around you who fail to achieve simple goals in life despite putting up hard labour. The reason is nothing but lack of planning. Hence, it is very necessary to embark on any important work or task with a full-proof meticulous planning.


Preparation: Without right preparation, you can’t think of success in any endeavour. Undeniably, incomplete preparation can only deliver incomplete results. Right preparation does mean that you move towards your goal with full preparation based on your planning. Taking up any task with this idea in mind and acting accordingly can be, over a period of time, your habit of addressing any issue or task in life. Obviously, this habit will go a long way in ensuring success in almost every test or competition. Renowned inventor and scientist Alexander Graham Bell says, “Before anything else, preparation is the key to success.”


Performance: Ultimately, your performance tells about your passion, planning and preparation. To say, despite your passion, planning and preparation being really up to the mark, still at the performance level if you fail for any reason whatsoever, then the final result or outcome can well be anticipated. So, it is imperative on your part to ensure best of performance at all times. At this point of time, it is better to keep in mind the golden words of famous industrialist and management master Henry Ford, "There is no man living who is not capable of doing more than he thinks he can do."


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Wednesday, January 13, 2021

संकल्प, संयम, कर्म व देशप्रेम के प्रतीक स्वामी विवेकानन्द

                                                                                                  - मिलन  सिन्हा

संकल्प, संयम, कर्म के प्रति निष्ठा और देशप्रेम की भावना स्वामी विवेकानंद (जन्म : 12 जनवरी, 1863, देहावसान : 4 जुलाई, 1902)  के जीवन की कहानी  खुद कहता है. इन विषयों पर उनके विचार हर व्यक्ति के लिए हमेशा प्रेरणादायक थे, हैं और रहेंगे. आइए, इन विषयों पर व्यक्त  उनके विचारों से प्रेरणा लेते हैं.


संकल्प: जिस समय जिस काम का संकल्प करो, उस काम को उसी समय पूरा करो, अन्यथा  लोग आप पर विश्वास नहीं करेंगे... ... जब तुम कोई कर्म करो, तब अन्य किसी बात का विचार ही मत करो. उसे एक उपासना के रूप में करो और उस समय उसमें अपना सारा तन-मन लगा दो... ...उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य ना प्राप्त हो जाये. 


संयम: किसी भी काम को अच्छी तरह करने के लिए जरूरी है एकाग्रता.... ....हम इन्द्रियों पर संयम रखकर एकाग्रता प्राप्त कर सकते है.... .... मन का विकास करो तथा उसका संयम करो. उसके बाद जहां इच्छा हो, वहां इसका प्रयोग करो. इससे जल्दी सफलता मिलेगी. 


कर्म: मनुष्य के रूप में हमारा पहला कर्त्तव्य यह है कि अपने प्रति घृणा न करें, क्योंकि आगे बढ़ने के लिए यह आवश्यक है कि पहले हम स्वयं में विश्वास रखें ... ...प्रत्येक मनुष्य का कर्त्तव्य है कि वह अपना आदर्श लेकर उसे चरितार्थ करने का प्रयत्न करें. दूसरों के ऐसे आदर्शों को लेकर चलने की अपेक्षा, जिनको वह पूरा ही नहीं कर सकता, अपने ही आदर्श का अनुसरण करना सफलता का अधिक निश्चित मार्ग है. 


देशप्रेम: हमारा पवित्र देश भारत धर्म, दर्शन, अध्यात्म, प्रेम और मधुरता की पुण्य भूमि है. इन बातों में संसार के अन्य देशों की अपेक्षा हमारा देश अब भी श्रेष्ठ है.  यहीं अनेक बड़े-बड़े महात्माओं एवं ऋषियों का जन्म हुआ है. यह संन्यास और त्याग की भूमि है. आदिकाल से अबतक यहां मानव जीवन के लिए सर्वोच्च आदर्श का द्वार खुला हुआ है.


आज स्वामी जी को सच्ची श्रद्धांजलि यह होगी कि हर भारतवासी  स्वामी जी के व्यक्तित्व से सच्ची प्रेरणा लेकर देश को आत्मनिर्भर, समृद्ध और खुशहाल बनाने में व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से हरसंभव योगदान करें.   
(लेखक मोटिवेशनल स्पीकर एवं स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट हैं)

 (hellomilansinha@gmail.com)       

      
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Friday, December 18, 2020

मोटिवेशन: जिज्ञासा का साथ न छूटे

                              - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट ... ...

"जंगल बुक" जैसी विश्व प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक ब्रिटिश साहित्यकार रुडयार्ड किपलिंग, जिन्हें  साहित्य के क्षेत्र में सबसे कम उम्र  में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था, का कहना है, "मैं छह ईमानदार सेवक अपने पास रखता हूँ. इन्होंने मुझे वह हर चीज़ सिखाया है जो मैं जानता हूँ.  इनके नाम हैं – क्या, क्यों, कब, कैसे, कहाँ और कौन. सचमुच कितनी महत्वपूर्ण बात कही है इस महान लेखक ने.
 सभी विद्यार्थी  इस बात से सहमत होंगें कि देश-दुनिया में अबतक जितने भी आविष्कार और अन्वेषण हुए हैं, सबके पीछे इन छह शब्दों की अहम भूमिका रही है. इसे एक शब्द में मनुष्य के  प्राकृतिक गुण जिज्ञासा के रूप में जाना जाता है. जरा सोचिए, गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को प्रतिपादित  करनेवाले महान वैज्ञानिक आइजक न्यूटन के बारे में. अगर पेड़ से गिरते हुए सेव को देखकर उनको यह जिज्ञासा न हुई होती कि यह सेव नीचे धरती पर ही क्यों गिरा, तो क्या यह महान आविष्कार हो पाता? अगर महान भारतीय वैज्ञानिक प्रोफेसर जगदीश चन्द्र बोस और इटालियन वैज्ञानिक गुल्येल्मो मार्कोनी अपनी जिज्ञासा को पंख न लगाते तो क्या रेडियो टेलीग्राफी का आविष्कार हो पाता और आज उसी सिद्धांत पर आधारित रेडियो, दूरसंचार, टेलीविज़न, मोबाइल आदि की  विराट और अदभुत  दुनिया का लाभ हम उठा पाते? 


दरअसल, जो अनदेखा, अनसुना और अनजाना है उसके प्रति स्वाभाविक जिज्ञासा मनुष्य मात्र में होती है. प्राचीन काल से ही मनुष्य जाति इसको अपना सबसे प्रिय साथी और औजार बनाकर निरंतर विकास के मार्ग पर अग्रसर होती रही है. वास्तव में, जिज्ञासा मनुष्य को हमेशा कुछ नया सोचने और करने को प्रेरित करती रहती है. यह नायाब मानवीय गुण एक ओर जहां निराशा और गम से जूझते लोगों को झकझोरती है और समाधान के नए रास्ते तलाशने को प्रेरित करती है, वहां  दूसरी ओर सुख-सुविधा से संपन्न व्यक्ति को जीवन का सही अर्थ जानने को विवश भी कर देती है. इसके बहुत सारे उदाहरण दुनिया में मौजूद हैं. एक बड़े उदाहरण के रूप में महात्मा बुद्ध और उनके अनमोल विचार दुनिया के सामने हैं. जरा सोचिए, अगर कोई विद्यार्थी अपनी जिज्ञासा को विस्तार देते हुए एक बड़ा लक्ष्य रखे कि उसे तो इस ब्रह्माण्ड को समझने की कोशिश करनी है; पशु-पक्षी, पेड़-पौधे, सूरज-चाँद-सितारे, देश-विदेश आदि से जुड़ी हर बड़ी बात को जानने-समझने का प्रयास करते रहना है, तो उसे कितना ज्ञान और अनुभव हासिल होगा.  

    
विभिन्न सर्वेक्षणों में यह बात साफ़ तौर पर उभर कर आती है कि अधिकांश विद्यार्थी औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद एक अच्छी नौकरी की तलाश में रहते हैं, जब कि अपनी शिक्षा, जिज्ञासा और क्षमता के आधार पर अपना व्यवसाय या उद्द्योग शुरू करने हेतु आगे आनेवाले युवाओं की संख्या अभी भी बहुत कम है. इस स्थिति में बदलाव जरुरी है. 
अच्छी बात है कि नई शिक्षा नीति का एक बड़ा उद्देश्य विद्यार्थियों में जिज्ञासा की प्रवृति को उत्प्रेरित करना है जिससे कि छात्र-छात्राएं छात्र जीवन में और उससे आगे भी अपने सोच-विचार तथा कार्य-कलाप को उन्नत करते रहें. 


हर विद्यार्थी में जिज्ञासा का गुण विद्यमान होता है. बस हमेशा यह कोशिश करते रहने की जरुरत होती है कि किसी भी कारण जिज्ञासा की आग ठंडी न हो जाय. इसके लिए विद्यार्थियों को इन अहम बातों पर फोकस करना चाहिए.
 पहली बात यह कि कभी भी प्रश्न पूछने से संकोच न करें. हां, प्रश्न पूछने का अंदाज शालीन और मर्यादित हो तो बेहतर. यह सच है कि कई बार विद्यार्थी यह सोचकर प्रश्न नहीं पूछते कि साथी-सहपाठी या शिक्षक बाद में उसका मजाक तो नहीं उड़ायेंगे. इस मामले में किसी ने बहुत सही कहा है कि जो विद्यार्थी प्रश्न पूछता है उसका कुछ देर के लिए तो मजाक उड़ाया जा सकता है या थोड़े समय के लिए तो वह मूर्ख प्रतीत हो सकता है, लेकिन जो विद्यार्थी इस डर से प्रश्न ही नहीं  पूछते, वे तो जीवन भर मूर्ख बने रहते हैं. दूसरा, अपने प्रश्न का उत्तर ठीक से सुनें और उसे समझने का यत्न करें. पूरी तरह न समझने की स्थिति में या उस विषय में कोई और प्रश्न दिमाग में आने पर उसका भी समाधान प्राप्त करें. तीसरा, जिज्ञासा के दायरे को सीमित न करें. कहने का आशय यह कि कोर्स में आपके जो भी सब्जेक्ट्स हैं उनके केवल कुछ प्रश्नों को सॉल्व करके संतुष्ट न हो जाएं, बल्कि अन्य सभी संभावित प्रश्नों के प्रति जिज्ञासु बनकर समाधान तक पहुंचने की चेष्टा करें. इसके लिए आपको को उस विषय के साथ गहरी दोस्ती निभानी पड़ेगी. निसंदेह, आपको अपनी जिज्ञासा के मैजिकल परिणाम मिलते रहेंगे. 

 (hellomilansinha@gmail.com) 

      
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लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता" में प्रकाशित
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Saturday, November 7, 2020

Wellness Point: Set Your Goal Smart

                              - Milan K. Sinha, Motivational Speaker, wellness Consultant ... ...


In this dynamic world we get to know about record breaking achievements by one or the other person in their respective field. Few months back there was wide media coverage of M.C.Marycom, the woman boxer for winning another big title. It is really heartening that good number of sportspersons have been proving their real talent in international sports events.

Swami Vivekananda rightly says, "All power is within you. You can do anything and everything. Believe in that. Don't believe that you are weak. Stand up and express the divinity within you."

Undeniably, these performers and many others in other fields of activity- science, finance, politics, administration, entertainment, arts & crafts, literature etc. have exhibited their unflinching commitment towards certain winning qualities including determination, dedication, discipline and hard work. Nonetheless, one defining and common commitment of these achievers has been towards setting a smart goal at the first place.

The pertinent question here is what is special about smart in setting a goal? Interestingly, each letter of the word SMART signifies a special character. Let us examine and enjoy it through the example of a college student. Yes, it is equally applicable in other cases.

S for specific. Goal must be specific, not confusing or hazy or unclear. It's like Mahabharat’s great teacher and trainer Dronacharya's dearest disciple Arjuna's specific goal of hitting the eye of the bird on a tree. Arjuna was so focused on his goal that he was quite unaware of even the other body parts of the bird itself.    

M for measurable. To say, it can be measured on a scale. For example, when a student says he wants to score good marks in the ensuing examination, the question will be what does this good mark actually mean? Is it 60, 70 or 90%? Once this percentage is set, only then the student can make an estimation and action plan about the extent of efforts required for achieving the goal.

A for achievable. It signifies whether the goal set is really achievable. There is no point in setting a goal which prima facie is unachievable by any means. Now, if the said student sets a target of 98% whereas he has been securing around 50% in previous examinations and the next examination is only a month away, the goal is very much unachievable and hence can't be a part of a smart goal.

R for relevant. That does mean that it is relevant in the context of larger goal of your life or from the point of view of the benefits you intend to receive vis-a-vis your total efforts, energy and time required to achieve the said goal.

T for time bound. Whatever be the goal, it must be achieved within a time limit. No goal can be set for an unlimited time. A goal is meaningless without a deadline. Taking the same example of the said student, if he says that he will achieve the goal this time or next time, the smartness of setting a goal is completely purposeless. 

Experts of all fields do opine that if we can set a smart goal and take all possible steps to move towards it firmly, success is guaranteed. Finally, let us enjoy the golden words of Brian Tracy on the subject. He says, "People with clear and written goals accomplish far more in a shorter period of time than people without them could ever imagine." In fact, by following this principle in life, anybody can ensure far better chances of being successful in all the endeavours.         (hellomilansinha@gmail.com)

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Wednesday, October 28, 2020

वेलनेस पॉइंट: धूप का सेवन करें और सेहतमंद रहें

                                   - मिलन  सिन्हा, हेल्थ मोटिवेटर एंड  स्ट्रेस मैनेजमेंट कंसलटेंट 
सूर्य के बिना जीवन की कल्पना नामुमकिन है. हमारे देश में हजारों वर्षों से सूर्य को देवता के रूप में पूजा जाता है. सूर्य की पहली किरण हमारे लिए रोज एक नयी सुबह लेकर आती है. हरेक के जीवन में आशा, उत्साह, उर्जा और उमंग को प्रतिबिंबित करती है ये किरणें. दिलचस्प बात  है कि सूर्य हमें सिर्फ प्रकाश और ऊर्जा प्रदान नहीं करते, बल्कि हमारे लिए वायु, जल, अन्न, फल और साग-सब्जी का भी प्रबंधन करते हैं.  इतना ही नहीं, सूर्य की किरणों का हमारी सेहत से गहरा रिश्ता है. हम सभी जानते हैं कि धूप विटामिन-डी का सबसे सशक्त, प्रभावी और आसानी से उपलब्ध प्राकृतिक स्रोत है.


ज्ञातव्य है कि हमारा देश विश्व के ऐसे देशों में शामिल है, जहां लोगों को सूर्य की रोशनी पर्याप्त मात्रा में कमोबेश हर मौसम में उपलब्ध होती है. फिर भी हाल में एक रिसर्च में जो  तथ्य सामने आया है उसके मुताबिक़ देश में बड़ी संख्या में लोगों में विटामिन-डी की कमी पाई गई है, जिसके कारण उन लोगों का कई सारे रोग के चपेट में आने का खतरा स्वतः बढ़ जाता है. 


दरअसल फ़ास्ट लाइफ के वर्तमान दौर में  मुफ्त में मिलनेवाली धूप के विषय में ठीक से जानने, समझने और उसका आनन्द ही नहीं, बल्कि हेल्थ के सन्दर्भ में उसका अपेक्षित लाभ उठाने का अवसर नहीं मिल पाता है या उसके प्रति अपेक्षित जागरूकता का अभाव है. 


दिलचस्प तथ्य है कि सूर्य न केवल हमें बल्कि सम्पूर्ण ब्रह्मांड को ऊर्जा प्रदान करता है. सूर्य की सप्तरंगी किरणें रोगनिवारक होती हैं. धूप के सेवन से हमारा शरीर अनेक प्रकार की बीमारियों से बचा रहता है. प्रकृति विज्ञानी तो कहते हैं कि सूर्य एक प्राकृतिक चिकित्सालय है. ऐसी मान्यता बिलकुल सही है जब हम आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के तराजू पर धूप के असीमित फायदों को तौलते हैं.


1. धूप के कारण हमारे शरीर को उचित मात्रा में विटामिन-डी मिलने पर कैल्शियम शरीर में ठीक से एब्जोर्ब यानी अवशोषित होता है. इसी कारण विटामिन-डी को शरीर में हड्डियों की मजबूती के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है. हड्डियां कमजोर होने से फ्रैक्चर का खतरा बढ़ता है. हम ऑस्टियोपोरोसिस के  शिकार भी हो सकते हैं. 


2. धूप का नियमित सेवन न करने यानी विटामिन-डी की कमी से दिल की बीमारी भी होती है. हार्ट स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है. मांस -पेशियों में दर्द रहता है जिससे कई अन्य दिक्कतें भी पैदा होती हैं.


3. सूरज की किरणों में एंटी कैंसर तत्व होने से कैंसर का खतरा टलता है. जिन्हें कैंसर है, उन्हें धूप से बीमारी में आराम महसूस होता है. कई शोधों से यह बात सामने आई है कि जहां धूप कम समय के लिए होती है या जो लोग धूप में कम समय बिताते हैं, कैंसर की आशंका वहां ज्यादा होती है.


4. धूप के कारण शरीर गर्म होता है. नाड़ियों में रक्त प्रवाह सुचारू रहता है. इससे शरीर के सारे अंग सक्रिय रूप से काम करते हैं. धूप के सेवन से जठराग्नि ज्यादा सक्रिय रहती है. फलतः पाचनतंत्र बेहतर ढंग से काम करता है और खाना ठीक से पचता है. नतीजतन हमारे शरीर को अपेक्षित पोषण मिलता है और सेहत ठीक रहती है.


5. शरीर को अपेक्षित धूप न मिलने के कारण सेरोटोनिन तथा  एंडोर्फिन जैसे फील गुड और फील हैप्पी हार्मोन का यथोचित स्राव नहीं होता है जिससे तनाव और अवसाद से ग्रस्त लोगों को ज्यादा परेशानी होती है. ऐसे भी सुबह की धूप हमारे मन -मष्तिष्क को आनंदित करता है. 


6. धूप का संबंध हमारी नींद से भी है. नींद की क्वालिटी को प्रभावित करनेवाला  मेलाटोनिन नामक हार्मोन का स्राव धूप सेंकने से अच्छी तरह संभव हो पाता  है, क्यों कि धूप का सीधा असर  हमारे शरीर के पीनियल ग्रंथि पर होता है जिससे यह हार्मोन निकलता है. 


7. धूप का सेवन त्वचा संबंधी कई शारीरिक समस्याओं को दूर करने में सहायक होता है. एक्ने, सोरायसिस और एग्जिमा इनमें से कुछ हैं. दरअसल, धूप सेंकने से हमारा खून साफ़ होता है और इम्यून सिस्टम भी मजबूत होता है. धूप के सेवन से कई तरह के संक्रमण अपने-आप ख़त्म हो जाते हैं. 


8. जाड़े के मौसम में धूप में बैठने से  शरीर को गर्मी मिलती है, जिससे शरीर की जकड़न दूर होती है और ठंड के कारण आई अंदरूनी परेशानियां दूर होती है. इससे हड्डियों और मांसपेशियों को बहुत लाभ मिलता है.


9. नियमित रूप से कुछ समय धूप का सेवन करने से सर्दी-जुकाम से बराबर पीड़ित रहनेवाले  लोगों को बहुत फायदा होता है. दरअसल, धूप में बैठने से हमारे शरीर में वाइट ब्लड सेल्स की संख्या तेजी से बढ़ती है जो रोग का प्रतिकार कर पीड़ित व्यक्ति को राहत पहुंचता है.


हां, एक वाजिब सवाल हैं कि किस समय और कितनी देर धूप का सेवन स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है? 


सुबह की धूप हमेशा अच्छी होती है. मौसम के हिसाब से कहें तो जाड़े में सुबह 12 बजे तक आधे घंटे तक धूप का सेवन बेहतर लाभ पहुंचाता है. गर्मी में सुबह 9-10 बजे तक का समय उपयुक्त है. जो लोग सुबह धूप का लाभ नहीं उठा सकते वे अपराह्न सूर्यास्त से पहले यानी 4-6 बजे के बीच इसका आनंद ले सकते हैं.


ध्यान रहे कि किसी भी मौसम में चिलचिलाती धूप में बैठना-लेटना सही नहीं है. जैसे कोई भी चीज बहुत अधिक ठीक नहीं होती, वैसे ही बहुत देर तक धूप में बैठे रहना भी हानिकारक है. इससे स्किन कैंसर, आंख की परेशानी, एलर्जी आदि का खतरा रहता है.


अंत में एक और विचारणीय बात. लाइफ कितना  भी फ़ास्ट हो, प्राथमिकताओं का सही प्रबंधन करते हुए हम सभी अपनी सेहत को ठीक रखने के लिए रोज थोड़ा वक्त तो निकाल ही सकते हैं. कहते हैं न कि जहां चाह, वहां राह. उदाहरण के लिए अगर हम सूर्योदय के बाद वाकिंग करते हैं  तो हमें अनायास ही थोड़ी देर धूप में भी रहने का अवसर मिल जाता है. शनिवार-रविवार या अवकाश के दिन अगर बच्चों के साथ किसी पार्क में चले गए तो बच्चों का मनोरंजन और व्यायाम हो जाएगा तथा साथ  में सबको धूप में रहने का मौका भी मिल जाएगा. उसी तरह जब भी मौका मिले, थोड़ा सन बाथ लेने का प्रयास करेंगें तो सेहत को ठीक रख पायेंगे
.   

(hellomilansinha@gmail.com)  
 
        
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Wednesday, September 16, 2020

मोटिवेशन: दो कल के बीच वर्तमान का उपहार

                                 - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...

विश्व विख्यात वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन कहते हैं कि 'कल से सीखो, आज के लिए जीओ, कल के लिए सपने देखो और सबसे जरुरी बात यह कि कभी भी रुको मत.' 
सचमुच सभी छात्र-छात्राओं का समय सपने देखने और उनको सच करने के क्रम में कल, आज और कल के बीच से गुजरता है. अपने काउंसलिंग सेशन में वैसे हर विद्यार्थी से जो समय की कमी और बेहतर परफॉर्म न कर पाने की बात करते हैं, आग्रह करता हूँ कि सिर्फ एक हफ्ते तक रोजाना रात में सोने से पहले एक नोट पैड में ईमानदारी से यह लिखें कि उन्होंने कितने घंटे अतीत की दुखभरी बातों को याद करने में बिताए, भविष्य के सोच में आशंका व चिंताग्रस्त रहे और कितने घंटे वाकई तन्मयता से अध्ययन में बिताए. सामान्यतः  यह बात साफ़ तौर पर सामने आती है कि पास्ट और फ्यूचर की बातों में उनका ज्यादातर समय गुजर जाता है और उन्हें पता भी नहीं चलता. कदाचित वे महसूस करते हैं कि यह ठीक नहीं है, लेकिन अगले दिन उनका समय अतीत की कुछ ऐसी ही नेगेटिव बातों को याद करने में या भविष्य की दुश्चिंताओं में गुजरता है. परिणाम स्वरुप अपने लक्ष्य के अनुरूप सकारात्मक सोच के साथ आज को जीने के लिए उनके पास समय कम पड़ जाता है. 

 
हां, यह सही है कि किसी भी विद्यार्थी के लिए शायद ही संभव होगा कि वह दिनभर में कभी भी अतीत या भविष्य में विचरण न करें, लेकिन क्या यह मुनासिब नहीं है कि एक बार ठीक से अतीत और भविष्य यानी दोनों कल के विषय में अपना माइंड क्लियर कर लें? 
 चलिए, अभी कुछ सोच-विचार कर लेते हैं. मजेदार बात है कि एक दिन पहले के आज को बीता हुआ कल यानी अतीत कहते है और एक दिन बाद आनेवाले आज को भी कल ही कहते है, लेकिन मतलब भविष्य होता है. यही न. तो साफ़ है कि दोनों कल वाकई आज ही था या होगा समय के एक अंतराल के बीच. फिल्म "हम हिन्दुस्तानी" का यह गाना कि " छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी, नए दौर में लिखेंगे मिलकर नई कहानी..." या फिल्म "कसमे-वादे" का यह गाना "कल क्या होगा किसको पता अभी जिंदगी का ले लो मजा..." दोनों गानों में अतीत और भविष्य की बातों को छोड़कर आज में जीने का संदेश साफ़ है. फिर विद्यार्थियों को क्या करना चाहिए?


महात्मा बुद्ध का कहना है कि 'मन और शरीर दोनों के लिए स्वास्थ्य  का रहस्य यह है कि  अतीत पर शोक मत करो और ना ही भविष्य की चिंता करो, बल्कि बुद्धिमानी तथा  ईमानदारी  से वर्तमान में जीओ.' 
 तो  छात्र-छात्राएं सर्वप्रथम  यह संकल्प करें कि अभी से वे वर्तमान यानी प्रेजेंट में जीयेंगे. प्रेजेंट का एक अर्थ उपहार भी है और शायद इसी को रेखांकित करता है आज का समय यानी वर्तमान, जो वाकई  एक अमूल्य उपहार है. हां, इस संकल्प को हमेशा याद रखना है और मन ही मन दोहराना भी है. ऐसा इसलिए कि जब भी मन अतीत या भविष्य में जाए और नेगेटिविटी के जाल में फंसने लगे तो वे प्रेजेंट में तुरत लौट सकें.  यहां इस बात को नहीं भूलना चाहिए  कि अतीत का पूरा समय बीते हुए वर्तमान का कुल योग होता है और भूतकाल के इस बड़े काल खंड में सभी विद्यार्थियों ने अनेक काम किए हैं और बहुत-सा अच्छा-बुरा अनुभव प्राप्त  किया है. ये अनुभव  उनके  धरोहर हैं  और आगे बहुत काम आनेवाले हैं अगर वे  इनसे मिले सबक और सीख को वर्तमान में अर्थात आज उपयोग में ला सकें. अतीत की असफलताओं और गलतियों को सिर्फ याद कर निराश और दुखी होने का कोई फायदा नहीं. आगे वही गलती न करें तो कुछ बात बने. दूसरा, अतीत की जो सफलताएं या अच्छी यादें आपके स्मृति में हैं, उन्हें अच्छी तरह संजो कर रखें. उन्हें जीवंत बनाए रखना आपको अच्छे कार्य में संलग्न रहने को उत्प्रेरित करता रहेगा. तीसरा यह कि भविष्य के लिए जो सपने देखें हैं या जहां पहुंचना चाहते हैं यानी जो आपका बड़ा लक्ष्य है, उसके लिए एक प्रैक्टिकल और फुलप्रूफ कार्ययोजना तैयार करके चलें. यकीनन, इन्हें साधने के साथ-साथ छात्र-छात्राओं को आज पर पूरा फोकस करना होगा क्यों कि वे आज जो कुछ करते हैं, वही हकीकत है और सबसे अधिक अहम.  


महात्मा गांधी भी कहते हैं कि 'हमारा भविष्य इस बात पर निर्भर करता है कि हम आज क्या करते हैं.'  आपने यह भी सुना ही है कि 'काल करो सो आज कर, आज करो सो अभी.' तो बस इस सिद्धांत को दृढ़ता से अपनाकर हर दिन को एक महत्वपूर्ण दिन मानें और फिर आज यानी वर्तमान के अच्छे कार्य व प्रयास को खूब एन्जॉय करते हुए अपने निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में बढ़ते चलें. निसंदेह, सफलता और ख़ुशी दोनों मिलेगी. 

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Saturday, August 15, 2020

मोटिवेशन: प्रकृति से जुड़ने के असीमित फायदे

                                       - मिलन  सिन्हा,  मोटिवेशनल स्पीकर, वेलनेस कंसलटेंट ... ...

कोविड 19 से बचावरूपी लॉक डाउन के कारण बेशक हमें कई छोटी-बड़ी तकलीफों से गुजरना पड़ा हो, लेकिन इसी अवधि में प्रकृति ने अपना जो रूप हम सबको दिखाया है, वह बेहद उत्साहवर्धक और खूबसूरत है. दिल्ली में दशकों से प्रदूषण से जूझती यमुना नदी तक स्वच्छ दिखने लगी, तीन सौ किलोमीटर दूर से हिमालय पर्वत श्रृंखला के छोटे-बड़े पहाड़ साफ़ नजर आने लगे, तितली- चिड़िया-जानवर उन्मुक्त विचरण करते दिखे, ध्वनि-जल-वायु प्रदूषण से दुष्प्रभावित रहनेवाले अनेकानेक मरीज बिना किसी मेडिसिन के अच्छा फील करने लगे. यकीनन, इससे हमें  प्रकृति के अनेक संदेश प्राप्त हुए. 
सभी ज्ञानीजन बारबार कहते हैं कि प्रकृति हम सबका उत्तम  शिक्षक, मार्गदर्शक और सखा है, जो हमेशा हमारे कल्याण हेतु समर्पित है. जिसको भी प्रकृति को जानने, समझने और उससे सीखने की आदत लग जाती है, उसे ज्ञान और बुद्धि का अभाव नहीं रहता. 


जीने के लिए हमें क्या चाहिए सवाल के उत्तर में लगभग सभी विद्यार्थी पहले रोटी, कपड़ा और मकान की बात करते हैं. लेकिन क्या यही सबसे जरुरी चीजें हैं या और कुछ? सोचनेवाली बात है कि वे उन तीन चीजों की चर्चा नहीं करते जिसके बिना  जीवन की कल्पना तक नहीं कर सकते और रोटी, कपड़ा और मकान भी इन्हीं तीन चीजों पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से निर्भर है. क्या है ये तीन चीजें? हवा, पानी और धूप. चूंकि ये तीनों चीज प्रकृति द्वारा सबको  मुफ्त में मिल जाती हैं, शायद इसलिए कोई इन्हें गिनती में नहीं रखता. सभी विद्यार्थियों के लिए यह चिंतन का एक अहम विषय होना चाहिए, खासकर विश्वव्यापी संकट की इस घड़ी में कि क्या हम हवा के बिना जी सकते हैं, क्या हम पानी के बिना रह सकते हैं और क्या धूप और सूरज की किरणों के बिना जीवन संभव है? मुझे विश्वास है कि इस चिंतन-विश्लेषण के बाद लगभग सभी विद्यार्थियों को प्रकृति की महिमा का बेहतर एहसास होगा और वे खुद प्रकृति के साथ जुड़ने और अपने आसपास के लोगों को जोड़ने का सार्थक प्रयास अवश्य करेंगे. सच कहें तो प्रकृति से जुड़ने और जोड़ने का काम बहुत आसान, आनंददायक और हर दृष्टि से लाभप्रद है. आइए जानते हैं, कैसे? 


सदियों से विविधता में एकता में विश्वास करनेवाले इस प्राचीन तथा प्रगतिशील देश में जैव विविधता की आवश्यकता और खूबसूरती दोनों की बहुत अहमियत है. लिहाजा जैव विविधता  को बचाए और बनाए रखने के लिए विद्यार्थियों को कुछ-न-कुछ करना चाहिए. सनातन भावना यह है कि हम साथ-साथ हैं और मिलकर प्रगति पथ पर अग्रसर होंगे. कहते हैं अच्छा काम करने के लिए हर वक्त अच्छा होता है. सो, विद्यार्थी आज से ही शुरू करें प्रकृति से सार्थक रिश्ता बनाने का सिलसिला. सुबह  सूर्योदय के समय उठें और अपने कमरे से बाहर निकल कर सूरज को उगते हुए देखें. आसपास की प्राकृतिक सक्रियता को महसूस करें. मसलन पशु-पक्षियों, कीड़े-मकोड़ों और पेड़-पौधों की सक्रियता. ऐसा अनुभव होगा कि सब कुछ प्रकृति द्वारा निर्धारित एक अलिखित नियम के तहत स्वतः हो रहा है. अब एक छोटी शुरुआत करें. जहां हैं - गांव, क़स्बा, नगर, महानगर वहां एक छोटा पौधा लगाएं. तुलसी, नीम, पीपल, आम, कटहल, नींबू, आंवला या अन्य कोई  पौधा जो फलदार, फूलदार या छायादार प्रजाति का हो. उसे रोज पानी दें, उसे निहारें, उसमें होनेवाले हर परिवर्तन को गौर से ऑब्जर्व करें, रोज 5-10 मिनट ही सही. विश्वास करें, जिस दिन उस पौधे से आपका भावनात्मक रिश्ता कायम हो जाएगा, उसके नए पत्ते, फूल आदि सब आपको आकर्षित और आनंदित करेंगे. प्रकृति से जुड़ने के इन प्रयासों को दिनचर्या का हिस्सा बना लें. 


हमारे देश के शहर-महानगर में रहनेवाले लोग छुट्टियों में अपने गांव या किसी प्राकृतिक स्थान में कुछ वक्त बिताकर हैप्पी और हेल्दी फील करते हैं. स्कूल-कॉलेज के अनेक विद्यार्थियों को स्टडी टूर में प्राकृतिक परिवेश में कुछ समय बिताने और एक अभिनव आनंद का भागी बनने का मौका मिलता है. तालाब, झील, नदी और सागर की  निकटता से  क्रिएटिविटी को पंख लगते हैं. इसका सबूत है करोड़ों रचनाएं और असंख्य कलाकृतियां. इतना ही नहीं न्यूटन सहित कई वैज्ञानिकों  ने प्रकृति के मिजाज एवं रीति-नीति को जानने-समझने के क्रम में कई बड़े आविष्कार किए. सच कहें तो प्रकृति विद्यार्थियों के लिए असीमित ज्ञान और प्रेरणा का स्रोत है. प्रकृति के सानिद्ध में रहने से आंतरिक और अध्यात्मिक उर्जा में वृद्धि होती है. उनका सोच ग्लोबल, इंक्लूसिव और डेमोक्रेटिक बनता है. उन्हें प्रकृति और हर जीव के बीच के अत्यंत गहरे संबंध का बोध होता है. 
तभी तो अल्बर्ट आइंस्टीन कहते हैं, "प्रकृति में गहराई से देखिये और आप हर एक चीज बेहतर ढंग से समझ सकेंगे."  

 (hellomilansinha@gmail.com)     

     
               
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# लोकप्रिय साप्ताहिक "युगवार्ता"  में प्रकाशित
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